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होलिकोत्सव

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holi
फागुन का महीना आते ही सारा वातावरण जैसा रंगीन हो जाता है और हो भी क्यों न, रंगों के त्योहार की बारी जो रहती है। फाल्गुन पूर्णिमा को रंग, उत्साह, मस्ती और उल्लास का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार का नाम है होली।
 
यह त्योहार जाति-भेद, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी से ऊपर उठकर मित्रता और भाई-चारे का त्योहार है। यह दिन तो दुश्मनों के भी गले मिलने का दिन होता है।
 
बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष जिसे देखो वह इस दिन रंग और उल्लास में डूबा रहता है। गम भूलने और खुशियों में वृद्धि करने अर्थात प्यार देने और प्यार लेने के इस त्योहार का नाम होलिकोत्सव है।
 
सम्मिलन, मित्रता और एकता के इस पर्व का नाम होली है। यह एक सामाजिक पर्व तो है ही, एकता और भाईचारे का त्योहार होने के कारण यह राष्ट्रीय त्योहार भी है।
 
होली पर धरती तरह-तरह के रंगों से सराबोर हो जाती है। रंगों की भूमिका हर भारतीय उत्सव में कहीं न कहीं अपना अलग असर रखती है। दीपावली की आतिशबाजी से झरते रंगीन गुल हों, रक्षाबंधन की रंगों से सजी-धजी राखियाँ हों, ईद और दशहरे पर सिलवाए गए नए वस्त्र हों, रंग का महत्व हर जगह मौजूद है। फिर होली तो रंगों का ही त्योहार है। रंगों की बरसात भी ऐसी कि सारा जहान बौरा जाए। बसंत की हवा के जवान झोंके, फागुन की मस्ती और रंगों का सुरूर किसे पागल नहीं कर देगा?
 
प्रकृति आपके साथ है। बसंत ने वातावरण रच दिया है। देर किस बात की है- उठाइए रंग और कर दीजिए हर उस चेहरे को रंगीन जो स्नेह चाहता है, प्यार चाहता है, मोहब्बत चाहता है, अपनापन चाहता है और चाहता है कि यह रिश्ता होली गुजर जाने के बाद भी बना रहे। तब तक बना रहे जब तक जीवन है। हर वर्ष उसकी याद दिलाने होली आती रहेगी।


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