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जानिए कहां और कैसे मनाई जाती है रंगपंचमी

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* मध्यप्रदेश की रंगपंचमी :
 
मध्यप्रदेश में रंगपंचमी पर बड़ी-बड़ी गेर का आयोजन किया जाता है। जिसमें सड़कों पर रंग मिश्रित सुगंधित जल छिड़का जाता है। सूखे रंगों से होली खेलकर और एक-दूसरे पर रंग उड़ेलकर इस त्योहार का आनंद उठाया जाता है।


 
मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के इन दिनों आदिवासी इलाकों में भगोरिया बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। यहां होली के त्योहार और रंगपंचमी पर खास पकवान बनाए जाते हैं। अधिकतर घरों में इस दिन श्रीखंड और भजिए, आलूबड़े, भांग की ठंडाई लुत्फ उठाया जाता है। कई घरों में पूरनपोली तो कई घरों में गुजिया, पपड़ी बनाई जाती है।
 
विशेष कर पूरे मालवा प्रदेश में जिसमें खास तौर पर इंदौर नगर में होली पर जुलूस निकालने की पुरानी परंपरा है, जिसे गेर कहा जाता हैं। इस गेर के जुलूस में बैंड, बाजे, नाचना, गाना सबकुछ शामिल होता हैं। बड़े टैंकों में रंगीन पानी भर कर जुलूस के तमाम रास्ते भर लोगों पर रंग डाला जाता है। इस जुलूस में सभी धर्म लोग शामिल होते हैं।

उत्तरप्रदेश की रंगपंचमी :
 
होली-रंगपंचमी का त्योहार देश में अलग-अलग अंदाज से मनाया जाता है। जहां मथुरा, वृदांवन और बरसाने की लट्ठमार होली विश्व भर प्रसिद्ध हैं वहीं, बाराबंकी में सूफी संत हाजी वरिश अली शाह की दरगाह पर भी होली खेली जाती है। यहां हिंदू-मुस्लिम मिलकर एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर इस त्योहार को खुशी-खुशी मनाते हैं। इस दरगाह पर खेली जाने वाली होली कौमी एकता का संदेश देती है।


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उत्तरप्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बेसन की सेंव और दहीबड़े बनाए जाते हैं। इसमें कांजी, भांग और ठंडाई इस त्योहार के विशेष पेय हैं। कई स्थानों पर होली के दिन घर में खीर-पूड़ी, पूड़े आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। खास तौर पर इस त्योहार पर गुझियों का स्थान विशिष्ठ महत्वपूर्ण है। 

 
 

* महाराष्ट्र की रंगपंचमी :
 
खास तौर पर धुलेंड़ी के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यहां ‍विशेष कर सामान्य रूप से सूखे रंग के गुलाल से होली खेली जाती है। भोजन में पूरनपोली बनाने का खास महत्व होता है। उसके साथ आमटी, चावल और पापड़ आदि तलकर खाने की परंपरा है। कोंकण में इसे शमिगो नाम से मनाया जाता है। 


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* राजस्थान की रंगपंचमी :
 
यहां विशेष रूप से इस अवसर पर लाल, नारंगी और फिरोजी रंग हवा में उड़ाने की परंपरा हैं। यहां जैसलमेर के मंदिर महल में लोक नृत्यों में डूबा वातावरण देखने का अपना अलग ही मजा है। 
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* छ‍त्तीसगढ़ की रंगपंचमी :
 
देश भर में वैसे तो बरसाने की लट्ठमार होली प्रसिद्ध है, लेकिन जांजगीर से 45 किलोमीटर दूर पंतोरा गांव में प्रति वर्ष धूल पंचमी यानी रंगपंचमी के दिन कुंआरी कन्याएं गांव में घूम-घूम कर पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं। इस मौके पर गांव से गुजरने वाले हर पुरुष को लाठियों की मार झेलनी पड़ती है, चाहे वह कोई भी हो, फिर वह सरकारी कर्मचारी हो या पुलिस। करीब 300 वर्षों से अधिक समय से जारी यहां की लट्ठमार होली अब यहां की परंपरा बन गई हैं।



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