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राष्‍ट्रीय त्योहार का पर्व होली....

होलिका दहन या फाल्गुन पूर्णिमा

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पं. प्रेमकुमार शर्मा

व्रत का नामः- होलिका दहन या फाल्गुन पूर्णिमा
व्रत की तिथिः- पूर्णिमा
व्रत के देवताः-भगवान विष्णु
पूजा का समयः-प्रदोष काल
व्रत का दिनः-शनिवार
व्रत की पूजा विधिः- षोडशोपचार या पंचोपचार विधि
व्रत का मंत्रः- ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
 
व्रत की कथाः- इस व्रत में प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु आदि की कथा प्रचलित है। प्रह्लाद हिरण्यकशिपु का पुत्र था जो भगवान विष्णु का भक्त था, किन्तु हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु से द्वेष रखता था तथा अपने पुत्र को विष्णु भगवान की भक्ति करने पर कई प्रकार से प्रताड़ित किया।
 
टिप्पणी :- यह त्योहार हिन्दुओं का सबसे पवित्र व उमंग भरा त्योहार है जिसमें सभी स्त्री-पुरुष, बाल, वृद्ध उत्साह व प्रसन्नतापूर्वक होलिका का दहन करते हुए पारम्परिक गीत, फाग आदि गाते हैं तथा दूसरे दिन रंगों से होली खेलते हैं। पूर्णिमा तिथि में स्नान, दान, सत्यनारायण भगवान की कथा का बड़ा ही महत्व है।
 
होलिका का दहन या फाल्गुन पूर्णिमा
संस्कारों की जननी भारतीय भूमि को देव भूमि कहा गया है। जहाँ सदियों से देव तत्व अच्छाई को स्थापित करने लिए प्रत्येक बुराई और दुःख को सुख में बदलने के लिए हिन्दू धर्म में प्रयास किए जाते रहें हैं। इन प्रयासों में जब कभी वह सफल हुआ तो इसे एक उत्सव या त्योहार के रूप में मनाया। इसी क्रम में होलिकोत्सव का त्योहार मनाया जाता है। होली का परम पावन पर्व प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी 19 मार्च 2011 को मनाया जाएगा। होलिका का दहन प्रदोष काल में सांयकाल के बाद भद्रा को छोड़कर किया जाता है।
 
भद्रा में होलिका दहन से देशकाल में कई तरह के उत्पात व बीमारियों की वृद्धि होती है ऐसा शास्त्रों का वचन है। होली जलाने के लिए विविध प्रकार की लकड़ियों तथा घासफूस का प्रयोग किया जाता है।
 
गाँव या शहर के बाहर जहाँ खुला मैदान हो कोई घर या मकान न हो अर्थात्‌ सब लोग सामूहिक तौर पर एकत्रित हो जाएँ और किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो, न ही अग्नि लगने का भय हो ऐसे स्थान में लकड़ियों को एकत्रित कर उसमें एक निश्चित तय मुहूर्त में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। फिर अग्नि देव की पूजा लोक रीति से या वेद रीति से कच्चे दूध, गंगा जल, अक्षत आदि से की जाती है।
 
चने के बिरवा, जौ और गेहूँ की बालें उस अग्नि में भूनी जाती हैं। फिर होलिका की प्रदक्षिणा की जाती है यह प्रदक्षिणा विषम संख्याओं में की जाती हैं। इस प्रकार वेद रीति, कुल रीति, देश रीति में किसी एक रीति का पालन किया जाता है।
 
होलिका दहन के ठीक दूसरे दिन रंगों का त्योहार होता है। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा से प्रतिपदा तक मनाया जाता है। जो सुसमृद्ध, गौरवशाली भारतीय संस्कृति का ऐसा अनूठा रंगों का त्योहार है जो हमारे निकट सम्पूर्ण वातावरण को विशेष सकारात्मक बनाता है। रंग हमें केवल लुभाते ही नहीं, बल्कि हमारे मन और शरीर पर प्रत्यक्ष रूप से असर भी डालते हैं।
 
सूरज की लाली, धरती की हरियाली, चंदा की चाँदनी और गगन मण्डल में सतरंगी इंद्रधनुष का आकर्षण मानव के पंच महाभूत स्थूल शरीर को सदैव लुभाता रहता है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विविध प्रकार के रंग समाहित हैं। इस पंचभूत शरीर में भी कई तरह के रंगों का मिश्रण है। जैसे-पृथ्वी तत्व का रंग बैंगनी व नारंगी, जल का हरा एवं नीला, पावक (अग्नि) का लाल, व पीला, हवा का बैंगनी और आकाश का रंग प्रायः नीला है।
 
सफेद रंग शरीर में महत्वाकांक्षा को, केसरिया व भगवा रंग बलिदान व त्याग को, लाल रंग उत्तेजना को, काला रंग चिंतन व रहस्य को उत्पन्न करता है। पीला रंग ताप उत्पन्न करता है और हरा रंग शरीर में सर्दी व गर्मी के संतुलन को बनाए रखता है। नीला रंग मन को शांत तथा गंभीर बनाता है। लाल रंग जीवन में ऊर्जा शक्ति का विशेष संचार करता है।
 
इस प्रकार होली का पर्व विशेष राष्ट्रीय त्योहार है और यह त्योहार भारत ही नहीं बल्कि विश्व के विविध धर्मों के लोगों को अपनी लोकप्रियता के कारण खींच लेता है। अतः होली के पावन पर्व पर विश्व का सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म इस अवसर पर सम्पूर्ण जन मानव में उमंग व उत्साह को भर उसमें एकता को घोलता है।

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