जनश्रुति के अनुसार गोवा की रचना भगवान परशुराम ने की थी। उन्होंने अपने बाणों से समुद्र को कई योजन पीछे धकेल दिया था। आज भी गोवा के कई स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली इत्यादि है। उत्तरी गोवा में हरमल के पास भूरे रंग का एक पर्वत है। इसे परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से गोवा के बारे में सबसे पहले महाभारत में लिखा गया था। उस समय गोवा का नाम गोपराष्ट्र अर्थात गाय चराने वाले का देश हुआ करता था। माना जाता है कि गोवा गोपराष्ट्र का ही अपभ्रंश है।
1. गोवा में होली का उत्सव होलिका दहन के 5 दिन बाद मनाया जाता है यानी रंगपंचमी के दिन वहां रंग उत्सव मनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में शिमिगो कहते हैं। इसे शिमगो या शिमगा के भी नाम से भी जाना जाता है। हालांकि उत्सव की शुरुआत तो होलिका दहन से ही हो जाती है।
2. यह त्योहार यहां के मछुआरों के बीच खासा लोकप्रिय है। इस त्योहार में रंगों के अलावा लोग जमकर नाच-गाना, खाना-पीना और आमोद-प्रमोद करते हैं।
3. गोवा में कोंकण भाषा बोली जाती है। यह कोकणस्थ लोगों का त्योहार है। ग्रामीण लोग भी यह त्योहार मनाते हैं। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्से में गोंड़ी भाषी लोग होली को शिमगा सगगुम पाबुन कहते हैं। यहां के स्थानीय भाषा में शिवजी को शंभू शेक कहा जाता है।
4. माघ मास की पूर्णिमा और फाल्गुन की पूर्णिमा तक अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें शंभू शेक नरका (महाशिवरात्रि) और शिमगा प्रमुख हैं।
5. यह त्योहार नववर्ष के आगमन की खुशी में भी मनाते हैं। वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन की पूर्णिमा और नए वर्ष के प्रथम दिन चैत्र माह के परेवा का संगम होता है और इसके बाद उत्सव मनाते हैं।