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World Environment Day 2024: विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है और क्यों?

हमें फॉलो करें World Environment Day 2024: विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है और क्यों?

WD Feature Desk

, शनिवार, 1 जून 2024 (17:28 IST)
World Environment Day 2024:प्रतिवर्ष 5 जून को विश्‍व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन से हुई। 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए मनाया जाता है।ALSO READ: जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में विश्व पर्यावरण सप्ताह 2024 की शुरुआत
 
कौनसे 7 कारण हैं जिसके चलते धरती परेशान हैं?
 
1. वायु प्रदूषण : वैज्ञानिक कहते हैं कि वायु प्रदूषण (ग्रीन हाउस गैसों) के कारण धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं और ऑक्सिजन कम होती जा रही है। इससे कुदरत का मौसम और जलवायु चक्र बदल रहा है और जल भी खत्म हो रहा है। वायु प्रदूषण के कारण जहां मानव की उम्र पर असर पड़ रहा है वहीं धरती भी अकाल मृत्यु मरने के लिए तैयार हो रही है।
 
2. उत्खनन : खनन, उत्खनन या खुदाई का अर्थ है धरती के शरीर पर फावड़ा चलाना, उसके शरीर को छलनी करना। खनन वैध हो या अवैध वह खनन तो खनन ही है। खनन 5 जगहों पर हो रहा है- 1.नदी के पास खनन, 2.पहाड़ की कटाई, 3.खनीज, धतु, हीरा क्षेत्रों में खनन, 4.समुद्री इलाकों में खनन और 5.पानी के लिए धरती के हर क्षेत्र में किए जा रहा बोरिंग। इन सभी से धरती परेशान है। आने वाले समय में धरती की प्रथम लेयर जब दरक जाएगी तो मानव के रहने लायक जगह सिर्फ समुद्र में ही रहेगी।
3. ओजोन परत : ओजोन परत पृथ्वी और पर्यावरण के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करती है, लेकिन प्रदूषण और गैसों के कारण ओजोन परत का छिद्र बढ़ता जा रहा है। इस परत के कारण ही पृथ्वी पर आने वाली सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी अर्थात अल्ट्रा वॉयलेट किरणें नहीं आप पाती है और जिसके चलते ही जीवन उत्पत्ति और प्राणियों के रहने लायक वातावरण बना था। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती शीर्ष से पतली होती जा रही है, क्योंकि इसके ओजोन लेयर में छेद नजर आने लगे हैं। सभी वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विडंबना ही है कि जीवन का समापन co2 की कमी से होगा।
 
4. कटते वृक्ष से घटता ऑक्सीजन : ब्राजील, अफ्रीका, भारत, चीन, रशिया और अमेरिका के वन और वर्षा वनों को तेजी से काटा जा रहा है। वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सीएफसी जैसी जहरीली गैसों को सोखकर धरती पर रह रहे असंख्य जीवधारियों को प्राणवायु अर्थात 'ऑक्सीजन' देने वाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जंगल हैं तो पशु-पक्षी हैं, जीव-जंतु और अन्य प्रजातियां हैं। कई पशु-पक्षी, जीव और जंतु लुप्त हो चुके हैं। पेड़ों की भी कई दुर्लभ प्रजातियां और वनस्पतियां लुप्त हो चुकी हैं।
 
5. सूखती नदियों से गहराता जल संकट और लुप्त हो रहे जलीय जीव : विश्व की प्रमुख नदियों में नील, अमेजन, यांग्त्सी, ओब-इरिशश, मिसिसिप्पी, वोल्गा, पीली, कांगो, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, नर्मदा आदि सैकड़ों नदियां हैं। ये सारी नदियां पानी तो बहुत देती हैं, परंतु एक ओर जहां बिजली उत्पादन के लिए नदियों पर बनने वाले बांध ने इनका दम तोड़ दिया है तो दूसरी ओर मानवीय धार्मिक, खनन और पर्यावरणीय गतिविधियों ने इनके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण प्रमुख नदियों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। सिंचाई, पीने के लिए, बिजली तथा अन्य उद्देश्यों के लिए पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। इसके कारण तो कुछ नदियां लुप्त हो गई हैं और कुछ लुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं। जब सभी नदियां सूख जाएंगी तो भयानक जल संकट से त्रासदी की शुरुआत होगी।
6. पर्वत बने मैदान : पर्वत धरती की भुजाएं या कहें कि हवाओं का घर है। पक्के मकानों और सिमेंट की सड़कों के चलते पर्वत अब मैदान बनने लगे हैं। बहुत से शहर जहां पर पर्वत, पहाड़ी या टेकरी हुआ करते थे अब वहां खनन कंपनियों ने सपाट मैदान कर दिए हैं। पर्वतों के हटने से मौसम बदलने लगा है। गर्म, आवारा और दक्षिणावर्ती हवाएं अब ज्यादा परेशान करती है। हवाओं का रुख भी अब समझ में नहीं आता कि कब किधर चलकर कहर ढहाएगा। यही कारण है कि बादल नहीं रहे संगठित तो बारिश भी अब बिखर गई है। सोचिये जब धरती पर पर्वत नहीं होंगे तो क्या धरती होगी। एक सूखा मैदान या रेगिस्तान। 
 
7. समुद्र और रेगिस्तान : ग्लेशियर के पिघलने और समुद्री उत्खनन के कारण खबर में आया है कि समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और आने वाले समय में बहुत से तटवर्ती नगर डूब जाएंगे। मतबल धरती पर भविष्य में या तो रेगिस्तान रहेगा या समुद्र। समुद्र में जीव-जंतु होंगे और रेगिस्तान में सिर्फ रेत। सहारा और थार रेगिस्तान की लाखों वर्ग मील की भूमि पर पर्यावरणवादियों ने बहुत वर्ष शोध करने के बाद पाया कि आखिर क्यों धरती के इतने बड़े भू-भाग पर रेगिस्तान निर्मित हो गए। उनके अध्ययन से पता चला कि यह क्षेत्र कभी हराभरा था, लेकिन लोगों ने इसे उजाड़ दिया। प्रकृति ने इसका बदला लिया, उसने तेज हवा, धूल, सूर्य की सीधी धूप और अत्यधिक उमस के माध्यम से उपजाऊ भूमि को रेत में बदल दिया और धरती के गर्भ से पानी को सूखा दिया।
 
और फिर चला मानव को खतम करने का चक्र। लोग पानी, अन्न और छाव के लिए तरस गए। लोगों का पलायन और रेगिस्तान की चपेट में आकर मर जाने का सिलसिला लगातार चलता रहा। उक्त पूरे इलाके में सिर्फ चार गति रह गई थी- तेज धूप, बाढ़, भूकंप और रेतीला तूफान। यदि यही हालात रहे तो भविष्य कहता है कि बची हुई धरती पर फैलता जाएगा रेगिस्तान और समुद्र।
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