हर होली में सर्वाधिक महत्व आग, फाग व राग का होता है। आग यानी होली जलाने के लिए लकड़ी और लकड़ी के लिए चंदा, अस्तु चंदे की उगाही भी एक माह पूर्व आरंभ कर देनी चाहिए।
होली खेलने से पूर्व तैयारियों में सर्वप्रथम एक दिन पूर्व फटे हुए या जिन्हें पहनते उकता गए हैं, उन कपड़ों को हवा, धूप, पानी दिखा, आसानी से पहचान वाली जगह पर तह करके रख दें और अगर चिथड़े मिल जाएं तो बेहतर होगा, क्योंकि होली में चिथड़े, तार-तार हुए या बहुत अधिक गंदे कपड़े अधिक उपयुक्त होते हैं।
गर कपड़े तार-तार न हुए तो आजकल के हुरियारे उन्हें तार-तार कर देते हैं।
* होली में चूंकि रंगों का महत्व है इसलिए सस्ते से सस्ते कभी न निकलने वाले (चमड़ी खरोचने के बाद भी) होली का वैभव बरकरार रखने वाले, घोर काले, घने हरे जैसे रंगों की जुगाड़ बहुत पहले ही कर लें, ताकि पहली मुलाकात में हुरियारों पर कीचड़ पानी व धूल का प्रयोग न करना पड़े। वैसे सफेद, कोलतार कालिख तथा काला मुंह करने वाला पदार्थ अधिक उपयुक्त होता है।
* होली की हुड़दंग में बजने वाली चंग पर फाग के साथ श्लील गीतों को अश्लील राग में और अश्लील गीतों को श्लील राग में गाया जाए, तो होलिकोत्सव का मजा कई गुना हो जाता है। हुरियारों को ऐसे साहित्य की रचना होली के दूसरे दिन से ही अगली होली के लिए आरंभ कर देना चाहिए।
* होली का पर्व हिन्दी माहों के अंतिम माह में आता है और कहा भी जाता है- अंत भला तो सब भला। इसलिए येन-केन प्रकारेण अपना हर किस्म का भला, हर होली के पूर्व या बाद में कर लेना चाहिए।