लाठी और लँगोटी वाला एक संत
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नूपुर दीक्षितदेश की आजादी का जिक्र हो और राष्ट्रपिता का स्मरण न आए, यह तो असंभव है। बापू भारत की आत्मा में बसते हैं और जब तक भारतरूपी इस महान राष्ट्र की आत्मा जीवित रहेगी, तब तक इसके अंतर्मन में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का स्तुतिगान प्रतिध्वनित होता रहेगा।सन् 1915 में, जब बापू दक्षिण अफ्रिका से भारत लौटे तो उन्होंने अपने मित्र गोपालकृष्ण गोखले की सलाह पर एक वर्ष तक भारत भ्रमण किया। पूरे एक साल तक भारत भ्रमण करने के बाद अहमदाबाद के नजदीक साबरमती नदी के किनारे उन्होंने सत्याग्रह आश्रम स्थापित किया।सत्याग्रह का प्रारंभ भारत में गाँधीजी के प्रथम सत्याग्रह की शुरुआत बिहार के चंपारण से हुई। 1917 में एक गरीब किसान के निवेदन पर वे चंपारण गए। वहाँ पर अँग्रेज सरकार ने किसानों के लिए यह सख्त नियम लागू कर दिया था कि वे अपनी जमीन के 15 प्रतिशत हिस्से पर नील की खेती करें और इस पूरी फसल को भूमि के किराए के रूप में उन्हें दें। गाँधीजी ने किसानों पर हो रहे इस जुल्म के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। इस सत्याग्रह के चलते अँग्रेज सरकार को एक जाँच समिति बनानी पड़ी। इस समिति के एक सदस्य स्वयं गाँधीजी थे। समिति की रिपोर्ट आने के बाद अँग्रेज सरकार को नील की खेती की अपनी नीति वापस लेनी पड़ी। भारत में सत्याग्रह की यह पहली विजय थी, जिसने गाँधीजी को आम भारतीयों के बीच लोकप्रिय बनाया।असहयोग आंदोलन की शुरुआत
सन् 1921 में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का देशव्यापी असर हुआ। आंदोलन से प्रभावित होकर देशभर में लोगों ने अँग्रेज सरकार द्वारा दी गई उपाधियाँ वापस लौटा दीं। विदेशी वस्तुओं का सामूहिक बहिष्कार होने लगा। विद्यार्थियों ने स्कूल और कॉलेज का बहिष्कार किया। इस आंदोलन में पहली बार महिलाएँ भी शामिल हुईं। आंदोलन के शंखनाद से ब्रिटिश सरकार हिल गई। ऐसा महसूस होने लगा कि यह आंदोलन अँग्रेज सरकार की जड़ों को हिंदुस्तान से निकाल फेंकेगा। लेकिन फरवरी, 1922 में चौरी-चौरा की घटना से आहत होकर गाँधीजी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया। चौरी-चौरा की घटना का प्रायश्चित करते हुए पाँच दिनों तक उपवास किया।
समाज सुधार की ओर
सन् 1924 में गाँधीजी ने सुधार कार्यक्रमों की ओर ध्यान केंद्रित किया। अस्पृश्यता निवारण, हिंदू-मुस्लिम एकता की स्थापना उनकी पहली प्राथमिकता थी। गाँव को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से खादी को बढ़ावा दिया। उन्होंने देश के विभिन्न अंदरूनी गाँवों की यात्रा की और जातिवाद, ऊँच-नीच को मिटाने का भरसक प्रयास किया।
दांडी मार्च 12
मार्च, 1930 को उन्होंने अँग्रेज सरकार के नमक कानून को तोड़ने के लिए दांडी मार्च प्रारंभ किया, जो कानून भारतीयों को नमक बनाने से रोकता था। 6 अप्रैल, 1930 को उन्होंने स्वयं समुद्र किनारे नमक बनाकर अँग्रेजों के इस कानून को तोड़ा। 12 मार्च से 6 अप्रैल की इस अवधि के बीच हजारों लोग दांडी यात्रा में उनके साथ जुड़ते गए। देश के दूसरों हिस्सों में भी दांडी यात्रा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा। कुछ ही हफ्तों में सैकड़ों महिलाएँ और पुरुष नमक कानून तोड़ने के जुर्म में गिरफ्तार किए गए और उन्हें जेलों में ठूँसा जाने लगा। आम जनता आगे होकर अपनी गिरफ्तारियाँ देने लगी। अँग्रेजों की जेलों में जगह कम पड़ने लगी और जेल जाने से डरने की बजाय लोग हँसते-हँसते जेलों की ओर बढ़ने लगे। आखिरकार अँग्रेज सरकार को बापू के आगे झुकना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन
8 अगस्त, 1942 को गाँधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ किया। जल्द ही अँग्रेज सरकार ने गाँधीजी समेत अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। गाँधीजी की गिरफ्तारी के विरोध में देशभर में प्रदर्शन, धरना और सत्याग्रह का दौर प्रारंभ हो गया। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटेन के नवनियुक्त प्रधानमंत्री एटली ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देने का वादा किया। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया।
गाँधीजी के भारत आगमन के पूर्व भी देश में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए विविध आंदोलन चल रहे थे। लेकिन तब तक यह आंदोलन वर्ग विशेष तक ही सीमित थे। गाँधीजी के स्वतंत्रता अभियान में शामिल होने के बाद इन आंदोलनों में आम आदमी की भागीदारी प्रारंभ हुई। इसी आम आदमी के असहयोग ने अँग्रेज सरकार को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। आजाद भारतीयों ने अपने बापू को राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार किया।