कान फिल्म फेस्टिवल से प्रज्ञा मिश्रा की रिपोर्ट ....
गुरुवार की दोपहर कान फिल्म फेस्टिवल में इंडिया पैवेलियन की औपचारिक शुरुआत हुई, और इस बार पैवेलियन का काम NFDC के जिम्मे है, कई लोग इस बात से खुश नज़र आए और कुछ को कोई फर्क नहीं पड़ता कि NFDC हो या फिक्की, बस चाय पानी मिल जाए, इंटरनेट का पासवर्ड मिल जाए और अगर कुछ खाने को मिल जाए तो सोने पे सुहागा।
इस मौके पर फ्रांस में भारत के राजदूत मोहन कुमार भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि यह अच्छा संयोग है कि इस साल कान फिल्म फेस्टिवल के सत्तर साल पूरे हुए और भारत की आज़ादी के भी 70 साल होने वाले हैं। लेकिन पिछले इतने सालों में भारत की फिल्मों की मौजूदगी न के बराबर ही रही है। वे यह कहने से नहीं चूके कि अगर भारत के फिल्मकारों को अपने काम को देखने की जरूरत है तो फ्रांस और कान फिल्म फेस्टिवल को भी भारतीय फिल्मों को एक अलग नज़र से देखने की जरूरत है।
वैसे तो भारत की एक शार्ट फिल्म 'आफ्टरनून क्लाउड्स' ही सही मायनों में फेस्टिवल में सेलेक्ट हुई है लेकिन हर बार की तरह शॉर्ट फिल्म कार्नर में करीब 40 फिल्में हैं। मार्केट में बन चुकी और लगभग तैयार फिल्मों का अम्बार लगा हुआ है। लेकिन संघमित्रा नाम की बनने वाली फिल्म ने सबका ध्यान खींच लिया, क्योंकि इसका पोस्टर स्क्रीन मैगज़ीन के पहले पन्ने पर छपा। राजदूत मोहन कुमार भी इस फिल्म की टीम और उनके प्लान से प्रभावित दिखे। क्योंकि उनके हिसाब से बाहुबली के बाद संघमित्रा हॉलीवुड को भी टक्कर दे सकेगी। बताया गया कि इस फिल्म का बजट बाहुबली 2 से भी कई गुना ज्यादा है। .जब तक यह फिल्म बने और सामने आए तब तक उन फिल्मों का इंतज़ार करें जो वाकई बन चुकी हैं या बन रही है।
नंदिता दास की 'मंटो', ईरानियन फिल्म डायरेक्टर मजीद मजीदी की फिल्म 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' जो मुंबई में ही शूट हुई है, अनूप सिंह की 'सांग ऑफ़ स्कॉर्पियंस' ऐसे ही कुछ नाम हैं।