Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्या हो स्वतंत्रता का सही आशय !

हमें फॉलो करें क्या हो स्वतंत्रता का सही आशय !

राजश्री कासलीवाल

WDWD
कहने को तो हम स्वतंत्र देश में रहते हैं। हम जताते भी कुछ ऐसा ही हैं कि हमारे जैसा स्वतंत्र विचारों वाला, खुली सोच वाला, खुले दिल वाला इंसान इस‍ दुनिया में कोई नहीं है। लेकिन वास्तव में हकीकत पर जब हम गौर करें तो नजारा कुछ और ही होता है, कुछ और ही दिखाई देता है।

जी हाँ ! यह एक विचित्र किंतु परम सत्य है। जहाँ हम आज हमारी आजादी का 61 वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियाँ कर रहे हैं। वहीं इसमें बहुत कुछ परातंत्र भी है। साठ साल की आजादी के बाद भी हम वास्तव में आजाद नहीं है। कहने को, सुनने को हम आजाद दिख सकते हैं, लोगों के सामने अपनी बढ़ाई दिखाने के लिए बतला भी सकते हैं लेकिन यह पूरी तरह का सत्य नहीं हैं। आज भी आप भारत के किसी भी देश के किसी भी‍ कोने में चले जाएँ नहीं न कहीं आप मेरी इस बात की सत्यता को जरूर परखेंगे।

जहाँ तक मैं सोचती और समझती हूँ आजादी के कुछ वर्ष पूर्व की बात करें जब देश अँग्रेजों के अधीन था उस समय शायद हर आदमी के जीवन का उद्देश्य भार‍‍त देश को अँग्रेजों की गुलामी से आजाद करने का रहा होगा। तब उनके पास इसके अलावा और कुछ भी सोचने के लिए नहीं होगा। लेकिन आज के इस स्वंतत्र भारत की दुनिया का नजारा तो कुछ और ही हैं

कहने को तआजाद, स्व‍तंत्र लेकिन सब कुछ झूठ के पुलिंदे पर टिका हुआ है। आज भी इस स्वतंत्र भार‍त में दहेज के लिए नारियों की बली दी जाती हैं उन्हें काटा-मारा, जलाया जाता है। आज जहाँ लड़कियाँ हर मुकाबले में पुरुषों की बराबरी कर रह‍ी हैं तो आज भी कई घर ऐसे हैं जिसमें नारियों की वह बराबरी पुरुषों को, उनके घरवालों को सहन नहीं होती। आज भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में कोई कमी नहीं आई है। आज भी भार‍‍त में दंगे-फसाद होते ही रहते हैं। कई आतंकवादी संगठन कई गलत चीजों का इस्तेमाल करके भार‍त और उसकी स्वतंत्रता को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते रहते हैं। इससे कई घर, कई परिवार, कई गाँव-कस्बे, कितने ही इंसान तबाह हो रहे हैं।

webdunia
KaptanND
एक तरफ सत्ताधारी नेताओं का यह संगठन अपनी-अपनी ‍चालें चलते हुए भारत में अपनी‍ साख बनाए रखने के लिए कई असामाजिक कार्य करते हैं जैसे कि कुछ ही दिनों पूर्व हुए इंदौर और सूरत में हुए बम विस्फोट, दंगे यह सब एक चाल भी हो सकती है अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टी बचाने के लिए। लेकिन जो भी हुआ उससे क्या राजनीतिक पार्टी को कुछ फर्क पड़ा। नहीं !

क्योंकि इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। दंगों या बम विस्फोटों में जो भी मरे, जिनका भी नुकसान हुआ उससे किसी को कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि अगर ऐसा कुछ होता तो ‍फिर स्वतंत्र भारत की सोच कुछ और ही होनी चाहिए थी जैसी कि भार‍त देश को आजाद करवाने के समय भारतवासियों की, भारत के उन महान सपूतों की रही होगी।

लेकिन आज भी स्वतंत्र भार‍त पर एक प्रश्नचिह्न लगा हुआ है ! वह यह कि अगर सचमुच भारत देश स्वतंत्र है, आजाद है तो फिर उस आजादी की, उस स्वतंत्रता की सही मायने में क्या परिभाषा होनी चाहिए यह आम आदमी की सोच से परे हैं.... काश दुनिया के सभी लोग स्वतंत्रता का सही आशय समझें और उन्हीं परिदों की तरह भारत देश के हर इंसान को स्वतंत्रता से जीने दें, जिसमें खून, हत्या, डकैती, दहेज मामला या फिर कुछ भी कह लो जैसे- बम विस्फोट या राजनीतिक पार्टियों का खुल्लम-खुल्ला... आरोप-प्रत्यारोप सबकुछ बंद हो तभी शायद कुछ हद तक स्वतंत्र शब्द का आशय सही रूपेण पूर्ण हो....

जयहिंद जय भारत
और भार‍त के स्वतंत्र देशवासियों को मेरा नमन !

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi