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आत्‍मनिर्भरता की दिशा में बढ़ते कदम

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प्रियंका पांडेय

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'जब तक यह विश्व व्याप्त रहेगा, प्रत्येक देश को अपनी सुरक्षा के लिए आधुनिकतम उपकरणों का प्रयोग करना पड़ेगा। मुझे कोई शक नहीं है कि भारत भी अपनी सुरक्षा के लिए आधुनिकतम उपकरणों को विकसित करेगा और मैं उम्मीद करता हूँ कि हमारे वैज्ञानिक परमाणु शक्ति का संरचनात्मक कार्यों के लिए ही उपयोग करेंगे...।’
- पंडित जवाहर लाल नेहरू
(26 जून, 1946)

आजादी के संग्राम के नायक और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यह स्वप्न, शायद स्वतंत्रता मिलने के कुछ समय पहले से ही आजाद भारत को विकासशीलता के आसमान के दूसरे सिरे तक पहुँचाने के लिए देखा होगा। आज जब हम विश्व के प्रबुद्ध और सबल देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर और आणविक शक्ति से संपन्न होने के गौरव के साथ, अमेरिका जैसी महाशक्ति के आगे परमाणु समझौते पर बराबरी के सम्मान की बात करते हैं तो यह भी आजाद भारत के कर्णधारों का कभी स्वप्न ही रहा होगा।

बात उस दौर से शुरू करना बेहतर होगा, जब पूरा विश्व दो गुटों (सोवियत यूनियन और अमेरिका) में बँटा हुआ था और चारों ओर शीतयुद्ध का वातावरण व्याप्त था। इस समय भारत अपने विकास के साथ-साथ परोक्ष रूप से सोवियत यूनियन की सामाजिक विचारधारा से काफी प्रभावित था। उसी समय सोवियत संघ परोक्ष रूप से भारत में परमाणु रिएक्टरों को स्थापित कर रहा था। पर इस कार्यक्रम का अस्तित्व प्रत्यक्ष रूप से इंदिरा गाँधी के प्रशासन में 1974 में करवाए गए ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नामक परमाणु परीक्षण में नजर में आया, जो उत्तरी राजस्थान के पोखरन नामक स्थान पर ‘शांतिप्रिय परमाणु परीक्षण’ के रूप में देखा गया।

मगर 11 मई और 13 मई, 1998 को ‘ऑपरेशन शक्ति’ के तहत अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पोखरन में सफल परमाणु परीक्षण द्वारा भारत ने सारे विश्व को चौंका दिया। तत्पश्चात भले ही भारत को भारी विदेशी ताकतों के दबाव से गुजरना पड़ा हो पर इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख बहुत मजबूत हुई।

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मगर इस पूरे मामले को नया स्वरूप तब मिला जब 2 मार्च, 2006 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर अपने हस्ताक्षर किए। इस समझौते के प्रमुख बिंदु कुछ इस प्रकार रहे-

•सैन्य उद्देश्य से जुड़े भारत के परमाणु कार्यक्रम में अड़चन नहीं डालेगा या हस्तक्षेप नहीं करेगा।

•अमेरिका भारत केन्द्रित परमाणु ईंधन आपूर्ति समझौता के लिए आईएईए के साथ वार्ता करने में अमेरिका भारत की मदद करेगा।

•अमेरिका परमाणु ईंधन की आपूर्ति में भावी अड़चन या व्यवधान से निबटने के लिए भारत को परमाणु ईंधन का सामरिक जखीरा विकसित करने में मदद करेगा।

•परमाणु ईंधन की आपूर्ति में कोई अड़चन आने पर परमाणु ईंधन की आपूर्ति बहाल करने के उपाय करने के लिए अमेरिका और भारत संयुक्त रूप से आपूर्तिकर्ता मित्र देशों के समूह की बैठक का आह्वान करेंगे, जिसमें रूस, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश शामिल हैं।

•दोनों देशों ने संबंधित उद्योगों और उपभोक्ताओं के हितों के अनुरूप आपस में परमाणु कारोबार को बढ़ावा देने पर सहमति जताई।

•भारत और अमेरिका ने परमाणु पदार्थ, गैर परमाणु पदार्थ उपकरण और अवयव के हस्तांतरण पर सहमति जताई। करार के अंतर्गत हस्तांतरित कोई भी विखंडनीय पदार्थ निम्न संवर्धित यूरेनियम होगा।

•निम्न संवर्धित यूरेनियम को परमाणु संयंत्र प्रयोगों में और रूपांतरण या फैब्रिकेशन के लिए ईंधन के रूप में उपयोग के उद्देश्य से हस्तांतरित किया जा सकता है।

•करार के दायरे में परमाणु संयंत्रों से जुड़े प्रयोगों और अनुसंधान विकास, डिजाइन, निर्माण, संचालन, देखरेख और संयंत्र का संचालन बंद करना शामिल है। अमेरिका के पास परमाणु ईंधन और प्रौद्योगिकी वापस लेने का अधिकार है, लेकिन उसे इस तरह की वापसी से आने वाली लागत की भरपाई करनी होगी।

भले ही अभी इस समझौते के कई बिंदु ऐसे हैं, जिनके संदर्भ में कई मतभेद हैं और समझौते पर अभी काफी स्‍पष्‍टीकरण बाकी है, पर विदेशी महाशक्तियों के भारत के साथ इस तरह के समझौते को निःसंदेह एशियाई समूह में भारत की बढ़ती साख का एक प्रतीक ही मानना चाहिए, जिसने विश्व की ताकतवर शक्तियों को एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है।

आज हम पलटकर अपने अतीत में झाँके तो अपने आप को तीसरी दुनिया से निकलकर अव्वल दर्जे के देशों की नजरों में सम्माननीय रूप में ही पाएँगे।

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