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राजकन्याएं पढ़ती थीं सरकारी कन्या विद्यालय में

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अपना इंदौर

महारानी चन्द्रावतीबाई होलकर बालिकाओं की शिक्षा में विशेष रुचि रखती थीं। उन्हीं के प्रयासों से 23 जून 1913 ई. को एक कन्या विद्यालय स्थापित हुआ जिसका नाम चन्द्रावतीबाई महिला विद्यालय रखा गया। इस‍ विद्यालय ने स्थापित होते ही अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की। पहले ही वर्ष इसमें 188 छात्राओं ने प्रवेश लिया। यह स्कूल छात्राओं के सर्वांगीण विकास के लिए स्थापित हुआ था जिसमें अध्यापन के अलावा चित्रकला, संगीत, हल्का व्यायाम, प्रकृति अध्ययन, कवायद, कढ़ाई, बुनाई का भी प्रशिक्षण दिया जाता था।
 
1921 में कुमारी अहिल्याबाई भण्डारकर इस विद्यालय की निरीक्षिका के रूप में कार्यरत थीं। उस समय तक इस विद्यालय में छात्राओं की संख्या 298 तक पहुंच गई थी। निर्धन छात्राओं को नि:शुल्क छात्रावासीय सुविधा थी किंतु सक्षम परिवारों की कन्याओं से शुल्क लिया जाता था। 1921 में छात्रावास में 35 नि:शुल्क छात्राएं थीं जबकि 54 छात्राएं शुल्क देकर रह रही थीं।
 
1921 में इस विद्यालय की 6 छात्राएं पहली बार मैट्रिक की परीक्षा में सम्मिलित हुईं जिनमें से 1 प्रथम श्रेणी में व 2 द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुईं। चित्रकला अध्यापन के क्षेत्र में इस विद्यालय ने बड़ा नाम कमाया। इस विद्यालय की बहुत-सी छात्राओं ने बम्बई स्कूल ऑफ आर्ट्स की प्रारंभिक व इंटरमीडिएट ग्रेड ड्राइंग परीक्षा पास की थी। इन परीक्षाओं हेतु यह विद्यालय केंद्र घोषित हो चुका था। अपनी स्थापना के 10 वर्षों के अंतराल में ही इस विद्यालय से 23 छात्राओं ने इंटरमीडिएट ड्राइंग और 56 छात्राओं ने प्रारंभिक चित्रकला की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी।
 
उल्लेखनीय है कि 1919 ई. में ही यह विद्यालय हाईस्कूल बन गया था और इसका संबद्धीकरण इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हो गया था। इस हाईस्कूल के साथ ही शिक्षक बनने वाली महिलाओं के प्रशिक्षण हेतु एक नॉर्मल स्कूल की भी स्थापना की गई थी। उसमें छात्राओं को अध्यापन का प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रैक्टिकल अनुभव हेतु एक आदर्श प्राथमिक विद्यालय भी था जिसमें अध्यापन प्रशिक्षण पा रहीं छात्राओं से करवाया जाता था।
 
इसी विद्यालय में राजकन्या स्नेहलता राजे भी अपनी साथियों के साथ अध्ययन करने आती थीं। होलकर राजपरिवार के बालकों को भी महाराजा शिवाजीराव विद्यालय में अध्ययन हेतु भेजा जाता था।
 
सेंट्रल इंडिया के राजघरानों व जमींदारों के बेटों के अध्ययन के लिए इंदौर में स्थापित डेली कॉलेज के होते हुए भी राजपरिवार के बच्चों को इन सार्वजनिक विद्यालयों में भेजा जाना सराहनीय कार्य था। इससे आम लोगों के मन में विद्यालयों व शिक्षा के प्रति अनुराग बढ़ा। कन्याओं को न केवल नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी अपितु उन्हें घर से विद्यालय व वापस घर तक पहुंचाने की व्यवस्था भी राज्य की ओर से की गई थी।
 
यह तथ्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं है अहिल्या आश्रम और चन्द्रावतीबाई हाईस्कूल का संचालन होलकर राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा नहीं,‍ अपितु खासगी विभाग द्वारा किया जाता था। इंदौर नगर में स्त्री शिक्षा में इन संस्थाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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