होली इस बार गुरुवार 21 मार्च को मनेगी। इससे एक दिन पूर्व 20 मार्च को होलिका दहन होगा। होलिका दहन पर इस बार दुर्लभ संयोग बन रहे हैं।
इन संयोगों के बनने से कई अनिष्ट दूर होंगे। सात वर्षों के बाद देवगुरु बृहस्पति के उच्च प्रभाव में गुरुवार को होली मनेगी। इससे मान-सम्मान व पारिवारिक शुभ की प्राप्ति होगी। राजनीति की वर्ष कुंडली के अनुसार नए वर्ष में नए नेताओं को लाभ मिलेगा।
यह होली पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में दहन की जाएगी। यह शुक्र का नक्षत्र है जो जीवन में उत्सव, हर्ष,आमोद-प्रमोद, ऐश्वर्य का प्रतीक है।
होली उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में खेली जाएगी। यह नक्षत्र सूर्य का है। सूर्य आत्मसम्मान, उन्नति व आत्मप्रकाश का कारक है। इससे वर्षभर सूर्य की कृपा मिलेगी। जब सभी ग्रह 7 स्थानों पर होते हैं वीणा योग का संयोग बनता है। रंगों की होली पर ऐसी स्थिति से गायन-वादन व नृत्य में निपुणता आती है।
अत: इस बार 3 ग्रहों के साथ शुभ संयोग बन रहा है। गुरु, सूर्य और शुक्र। यह तीनों ग्रह जीवन में श्रेष्ठता देते हैं।
होलिका दहन का यह है शुभ समय
20 मार्चकी रात्रि 8.58 से रात 12.05 बजे।
भद्रा का समय
भद्रा पूंछ : शाम 5.24 से शाम 6.25 बजे तक।
भद्रा मुख : शाम 6.25 से रात 8.07 बजे तक।
होलिका दहन की पूजा में रक्षो रक्षोघ्न सूक्त का पाठ होता है। तीन बार परिक्रमा की जाती है। लोग गेहूं,चना व पुआ-पकवान अर्पित करते हैं। सुबह उसमें आलू, हरा चना पकाते और खाते हैं। नहा धोकर शाम में मंदिर के पास जुटते हैं। नए कपड़े पहनकर भगवान को रंग-अबीर चढ़ाते हैं। भस्म सौभाग्य व ऐश्वर्य देने वाली होती है। होलिका दहन में जौ व गेहूं के पौधे डालते हैं। फिर शरीर में ऊबटन लगाकर उसके अंश भी डालते हैं। ऐसा करने से जीवन में आरोग्यता और सुख समृद्धि आती है।