विपुल रेगे हमारे राष्ट्रगान जन-गण-मन में 'अधिनायक; शब्द पर एक विवाद आजादी के पहले से चल रहा है। सन 1911 से लेकर अब तक ये आरोप लगता रहा है कि 'जन-गण-मन', ब्रिटिश जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा गया था। स्वाधीनता दिवस से ठीक पहले इंटरनेट पर हजारों लोगों को फिर इस तरह के ईमेल पहुंच रहे हैं कि राष्ट्रगान जॉर्ज के लिए लिखा गया था। इस तरह के विवाद कहीं-न-कहीं जन-गण-मन की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं।
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इस विवाद का अंत तभी संभव है, जब आरोप लगाने वाले और खंडन करने वाले अपनी बात को साबित करें। जानिए जन-गण-मन पर हुए विवाद के बारे में और साथ ही यह भी जानिए कि युवा इस विवाद को लेकर क्या नजरिया रखते हैं।
राष्ट्रगान को लेकर विवाद की जड़ें 27 दिसंबर 1911 को फैलना शुरू हुई थीं। इस दिन कांग्रेस के 27वें अधिवेशन में इस गान को सार्वजनिक रूप से पहली बार गाया गया था। इसके ठीक दूसरे दिन कई अखबारों ने लिखा कि टैगोर ने यह गान जॉर्ज पंचम को खुश करने के लिए लिखा है। इसके साथ ही देशभर में यह विवाद शुरू हो गया कि भारत का भाग्यविधाता कौन है? टैगोर ने आरोपों को बेबुनियाद बताया, लेकिन विरोध जारी रहा।
गीत के अंग्रेजी अनुवाद में टैगोर ने राज राजेश्वर को किंग ऑफ ऑल किंग्स लिखकर विरोधों को और हवा दे दी। टैगोर के समर्थकों ने भी अपनी ओर से आरोपों के सटीक जवाब दिए, लेकिन अफसोस कि विवाद 2011 में भी जस का तस बना हुआ है। 1947 में असेंबली में इस बात पर लंबी बहस चली कि राष्ट्रगान वंदे मातरम हो या जन-गण-मन। अंत में ज्यादा वोट वंदे मातरम के पक्ष में पड़े, लेकिन जवाहरलाल नेहरू जन गण मन को ही राष्ट्रगान बनाना चाहते थे।
टैगोर का पत्र- * 1914 में जॉन मुरे ने द हिस्टोरिकल रिकॉर्ड ऑफ इंपीरियल विजिट टू इंडिया में दिल्ली दरबार का विवरण प्रकाशित किया था और उसमें कहीं भी जन-गण-मन का जिक्र नहीं है। दरअसल 1911 के कांग्रेस के मॉडरेट नेता चाहते थे कि अधिवेशन के मंच से सम्राट दंपति का महिमामंडन भी किया जाए, लेकिन इस बात के लिए टैगोर कभी तैयार नहीं हुए।
लेखक राजीव दीक्षित के एक व्याख्यान में लिखा है कि इस गीत को लिखने के लिए अंग्रेजों ने टैगोर पर दबाव बनाया था। राजीव कहते हैं कि खुद टैगोर ने लंदन में रहने वाले अपने बहनोई को पत्र लिखकर इस बारे में बताया था। अंग्रेज अधिकारियों ने उन पर दबाव बनाया था कि वे वंदे मातरम की टक्कर में ऐसा गीत लिखें, जिसमें जॉर्ज पंचम की प्रशंसा हो।
क्या छपा था अखबार में- * अधिवेशन की कार्रवाई रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे एक गीत से शुरू हुई। टैगोर का यह गीत राजा पंचम जॉर्ज के स्वागत के लिए खास तौर से लिखा गया था। -28 दिसंबर 1911 द इंग्लिश मैन (कलकत्ता)
* कांग्रेस का अधिवेशन टैगोर के लिखे एक गीत से शुरू हुआ। जॉर्ज पंचम के लिए लिखा यह गीत अंग्रेज प्रशासन ने बेहद पसंद किया है। - 28 दिसंबर 1911 अमृत बाजार पत्रिका (कलकत्ता)
* भारत के मुक्ति संग्राम में १९११ का साल बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस साल जॉर्ज पंचम भारत आए और बंग-भंग का निर्णय रद्द हुआ। इससे भारतीयों में अंग्रेजों के न्याय के प्रति भरोसा पैदा हुआ। -मदनलाल वर्मा की किताब स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिकारी साहित्य का इतिहास का एक अंश
* भारत के राष्ट्रगान के संदर्भ में जो भी विवाद हैं वो अपनी जगह हैं, लेकिन अब भारतीयों को इस गान को स्वीकार कर लेना चाहिए। रवींद्र साहित्य का साधारण विद्यार्थी भी जानता है कि राज राजेश्वर ईश्वर को भी कहा जाता है। -साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी (1948)
जन-गण-मन : एक परिचय बांग्ला साहित्य के शिरोमणि कवि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित जन-गण-मन एक विशिष्ट कविता है। इस कविता के पहले छंद को राष्ट्रगान के रूप में गाया जाता है।
कवि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गायन अवधि- 52 सेकंड 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान को मान्यता 27 दिसंबर 1911 को कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार गाया गया संगीत में पांच अंतरें हैं कंपोजर- रामसिंह ठाकुर
युवा हैं टैगोर के साथ राष्ट्रगान के इस विवाद के चलते युवाओं का रुख बेहद आश्चर्यजनक नजर आ रहा है। सभी का एक स्वर में मानना है कि ये विवाद बेकार है और टैगोर की ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता।
नुपूर ने कहा कि ये गान हमारी शान है। इतने विवाद होने के बावजूद यह इतने साल बाद भी हमारी जुबान पर है। हम इसे नहीं बदलने देंगे। बचपन से इसी गान ने देश से प्यार करना सिखाया है।
श्रुति सरकार ने कहा कि गान नहीं बदलना चाहिए। टैगोर ने देश को ध्यान में रखकर ही एंथम बनाया होगा। उनका जो सोचने का स्तर है, उससे मुकाबला करना मुश्किल है।
विक्रांतसिंह ठाकुर ने बताया कि गान को बदलना नहीं चाहिए। नेशनल एंथम का कोई विकल्प नहीं है। हमारे इतने धर्मों के लोगों को जोड़कर रखता है गान। हमारा अपना गान है, इसे नहीं बदलेंगे। यह जैसा है हमें प्यारा है। हमें बदलाव पसंद नहीं है।
धर्मेंद्र पालीवाल ने कहा कि करेक्शन नहीं करना चाहिए। अभी हुए विवाद को थोड़े दिन बाद लोग भूल जाएंगे। उसको बदलने का हक केवल टैगोर को ही होना चाहिए था।