घर में विराजित करें गणपति प्रतिमा
मनोकामना पूर्ण करते हैं गणपति
जब भी हम कोई शुभ कार्य आरंभ करते हैं, तो कहा जाता है कि कार्य का श्री गणेश हो या। इसी से भगवान श्री गणेश की महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। पूजा-पाठ, विधि-विधान, हर मांगलिक- वैदिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम गणपति का सुमरन करते हैं। हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है।
गणपति सब देवताओं में अग्रणी हैं। भगवान श्री गणेश के अलग-अलग नाम व अलग-अलग स्वरूप हैं, लेकिन वास्तु के हिसाब से गणपति के महत्व को रेखांकित करना आवश्यक है -
संतान गणपतिः
भगवान गणपति के 1008 नामों में से संतान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए, जिनके घर में संतान नहीं हो रही हो। वे लोग संतान गणपति की विशिष्ट मंत्र पूरित प्रतिमा, यथा संतान गणपतये नमः, गर्भ दोष घने नमः , पुत्रा पौत्रायाम नमः आदि मंत्र युक्तद्ध द्वार पर लगाएँ, जिसका प्रतिफल सकारात्मक होता है।
पति-पत्नी प्रतिमा के आगे संतान गणपति स्रोत का पाठ नियमित रूप से करें, तो शीघ्र ही उनके घर में संतान प्राप्ति होगी। साथ ही परिवार अन्य व्यवधानों से मुक्ति पाएगा। मात्र इतना कर देने से अन्य दूसरे धार्मिक अनुष्ठान पर किए जाने वाले खर्च से मुक्ति पा लेंगे।
विद्याप्रदायक गणपतिः
ऐसे घरों में, जहाँ बच्चे पढ़ते नहीं है अथवा वे उद्दण्ड होते हैं, पढ़ाई से कोसो दूर भागते हैं, बड़ों की इज्जत नहीं करते, गुरूजनों का आदर नहीं करते, ऐसे बच्चों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए गृह स्वामी को विद्या प्रदायक गणपति अपने घर के प्रवेश द्वार पर स्थापित करना चाहिए।
इस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ज्ञान रूपाय नमः, विद्या नितार्य नमः, विद्या धनाय नमः तथा ज्ञानमुद्रावते नमः जैसे मंत्रों का सम्पुट बच्चों में कौतूहल पैदा करता है।
विवाह विनायक गणपति:
जिन घरों में बच्चों के रिश्ते जल्द तय नहीं होते अथवा वे बच्चे शादी से वंचित रहते हैं, ज्यादा उम्र होने पर भी शादी में रूकावट पैदा होती है, कभी मनोवांछित वर नहीं मिलता, आदि समस्याओं का निवारण विवाह विनायक गणपति की मंत्रा युक्त प्रतिमा द्वारा संभव है।