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पत्र-पत्रिकाओं का रखरखाव

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- शोभा शर्म

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एक दिन मेरे समाचार-पत्र विक्रेता ने हिंदी समाचार-पत्र के स्थान पर घर में अँग्रेजी समाचार-पत्र डाल दिया। मैं हिंदी अखबार पढ़ने की अभ्यस्त हूँ। अतः मैं अपनी पड़ोसन के घर समाचार-पत्र लेने के लिए गई। तब पड़ोसन बोली वो देखो कैसे टुकड़े-टुकड़े करके फेंका है, मेरे बेटे कीटू ने। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

मैंने कहा- 'आज का अखबार आपके घर में अभी किसी ने पढ़ा तक नहीं और उसके ऐसे चिन्दे-चिन्दे! ऐसा क्यों?' तब पड़ोसन ने बताया कि पति सुबह अँधेरे ही काम पर चले जाते हैं। सुबह सारे काम मुझे समय से निपटाकर ऑफिस जाना होता है। तब उस समय मुझे मेरा बेटा कीटू बहुत तंग करता है इसलिए मैं रोज अखबार खोलकर उसके सामने रख देती हूँ। न्यूज पेपर की फर्र-फर्र आवाज से वह तब तक खेलता रहता है जब तक कि उसके चिन्दे-चिन्दे न कर दे।

अब प्रतिदिन उसे खेलने के लिए खिलौनों की बजाए अखबार ही चाहिए। उसकी यह आदत हो गई है। बातचीत के दौरान पड़ोसन ने कुछ पत्रिकाएँ भी बताईं जो उसके बड़े बेटे ने पेन-पेंसिल से चितरी हुई थीं। हीरो-हीरोइन के चित्र भी कटे हुए थे। लगभग प्रत्येक पत्रिका कटी-फटी, मुड़ी-तुड़ी धूल खाती बेतरतीब पड़ी हुई थी। उनकी लमारी पत्र और पत्रिकाओं से ठूँसी हुई एक कबाड़खाना लग रही थी। कई पत्रिकाओं पर तो धूल की मोटी परतें जमी हुई थीं।

कई घरों में हमें पत्र-पत्रिकाओं की ऐसी हालत देखने को मिलती है। पत्र-पत्रिकाओं का उचित रखरखाव आपके व्यक्तित्व का आईना है। इनके उचित रखरखाव से यह ज्ञात होता है कि आप इन्हें कितना महत्व देते हैं। तरीके से जमाए गए समाचार-पत्र, पत्रिकाओं से न केवल आलमारी बल्कि कमरा भी सुव्यवस्थित लगता है और यह गृहिणी की आदतों और सुघड़ता को भी दर्शाता है।

पत्रिकाओं से महत्वपूर्ण जानकारियाँ, सामान्य ज्ञान, जीवनोपयोगी और ज्ञानवर्धक लेख, सामाजिक-राजनीतिक चेतना, साहित्यिक रुचि की संतुष्टि, मनोविनोद और समय का सदुपयोग होता है। ये हमारी मित्र के साथ-साथ मार्गदर्शक भी होती हैं। अतः इन्हें संग्रहीत कर सुरक्षित रखना आवश्यक है।

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