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युवा साहित्यकारों की नजर में रंगपंचमी का महत्व

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फागुन महीना मस्ती का होता है। इस महीने में ही रंगों के सबसे प्यारे त्योहार आते हैं। होली और रंगपंचमी के साथ ही उन सभी रचनाओं की भी बरबस याद आ जाती है जो हमारे चेहरे पर मुस्कान लाती है। रंगों का यह त्योहार ऐसी रचनाओं के लिए ही जाना जाता है, जिनसे दूसरों को प्रसन्नता और उल्लास मिले।





होली-रंगपंचमी के विविध रंग और प्रकृति का साथ भी जीवन में उमंगों का संचार करता है। इस त्योहार के समय प्रकृति अपने साथ मस्ती लाती है और यह मस्ती ही होली के रंगों के माध्यम से व्यंग्य और हास्यप्रधान रचनाओं का साथ पाकर जीवन में सरसता पैदा करती है।
 
कुछ साहित्यकारों ने बताया कि वे हंसी और खुशी तथा इस महीने में क्या-क्या समानता महसूस करते है। आइए जानें...
 
 
व्यंग्यकार- साहित्यकार अमिय शुक्ला का कहना है कि होली और रंगपंचमी हंसी और खुशी का ही त्योहार है। इस दिन दिल के सारे गिले-शिकवे दूर होते हैं और प्रकृति भी उल्लास व्यक्त करती है। फागुन तो महीना ही हंसने और हंसाने का है और इसीलिए इस समय हास्य और व्यंग्यप्रधान रचना हर किसी की जुबां पर रहती है।
 
हास्य कवयित्री - ऋचा पावरी कहती हैं संबंधों की स्लेट पर प्रेम की नई इबारत लिखने का त्योहार है होली और ऐसे में तो हर रचना प्रसन्नतापूर्ण जान पड़ती है। रंगों का यह त्योहार हमें उल्लास के वातावरण में ले जाता है और हमारे मन की खिन्नता को मिटाता है। इस दिन हम रूठों को मना लेते हैं और कुछ ऐसा भी रच सकते हैं जो दूसरों को हंसा सके।
 
लेखिका-  सीमा उर्फ समता शर्मा के अनुसार कुछ भी अच्छा करने की प्रेरणा फागुन से ही मिलती है। इस समय मन के बौराने की बात भी कही जाती है, जो आनंद की चरम अवस्था है और ऐसे में रचना का हास्यप्रधान होना बहुत स्वाभाविक है।
 
कवि सम्मेलन और हास्य क्लब के आयोजन रंगों के इस दिवस 'रंगपंचमी' को मजेदार बना देते हैं।

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