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तेज गति बरकरार रहेगी...

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देश की अर्थव्यवस्था के बारे में वर्तमान में कहा जा रहा है कि इसकी गति अब धीमी पड़ गई है और विकास की गति को ब्रेक लग चुके हैं। किसी भी अर्थव्यवस्था के बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ने के भी नुकसान होते हैं और हम तो सत्रह वर्ष की प्रक्रिया अपनाकर इस स्तर पर पहुँचे हैं। देश की अर्थव्यवस्था को संभालने वाले सभी कारक इतने मजबूत हैं कि अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद अर्थव्यवस्था आठ प्रतिशत की दर से विकास कर ही रही है।

वैसे वर्ष 2007 तक अर्थव्यवस्था ने 8.8 प्रतिशत की दर से विकास किया है और वर्ष 2006-07 में तो यह आँकड़ा 9.6 प्रतिशत तक पहुँच गया, जो कि गत 18 वर्षों में सबसे ज्यादा था। भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारभूत परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदान उद्योग और सर्विस सेक्टर का रहा है। उद्योग क्षेत्र ने वर्ष 2007 में 10.63 प्रतिशत का विकास किया था जबकि सर्विस सेक्टर ने 11.18 प्रतिशत का। इसके अलावा परिवहन क्षेत्र व दूरसंचार के क्षेत्र में क्रमशः 14.65 प्रतिशत और 16.64 प्रतिशत विकास दर देखी गई थी। इसके अलावा बचत और निवेश की दर में भी वृद्धि दर्ज की गई।

वर्ष 2007-08 में वृद्धि इस प्रकार रही :
खाद्यान्न का उत्पादन 4.6 प्रतिशत की दर से बढ़ा।
अधोसंरचनात्मक क्षेत्र ने 5.6 प्रतिशत की दर से विकास किया।
निर्यात 23.02 बढ़ा जबकि आयात 27.01 प्रतिशत की दर से बढ़ा।
मुद्रा आपूर्ति (एम 3) में भी 20.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।

देश की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2000-01 में 460 यूएस डॉलर थी, जो कि 2006-07 में बढ़कर 797 यूएस डॉलर हो गई थी। वर्ष 2007-08 के लिए सेंट्रल स्टेस्टिकल ऑर्गेनाइजेशन ने 825.07 यूएस डॉलर बताई है जबकि यह कहा जा रहा है कि वर्ष 2016-17 में इसके 2000 यूएस डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है और वर्ष 2025 तक 4000 यूएस डॉलर प्रति व्यक्ति हो जाएगी। (नईदुनिया)

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