मध्यप्रदेश के झाबुआ और उसके आसपास के क्षेत्र के आदिवासी होली के पर्व को भगोरिया उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह उत्सव संपूर्ण मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का उत्सव रहता है लेकिन ये सभी झाबुआ क्षेत्र में एकत्रित होकर यह पर्व मनाते हैं। मूल रूप से यह मालवा और निमाड़ के आदिवासियों का उत्सव है। होलिका दहन से 7 दिन पूर्व शुरू होने वाले इस भगोरिया पर्व में युवा वर्ग की भूमिका खासी महत्वपूर्ण होती है। आओ जानते हैं भगोरिया उत्सव के 10 रंग।
1. मेला : भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन, आलीराजपुर, करड़ावद आदि कई क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं। मेरे में कई तरह के रंग और रूप देखने को मिलते हैं।
2. व्यापारी : व्यापारी अपने-अपने तरीके से खाने की चीजें- गुड़ की जलेबी, भजिये, खारिये (सेंव), पान, कुल्फी, केले, ताड़ी बेचते, साथ ही झूले वाले, गोदना (टैटू) वाले अपने व्यवसाय करने में जुट जाते हैं।
3. प्यार के रंग : इस उत्सव में हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है। जीप, छोटे ट्रक, दुपहिया वाहन, बैलगाड़ी पर दूरस्थ गांव के रहने वाले लोग इस हाट में सज-धज के जाते हैं। कई नौजवान युवक-युवतियां झुंड बनाकर पैदल भी जाते हैं। भगोरिया पर्व का बड़े-बूढ़े सभी आनंद लेते हैं।
4. ताड़ी पीना और भजिये खाना : इस दौरान ग्रामीणजन ढोल-मांदल एवं बांसुरी बजाते हुए ताड़ी पीते और मस्ती में झूमते हैं।
5. बड़ा सा ढोल बजाते हैं : हाट में जगह-जगह भगोरिया नृत्य में ढोल की थाप, बांसुरी, घुंघरुओं की ध्वनियां सुनाई देती हैं तो बहुत ही मनमोहक दृश्य निर्मित कर देती है। बड़ा ढोल विशेष रूप से तैयार किया जाता है, जिसमें एक तरफ आटा लगाया जाता है। ढोल वजन में काफी भारी और बड़ा होता है। जिसे इसे बजाने में महारत हासिल हो वही नृत्य घेरे के मध्य में खड़ा होकर इसे बजाता है।
6. युवक-युवतियों के तय होते हैं रिश्ते : एक से रंग की वेश-भूषा में युवक-युवतियां नजर आते हैं। इस दौरान कई युवक-युवतियां को रिश्ता भी तय हो जाता है। भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूंढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हां समझी जाती है और फिर लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है और दोनों शादी कर लेते हैं। इसी तरह यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है। इसी तरह कुछ जनजातियों में चोली और तीर बदलने का रिवाज है। वर पक्ष लड़की को चोली भेजता है। यदि लड़की चोली स्वीकार कर बदले में तीर भेज दे तब भी रिश्ता तय माना जाता है। इस तरह भगोरिया भीलों के लिए विवाह बंधन में बंधने का अनूठा त्योहार भी है।
7. नृत्य : युवतियां नख से शिख तक पहने जाने वाले चांदी के आभूषण, पावों में घुंघरू, हाथों में रंगीन रुमाल लिए गोल घेरा बनाकर मांदल व ढोल, बांसुरी की धुन पर बेहद सुंदर नृत्य करती हैं। लोक संस्कृति के पारंपरिक लोकगीतों से माहौल में लोक संस्कृति का एक बेहतर वातावरण बनता जाता है साथ ही प्रकृति और संस्कृति का संगम हरे-भरे पेड़ों से निखर जाता है।
8. देश विदेश से आते भगोरिया देखने : भगोरिया उत्सव को देखने के लिए देश ही नहीं अपितु विदेशों से लोग आते हैं जो कई क्षेत्रों में चिलमिलाती गर्मी और चूभती ठंड में घुमते रहते हैं। यह ऐसा मौसम होता है जबकि छाव में ठंड और धूप में गर्मी लगती है। आजकल इन विदेशियों के रहने और ठहरने के लिए प्रशासन द्वारा केम्प की व्यवस्था भी की जाने लगी है। अब तो इस उत्सव में सीसीटीवी कैमरे से नजर रखी जाने लगी है।
9. क्या होता है भगोरिया : कई लोगों की यह मान्यता है कि भगोरिया का अर्थ है भाग कर शादी करना। हालांकि हाल ही के वर्षों में शिक्षित युवा वर्ग में भगोरिए के माध्यम से चयन को नकारना शुरू कर दिया है। यहां तक कि उसे प्रणय पर्व कहने पर भी तीखी आपत्ति है। इसका मुख्य कारण भगोरिए में आ रही विकृति खासकर शहरी विकृतियां हैं।
10. भागोर से हुआ भगोरिया : एक अन्य मान्यता अनुसार कहते हैं कि भगोरिया राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। इस समय दो भील राजाओं कासूमार और बालून ने अपनी राजधानी भागोर में विशाल मेले और हाट का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहना शुरू हुआ।