फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन होली मनाने का प्रचलन है। इसे धुलैंडी, धुलण्डी और वसंतोत्सव भी कहते हैं। इस बार होलिका दहन 17 मार्च को होगा। इस मान से 18 मार्च को होली या धुलैंडी का उत्सव मनाया जाना चाहिए, परंतु विद्वानों का मत है कि भद्रा में होलिका दहन नहीं हो सकता।
भद्रा होने के कारण विद्वानों द्वारा इस बार 17 मार्च को होलिका दहन और 19 मार्च को होली मनाने की सलाह दी है। इस बार मिथिला और वाराणसी पंचांग के जानकार फाल्गुन में पड़ने वाले पर्व-त्योहारों की तिथियों को लेकर एकमत हैं। वाराणसी पंचांग के जानकार पंडित प्रेमसागर पांडेय के अनुसार 17 मार्च को रात 12 बजकर 57 मिनट के बाद होलिका दहन का योग बन रहा है। इसके पहले पृथ्वीलोक पर भद्रा का विचरण रहेगा। भद्रा में होलिका दहन नहीं हो सकता है।
18 मार्च को दोपहर 12.53 बजे तक पूर्णिमा स्नान होगा और 19 मार्च को लोग होली मनाएंगे। आचार्य माधवानंद कहते हैं कि मिथिला पंचांग के अनुसार 3 मार्च को जनकपुर परिक्रमा शुरू होगी। 3 मार्च को ही रामकृष्ण परमहंस की जयंती मनायी जाएगी, जबकि 15 मार्च को संक्रांति पड़ रहा है।
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 17 मार्च गुरुवार को दोपहर 1.13 बजे से आरंभ हो रही है, जो 18 मार्च शुक्रवार को दोपहर 1.03 बजे तक रहेगी। होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में रात के समय भद्रा मुक्त काल में होगा। इस बार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा शनिवार को हस्त नक्षत्र व वृद्धि योग में 19 मार्च को होली मनाई जाएगी।
बनारसी पंचांग के अनुसार 17 मार्च की मध्यरात्रि को 12.57 बजे तथा मिथिला पंचांग के अनुसार रात्रि 1.09 बजे तक भद्रा रहेगी। ऐसे में होलिका दहन का कार्य इसके बाद किया जाएगा। व्रत की पूर्णिमा 17 मार्च को तथा स्नान-दान की पूर्णिमा 18 मार्च को रहेगी और प्रतिपदा 19 मार्च को रहेगी। प्रतिपदा के दिन ही होली मनाने की परंपरा है।
हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार होली का पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। यदि प्रतिपदा दो दिन पड़ रही हो तो पहले दिन को ही होली मनाई जाती है।