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'पद' और 'शिक्षा' से बदला आदिवासियों का जीवन

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- शफी शेख
पश्चिम निमाड़ के आदिवासी बहुल खरगोन और बड़वानी जिले में आदिवासियों की जीवनशैली को पद और शिक्षा ने काफी हद तक बदल डाला है। पैदल और बैलगाड़ी पर सफर करने वाला इस वर्ग का एक बड़ा तबका अब दुपहिया वाहन पर सवार होकर सफर करने लगा है। मुँह में सिगरेट, तो हाथों में मोबाइल है। घर में टीवी, तो आँगन में ट्रैक्टर खड़ा है। पद और शिक्षा ने आदिवासी वर्ग के 25 से 30 प्रतिशत लोगों को आधुनिकता की ओर तेजी से धकेला है। बावजूद इसके आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग अब भी ब्याज और शराब के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाया है।

पश्चिम निमाड़ के खरगोन जिले में निवासरत आदिवासियों की संख्या लगभग 35 प्रतिशत है। इस जिले की कुल जनसंख्या 15 लाख 29 हजार 562 में से 5 लाख 42 हजार 762 लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। वहीं बड़वानी जिले में इनकी तादाद 70 प्रतिशत से भी अधिक है। बड़वानी जिले की कुल जनसंख्या 9 लाख 27 हजार 861 में से 7 लाख 3 हजार 180 लोग अजजा के हैं। आजादी के बाद से इस वर्ग के लोगों का दोनों ही जिलों में मुख्य व्यवसाय कृषि और खेतीहर मजदूर रहा है।

शनैः शनैः इस वर्ग ने फालिए और गाँव से बाहर निकलकर शहर की ओर कूच किया है और वे शहरी क्षेत्र में होने वाले भवन निर्माणों के मजदूर बने और नगरीय क्षेत्र के संपन्न वर्ग के कृषकों के खेतों में हिस्सेदारी शुरू की। पंचायतीराज लागू होने एवं आदिवासी बाहुल्य छोटे-छोटे गाँव और फालियों में भी स्कूल खुलने से इस वर्ग का विकास हुआ है।

पद और शिक्षा ने इस समुदाय के 25 से 30 प्रतिशत लोगों की जीवनशैली को बदल डाला है। पंचायतीराज में मिले पंच, सरपंच, जनपद अध्यक्ष, जनपद प्रतिनिधि, जिला पंचायत प्रतिनिधि जैसे पदों और शिक्षा ने पैदल चलने वाले और बैलगाड़ी में सफर करने वाले आदिवासी को आधुनिकता की ओर ले जाने में योगदान दिया है।

पद और शिक्षा की बदौलत ही वर्तमान में 30 प्रतिशत आदिवासी मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं। 25 प्रतिशत के पास दुपहिया वाहन हैं। 10 प्रतिशत कार-जीप के मालिक हैं। 70 प्रतिशत से अधिक की अपनी निजी कृषि भूमि है। फर्क सिर्फ इतना है कि किसी के पास 2, तो किसी के पास 10, तो किसी के पास 50 एकड़ तक कृषि भूमि है। पद और शिक्षा से जब आर्थिक स्थिति में बदलाव आया तो पहनावे और रहन-सहन में भी बदलाव आना ही था।

लंगोटी, लहँगा और धोती के स्थान पर पेंट, शर्ट, सलवार सूट और साड़ी ने स्थान लिया है। यह वर्ग फालियों, मजरों एवं टोलों में अब भी निवासरत है। शासन एवं जनप्रतिनिधियों के साझा प्रयासों से इन फालियों, मजरों, टोलों में पानी के लिए हैंडपंप, सिंचाई के लिए तालाब एवं स्टापडेम बनाए जाने और फालियों तक बिजली पहुँचने से इस वर्ग को अपना विकास करने में सहायता मिली है।

वनांचलों में स्वास्थ्य सुविधाओं के पहुँचने से भी टोने-टोटकों और ओझाओं से नजदीकियाँ घटी हैं। सड़कों की सुविधा ने भी इन्हें लाभान्वित किया है। पद, शिक्षा और सुविधा ने फालियों में निवासरत आदिवासियों को शहरों से जोड़ा है। इस जुड़ाव से कृषि में भी आधुनिकता का समावेश हुआ है।

फालियों में पहुँचे टेलीविजन ने अंधविश्वास और बहू-पत्नी प्रथा के साथ ही बच्चों की अधिक संख्या को नियंत्रित किया है। आजादी के समय तक यह वर्ग अशिक्षित और रूढ़ीवादी था। न शिक्षा थी, न सुविधा थी और न ही कोई पद था। पंचायतीराज में मिले आरक्षण ने इस वर्ग के एक बड़े तबके की काया पलटने में अहम भूमिका निभाई है।

घर पर जुवार की रोटी और मूँग की दाल खाने वाला आदिवासी पद पर आने के बाद शहर की बेहतरीन होटलों में अपने खाने पर अच्छी-खासी रकम व्यय करने लगा है।

आजादी के बाद शनैः शनैः हुए बदलाव, शिक्षा, पद और सुविधा की बदौलत हुए परिवर्तन के लाभ से इस वर्ग का एक बड़ा तबका अब भी वंचित है। ब्याज पर राशि जुटाकर कृषि करने वाले आदिवासियों की संख्या में 25 प्रतिशत की कमी आई है। 75 प्रतिशत 2 से 5 एकड़ की भूमि वाले कृषक वर्तमान में भी ब्याज पर पैसा लेकर कृषि करने में जुटे हुए हैं।

प्रकृति ने साथ दिया तो कर्ज चुकाने में कोई दिक्कत नहीं है। प्रकृति के साथ नहीं देने पर फिर वही बदहाली का आलम। आजादी के बाद आदिवासी बहुल बड़वानी और खरगोन जिले में इस वर्ग में काफी बदलाव देखा जा रहा है। इस बदलाव के बावजूद शराब ने इनका घर नहीं छोड़ा है।

शिक्षा और पद के बावजूद इस वर्ग के 40 से 50 प्रतिशत लोग इस बुराई से दूर नहीं हो पाए हैं। हुआ यह है कि पद और शिक्षा ने हाथ की बनी शराब के स्थान पर विदेशी शराब को करीब ला दिया है। इस वर्ग के शत-प्रतिशत शिक्षित होने, शराब से दूर रहने और ब्याज से मुक्त होने के बाद ही आना संभव लग रही है।

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