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विशाल मिश्रा
स्वतंत्रता का मतलब है जो हम अपने लिए नहीं चाहते वह दूसरों के लिए भी न करें। जातिगत आधार पर आरक्षण का ही मुद्दा लें। सरकार घोषणा कर देती है। चाहे वह अन्य पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति पैसे वाले घर से हो और उच्च जाति का गरीब घर से हो। यह समानता तो हुई ही नही। आरक्षण के पक्षधर और इसकी मुखालिफत करने वाले दोनों आमने-सामने हो जाते हैं।
धर्म के नाम पर टकराहट कोई नई बात नहीं है। मंदिर मस्जिद को लेकर या किसी अन्य धर्म के नाम पर। क्या हम पूरी तरह से धार्मिक रूप से स्वतंत्र हैं। अभी भी अनेक मंदिर मिल जाएँगे जहाँ निम्न जाति वर्ग के लोगों का जाना निषेध है।
आज स्वतंत्र कौन है? स्वतंत्रता का मतलब केवल दूसरे देश के शासक (अँग्रेज) देश छोड़कर चले गए इससे नहीं लगाया जाना चाहिए। यदि यही स्वतंत्रता है तो हमें कहना चाहिए कि शासन प्रणाली का हस्तांतरण कर चले गए। आज वही शासन देश के नेता चला रहे हैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लेकिन यदि देश का एक नागरिक वोट डालने में असमर्थ रह जाता है। तो मैं समझता हूँ कि उसके लिए तो इस लोकतंत्र के कोई मायने ही नहीं रह जाते। जब तक इस स्वतंत्रता का लाभ कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुँच जाता, तब तक इस स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है। आज देश की आबादी का कितना ही बड़ा हिस्सा होगा जिससे पूछें कि हमारे देश का नाम क्या है? या फिर यह भारत क्या है। निश्चित रूप से नहीं बता पाएगा।
उसे तो बस यह पता है कि सुबह उठकर काम पर जाना है जिससे पैसा मिलेगा और मैं रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएँ खरीद सकूँगा। यही उसका रोज का नियम हो जाता है। आर्थिक स्वतंत्रता की बात करें। पूँजीपतियों का एक वर्ग है जिसके पास में अथाह दौलत है और दिनों-दिन इसमें दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती जा रही है। दूसरी ओर गरीब और गरीब होता जा रहा है।
सप्ताह या पखवाड़े में आप समाचार पढ़ सकते हैं कि आर्थिक तंगी के चलते आदमी ने मौत को गले लगा लिया या सपरिवार खुदकुशी की। उसके लिए और उसकी तरह परेशान लोगों के लिए क्या मतलब रहा आपकी स्वतंत्रता का। उसके लिए तो जैसे अँग्रेज राज कर रहे थे, वैसे ही आज दूसरे लोग कर रहे हैं। कोई घर बैठे उन्हें हंटर लगाने तो शायद उन्हें गुलाम भारत में भी नहीं आता होगा।
आज देश की प्रतिभाएँ पलायन कर विदेशों में जाएँ। उनके लिए देश में अवसर क्यों नहीं हैं। वोट बैंक की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल वर्ग विशेष के लिए तो सुविधाएँ, आरक्षण, छात्रवृत्तियाँ उपलब्ध कराने को लालायित रहते हैं तो अन्य वर्ग क्या विदेशों से आकर बसे हैं। आज भारतीय नागरिकों को शायद इस तरह की परेशानियाँ विदेशों में भी नहीं उठानी पड़ती होंगी जोकि वह अपने घर (भारत) में महसूस करते हैं।
कदम-कदम पर ठगाता उपभोक्ता, बिजली का बिल बहुत ज्यादा भेज दिया। आत्महत्या कर ली। भूकंप, बाढ़ प्रभावितों को मदद की घोषणा तो हुई पर कैसे और कब पहुँचती है यह सभी को पता है। कोर्ट-कचहरी, पुलिस के मामले में फँस गया तो समझो बेचारे को जीवन ही बेकार लगने लग जाता है। यहाँ तक सुनने में आने लगता है कि इससे तो अँग्रेजों का शासन ठीक था।
इस बात में कोई दो मत नहीं कि आज विकासशील देशों की श्रेणी में हमारा देश अपने बलबूते पर अग्रणी है। आज उसकी ओर वक्र दृष्टि से देखने का साहस दुनिया की कोई ताकत करे। लेकिन स्वतंत्रता का लाभ समग्र रूप में देश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचे। इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। देश की युवा शक्ति को आगे बढ़ने मौका दें, उसे आगे लाने में मदद करें। दो टकिया राजनैतिक भावना से ऊपर उठकर राष्ट्रहित सर्वोपरि हो।
'स्वतंत्रता दिवस समारोह' तो प्रत्येक वर्ष मना लेते हैं। समारोह तो हर शहर, गली, मोहल्ले में जहाँ कोई किसी पार्टी का नेता आया नहीं कि समारोह मनना शुरू। कार्यकर्ता एकत्र हो जाएँगे, स्पीकर लगा लिए, पर्चे छपवा लिए, मंच लगवाया और यह हो गया समारोह। वैसा ही इस दिन भी कर देते हैं। प्रत्येक वर्ष वह तारीख आएगी ही जिस दिन अँग्रेज भारत छोड़कर चले गए।
लेकिन क्या वास्तव में आजादी की कीमत आजाद होने के बाद यहाँ के लोगों ने पहचानी। इस आजादी के लिए संघर्ष करने वालों की आत्मा भी इन्हें धिक्कारती होगी होगी कि हमने तो सोचा था कि आजाद होने के बाद देश के हालात सुधरेंगे। लेकिन तुलना करें तो यह आज नैतिक मूल्यों को ताक में रखकर गर्त में ज्यादा चले गए हैं। महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह की जयंती, पुण्यतिथि तो मनाएँगे लेकिन उनके आदर्शों पर नहीं चलेंगे।
आज समारोह मनाने के साथ-साथ बल्कि उससे भी ज्यादा जरूरत इस बात की है कि स्वतंत्रता के सही महत्व पर विचार कर उस दिशा में आगे बढ़ा जाए। हर भारतीय गर्व से कह सके मेरा भारत महान। उसके दिल के अंदर कहीं यह बात दबी आवाज में न निकले कि 100 में 90 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान।