पेट में कई बार तेज जलन होती है, कभी इतनी तेज होती है कि लगता है जैसे पेट में आग लग गई हो या भट्टी जल रही हो। यह जलन खान-पान पर भी निर्भर रहती है।
कभी मिर्च न खाने वाले या कम खाने वाले को ज्यादा मिर्च का भोजन खाना पड़ जाए, तो भी यह परेशानी आ सकती है। कभी शरीर में गर्मी बढ़ जाने से भी जलन होती है, पेट हमारे शरीर का केन्द्र होता है, इसमे किसी प्रकार की खराबी नहीं होना चाहिए।
चिकित्सा : पुष्कर मूल, एरंड की जड़, जौ और धमासा चारों को मोटा-मोटा कूटकर शीशी में भर लें। एक गिलास पानी में दो चम्मच चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर, आधा सुबह व आधा शाम को पी लिया करें। पेट की जलन दूर हो जाएगी। यह प्रयोग 8 दिन तक करके बंद कर दें।
इस प्रयोग के साथ उचित पथ्य आहार का सेवन और अपथ्य का त्याग रखना आवश्यक है। पथ्य आहार में प्रायः कच्चा दूध और पानी एक-एक कप मिलकर, इसमें एक चम्मच पिसी मिश्री या चीनी डालकर फेंट लगाएं और खाली पेट चाय या दूध की जगह पिएं। चाय या दूध न पिएं। इस तरह दिन में दो या तीन बार यह लस्सी पिएं। भोजन के अन्त में आगरे का पेठा या पका केला खाएं। सुबह-शाम एक-एक चम्मच प्रवालयुक्त गुलकंद खाएं, दोपहर में आंवले का मुरब्बा (एक आंवला) खूब चबा-चबाकर खाएं। तले हुए और उष्ण प्रकृति के पदार्थ न खाएं।