क्या सिकंदर (अलक्षेन्द्र) एक महान विजेता था? ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में यही बताया जाता है और पश्चिम जो कहता है दुनिया उसे आंख मूंदकर मान लेती है। मगर ईरानी, भारतीय और चीनी इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो यह छवि कुछ अलग ही दिखती है।'
सिकंदर के हमले की कहानी बुनने में पश्चिमी देशों को ग्रीक भाषा और संस्कृति से मदद मिली, जो ये कहती है कि सिकंदर का अभियान उन पश्चिमी अभियानों में पहला था, जो पूरब के बर्बर समाज को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए किया गया था। जबकि हकीकत तो यह है कि भारत में एक भी ऐसा राजा नहीं हुआ जिसने विदेशी धरती या दूसरा राज्य पर आक्रमण कर क्रूरता की सभी हदें पार कर दी हो। भारतीय राजाओं में संवेदना का स्तर इतन गिरा हुआ नहीं था कि वे बच्चों को भालों की नोक पर रखकर किसी राज्य में घुसे हों। आओ जरा जान लेत हैं सिकंदर की क्रूरता के कारनामें।
सिकंदर एक छोटे से देश यूनान के राज्य मेसेडोनिया (मकदूनिया) का शासक था। एक ऐसा देश जिससे फारसियों के कई बार कुचला था। मेसेडोनिया के लोग फारसियों से बेपनाह नफरत करते थे। यही नफरत ही थी जिसने फारसियों के साम्राज्य को ढहा दिया, नहस-नहस कर दिया। सिकंदर के सिंहासन पर बैठने की कहानी क्रूरता से ही प्रारंभ होती है और उसका अंत भी क्रूरता से ही होता है।
सिकंदर ने अपनों को ही तड़पा-तड़पा कर मारा था : सिकंदर की अपने पिता से शत्रुता थी। माता और पुत्र से मिलकर पिता को ठिकाने लगा दिया। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात उसने अपने सौतेले व चचेरे भाइयों का कत्ल किया और खुद मेसेडोनिया के सिन्हासन पर बैठा गया। सिन्हासन पर बैठते ही उसकी महत्वकांशा बढ़ गई।
इतिहासकारों के अनुसार सिकंदर एक क्रूर, अत्याचारी और शराब पीने वाला व्यक्ति था। सिकंदर ने अपने शत्रु या मित्रों तक के साथ कभी भी उदारता नहीं दिखाई। उसने अपने अनेक सहयोगियों को उनकी छोटी-सी भूल से रुष्ट होकर तड़पा-तड़पाकर मारा था। इसमें उसका एक योद्धा बसूस, अपनी धाय का भाई क्लीटोस और पर्मीनियन आदि का नाम उल्लेखनीय है। फारसी इतिहासकारों के अनुसार सिकंदर क्रूर और हत्यारा व्यक्ति था न की महान। एक बार किसी छोटी-सी बात पर उसने अपने सबसे करीबी मित्र क्लीटोस को मार डाला था। अपने पिता के मित्र पर्मीनियन जिनकी गोद में सिकंदर खेला था उसने उनको भी मरवा दिया था।
प्रसिद्ध इतिहासकार एर्रियन लिखते हैं, जब बैक्ट्रिया के राजा बसूस को बंदी बनाकर लाया गया, तब सिकंदर ने उनको कोड़े लगवाए और उनकी नाक-कान कटवा डाले। इतने पर भी उसे संतोष नहीं हुआ। उसने अंत में उनकी हत्या करवा दी। सिकंदर के गुरु अरस्तू ने सिकंदर को हर मौके पर सहयोग और सलाह दी लेकिन उसने अपने गुरु अरस्तू के भतीजे कलास्थनीज को मारने में जरा भी संकोच नहीं किया।
युद्ध में करता था क्रूरता : इतिहासकारों अनुसार सिकंदर की सेना जहां भी जाती, पूरे के पूरे नगर जला दिए जाते, सुन्दर महिलाओं का अपहरण कर लिया जाता और बच्चों को भालों की नोक पर टांगकर शहर में घुमाया जाता था।
सिकंदर ने फारस को तबाह किया : सेंट एंड्र्यूज विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड के प्रोफेसर अली अंसारी के अनुसार प्राचीन ईरानी अकेमेनिड साम्राज्य की राजधानी पर्सेपोलिस के खंडहरों को देखने जाने वाले हर सैलानी को तीन बातें बताई जाती हैं कि इसे डेरियस महान ने बनाया था, इसे उसके बेटे जेरक्सस ने और बढ़ाया, लेकिन इसे 'उस क्रूर इंसान' ने तबाह कर दिया जिसका नाम था- सिकंदर। शराब पीने के बाद एक ग्रीक नर्तकी को यह कहते दिखाया गया कि ईरानी शासक जेरक्सस से बदला लेने के लिए उसने (सिकंदर) एक्रोपोलिस को जला दिया।
ईरानी सिकंदर की यह कहकर भी आलोचना करते हैं कि उसने अपने साम्राज्य में सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने को बढ़ावा दिया। उसके समय में ईरानियों के प्राचीन धर्म, पारसी धर्म के मुख्य उपासना स्थलों पर हमले किए गए। सिकंदर ने ईरान के राजा दारा को पराजित कर दिया और विश्व विजेता कहलाने लगा। विजय के उपरांत उसने बहुत भव्य जुलूस निकाला। महज 32 साल की उम्र में मौत के मुंह में चले जाने वाले सिकंदर को ईरानी कृति 'शाहनामा' ने महज एक विदेशी राजकुमार माना है। उसे कभी महान घोषित नहीं किया। महान तो पश्चिमी संस्कति के लोग मानते हैं।
पोरस से हार गया था सिकंदर : ऐसा क्रूर सिकंदर अपने क्या, महान सम्राट पोरस के प्रति उदार हो सकता था? यदि पोरस हार जाते तो क्या वे जिंदा बचते और क्या उनका साम्राज्य यूनानियों का साम्राज्य नहीं हो जाता? इतिहास में यह लिखा गया कि सिकंदर ने पोरस को हरा दिया था। यदि ऐसा होता तो सिकंदर मगध तक पहुंच जाता और इतिहास कुछ और होता। लेकिन इतिहास लिखने वाले यूनानियों ने सिकंदर की हार को पोरस की हार में बदल दिया।
फारस में भव्य जीत के बाद पोरस से हारे हुए सिकंदर का सम्मान और उसकी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए यूनानी लेखकों ने यह सारा झूठा जाल रचा। स्ट्रेबो, श्वानबेक आदि विदेशी विद्वानों ने तो कई स्थानों पर इस बात का उल्लेख किया है कि मेगस्थनीज आदि प्राचीन यूनानी लेखकों के विवरण झूठे हैं। ऐसे विवरणों के कारण ही सिकंदर को महान समझा जाने लगा और पोरस को एक हारा हुआ योद्धा, जबकि सचाई इसके ठीक उलट थी। सिकंदर को हराने के बाद पोरस ने उसे छोड़ दिया था। अपने देश वापस लौटते समय रास्ते में सिकंदर का युद्ध जाटों से हुआ। जाटों से युद्ध में बुरी तरह घायल सिकंदर बाद में मारा गया। कहते हैं कि वह शराब पीकर युद्ध लड़ता था।
यूनानी इतिहासकारों के झूठ को पकड़ने के लिए ईरानी और चीनी विवरण और भारतीय इतिहास के विवरणों को भी पढ़ा जाना चाहिए। यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में झूठ लिखा था, ऐसा करके उन्होंने अपने महान योद्धा और देश के सम्मान को बचाया रखा। जवाहरलाल नेहरू अपनी पुस्तक 'ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' में लिखते हैं- 'सिकंदर अभिमानी, उद्दंड, अत्यंत क्रूर और हिंसक था। वह स्वयं को ईश्वर के समान समझता था। क्रोध में आकर उसने अपने निकटतम मित्रों और सगे-संबंधियों की हत्या की और महान नगरों को उसके निवासियों सहित पूर्णतः ध्वस्त कर दिया।'