(1)
लहसुन अम्ल (खट्टा) रस छोड़कर शेष पाँच (चरपरा, कड़वा, कसैला, लवण और मधुर) रसों से युक्त अमृततुल्य रसायन है। परमात्मा ने इसे बीमारियों को पैदा करने वाली खटाई से मुक्त रखा है। अतः लहसुन सेवन के दिनों में खटाई, विशेषकर अमचूर और इमली की खटाई का सेवन वर्जित है।(2)
यह खुश्क न होकर स्निग्ध है, स्नेहयुक्त होने के कारण पौष्टिक है। कफ के शमन के लिए शीत व वसंत ऋतु में और वात के शमन के लिए वर्षाकाल में सेवन करना चाहिए। पित्त के शमन हेतु शकर के साथ, कफशमन हेतु शहद के साथ, वातशमन हेतु घी के साथ।(3)
लहसुन एक उत्तम कृमिनाशक औषधि है। इसमें घाव को निरोग करने की गजब की शक्ति है। अनेक प्रकार के संक्रामक रोग, जो जीवाणुओं और विषाणुओं तथा अंतड़ियों के कीड़ों आदि से फैलते हैं, उग्रगन्धा लहसुन उन विषाक्त कीटाणुओं का नाश तो करता ही है, साथ ही आरोग्य की दृष्टि से महत्वर्पू बैक्टीरिया का रक्षण और वृद्धि भी करता है। इसमें पाया जाने वाला 'अलील सल्फाइड' नामक उड़नशील तेल, जो समस्त शरीर में बिजली की गति फैलने वाला सशक्त जन्तु नाशक है, शरीर के किसी भी कोने में क्षय (तपेदिक) के कीटाणुओं (ट्यूबरकल वसिली) का नाश करने में समर्थ है। अलील सल्फाइड तत्व के शरीर में बहुत गहराई के साथ प्रवेश करने के गुण के कारण लहसुनसिद्ध तेल की मालिश से यह शरीर के प्रत्येक छोटे-बड़े भाग में प्रविष्ट हो जाता है और क्षय को दूर करता है। रोग व संक्रामक बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है।
(4) कच्चे लहसुन का सेवन खून की गति को तेजी से बढ़ाता है, जिससे रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली रुकावटें दूर हो जाती हैं और शरीर के प्रत्येक कोने में, विशेषकर जोड़ों में जमा कचरा पसीने, मल-मूत्रादि के रास्ते निकल जाने से कई प्रकार के सन्धिवात मिटते हैं। जैसे आमवात, गठिया, ग्रधृसी, गर्दन की हड्डियों की सूजन, कटिवात तथा कमर दर्द आदि। अंगों का लकवा और त्वचा की शून्यता मिटती है। मन्दाग्नि, वात, श्वास और कफ का नाश होता है।