ज्योति जैन
आज दिवस स्वतंत्रता पर्व का, युग संदेश लेकर आया,
जन गण में उत्साह स्रोत का, सुखद स्वच्छ निर्झर आया।
किंतु दु:खी है भारत माता, वीर शहीदों को खोकर,
स्वतंत्रता दिवस का पर्व मनाएँ, फिर कैसे खुश होकर?
विकास चहुँदिश अनुभव होता, वसुधा के हर कण-कण में,
संकल्प शक्ति की प्रचुर कमी है, आजादी के प्रांगण में।
चारित्रिक बल ही लोप हुआ, मर्यादाएँ सब नष्ट हुईं,
है क्रियाशील मानव लेकिन, कृतियाँ उसकी सब भ्रष्ट हुईं।
आज दु:खी यह देश हमारा, मानव मूल्यों को खोकर,
भौतिक साधन तो बढ़े बहुत, आध्यात्मिक चिंतन नष्ट हुआ।
मानव ऐसा स्वच्छन्द हुआ, जन गण ही सारा त्रस्त हुआ,
अब प्रजातंत्र के प्रहरी को, अराजकता से लड़ना होगा।
हर दीन-दु:खी निर्बलजन का, सुंदर भविष्य गढ़ना होगा,
बढ़ चलें लक्ष्य की पूर्ति में, संकल्प आस्था का लेकर।
तब पर्व वही सच्चा होगा, माँ को चारित्रिक बल अर्पण कर,
फिर दु:खी न हो भारत माता, चारित्रिक बल को खोकर ।
स्वतंत्रता दिवस का पर्व मनाएँ, तब फिर हम खुश होकर।