Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

होलाष्टक का महत्व जानिए

हमें फॉलो करें होलाष्टक का महत्व जानिए
कैसे मनाएं होलाष्टक ? 
 

 
होलिका पूजन करने हेतु होलिका दहन वाले स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। फिर मोहल्ले के चौराहे पर होलिका पूजन के लिए डंडा स्थापित किया जाता है। उसमें उपले, लकड़ी एवं घास डालकर ढेर लगाया जाता है। होलिका दहन के लिए पेड़ों से टूट कर गिरी हुई लकड़‍ियां उपयोग में ली जाती है तथा हर दिन इस ढेर में कुछ-कुछ लकड़‍ियां डाली जाती हैं।
 
होलाष्टक के दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।
 
पौराणिक शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इन दिनों शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है। 
 
इस वर्ष होलाष्टक 16 मार्च से शुरू होकर 23 मार्च तक रहेगा। इस आठ दिनों के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। इसके अंतर्गत होलिका दहन और धुलेंडी खेली जाएगी। 
 
प्रचलित मान्यता के अनुसार शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई थी।
 
जब कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमा याचना की गई तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई। होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi