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15 अगस्त को होगा देशभक्ति और कृष्णभक्ति का मिलन

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ब्रह्मानंद राजपूत

* 71वें स्वतंत्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष आलेख 
 
इस साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दोनों साथ-साथ पड़े हैं। दोनों पर्वों का अपना-अपना महत्व है। एक पर्व स्वतंत्रता दिवस है, जो कि हमारा राष्ट्रीय पर्व है। इसी दिन हमारा हिन्दुस्तान आज से 70 साल पहले 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से स्वतंत्र हुआ था इसलिए इस दिन का भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए एक विशेष महत्व है। इस दिन हर भारतवासी अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करता है जिनके खून-पसीने और संघर्ष से हमें आजादी नसीब हुई। 
 
स्वतंत्रता के मायने हर नागरिक के लिए अलग-अलग होते हैं। कोई व्यक्ति स्वतंत्रता को अपने लिए खुली छूट मानता है जिसमें वो अपनी मर्जी का कुछ भी कर सके, चाहे वो गलत हो या सही हो। लेकिन स्वतंत्रता सिर्फ अच्छी चीजों के लिए होती है, बुरी चीजों के लिए स्वतंत्रता अभिशाप बन जाती है इसलिए स्वतंत्रता के मायने तभी हैं जब स्वतंत्रता में मर्यादा और समर्पण का भाव हो।
 
राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस की तरह ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी भारतवर्ष सहित पूरे विश्वभर में फैले हुए सनातनधर्मियों द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने द्वापर युग में अपने 8वें अवतार के रूप में मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण रूप में मथुरा के अत्याचारी राजा कंस की बहन देवकी की कोख से जन्म लिया था। चूंकि भगवान विष्णु इस धरा पर खुद अवतरित हुए थे इसलिए यह दिन 'जन्माष्टमी' के रूप में विख्यात हुआ। 
 
अत्याचारी कंस ने अपनी मृत्यु के डर से अपनी बहन देवकी और अपने बहनोई वासुदेव को कारागार में कैद किया हुआ था। कृष्ण जन्म के समय चारों तरफ घना अंधेरा छाया हुआ था और घनघोर वर्षा हो रही थी। श्रीकृष्ण जन्म लेते ही वासुदेव-देवकी की कंस द्वारा हाथ-पैरों में लटकाई गईं बेड़ियां अपने आप खुल गईं और जिस कारागर में वासुदेव-देवकी बंद थे, उस कारागार के सभी द्वार स्वयं ही खुल गए। कारागार के सभी पहरेदार ईश्वरीय शक्ति से गहरी निद्रा में सो गए। 
 
वासुदेव टोकरी में श्रीकृष्ण को सुलाकर अपने सिर पर टोकरी रखकर उफान मारती हुई यमुना को पार कर गोकुल में अपने मित्र नंद गोप के घर ले गए। वहां पर नंद की पत्नी यशोदा ने भी एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया था। वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए। श्रीकृष्ण का लालन-पालन यशोदा व नंद ने किया। अपने बचपन में ही बाल श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला और अत्याचारी कंस बाल कृष्ण को मारने के किसी भी कुप्रयास में सफल नहीं हुआ। अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस को मारकर मथुरा नगरी के लोगों को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
 
जन्माष्टमी के दिन भारत के प्रत्येक हिन्दू परिवार में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, पुत्र जन्मोत्सव की तरह मनाया जाता है। घर-घर में इस दिन बधाइयां गाई जाती हैं और बहुत ही धार्मिक माहौल होता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से रंगी होती है और देश के प्रत्येक मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का भक्तिभाव के साथ धूमधाम से आयोजन होता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पूरे दिन नर-नारी तथा बच्चे व्रत रखकर रात्रि 12 बजे अपने घर विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन कर मंदिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं।
 
स्वतंत्रता दिवस देशभक्ति का पर्व है और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हमारे ईष्टदेव भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का पर्व है। जब देशभक्ति और ईश्वर की भक्ति का मिलन होता है तो एक अलग ही समरसता का माहौल होता है। इस बार की 15 अगस्त पर देशभक्ति का पर्व स्वतंत्रता दिवस और ईश्वर की भक्ति का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दोनों साथ-साथ पड़े हैं इसलिए देश में हर घर में एक तरफ देशभक्ति के गीत चल रहे होंगे और साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की खुशी में बधाई भजन गाए जा रहे होंगे। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होगा जिसका साक्षी संपूर्ण देश बनेगा। इस दिन पूरे देश में भारतमाता की जय, वंदे मातरम् के उद्घोष के साथ जब 'नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की' का उद्घोष होगा तो यह पल अत्यंत ही दर्शनीय होगा।
 
भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं के लिए अत्यंत प्रसिद्ध हैं। बेशक भारत को स्वतंत्र हुए 70 साल हो गए हों, लेकिन अब भी श्रीकृष्ण के भारत देश में बाल अधिकारों का हनन हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने की उम्र में काम करते दिख जाते हैं। आज बाल मजदूरी समाज पर कलंक है। इसके खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा, साथ ही साथ बाल मजदूरी पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया जाना चाहिए जिससे कि बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे। शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। गरीबी दूर करने वाले सभी व्यावहारिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिए। 
 
बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा, जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुंच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिए समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे। आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरूरत है और देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे और इस दिशा में उचित कार्रवाई करे, साथ ही साथ उनके अधिकार दिलाने के प्रयास करें। देश का हर बच्चा कन्हैया का स्वरूप है इसलिए कन्हैया के प्रतिरूप से बालश्रम कराना पाप है। इस पाप का भागीदार न बनकर देश के हर नागरिक को देश के नन्हे-मुन्ने कन्हैयाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाना चाहिए जिससे कि हर बच्चा बड़ा होकर देश का नाम विश्वस्तर पर रोशन कर सके।
 
भारत देश में कानून बनाने का अधिकार केवल भारतीय लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद को दिया गया है। जब भी भारत में कोई नया कानून बनता है तो वो संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पास होकर राष्ट्रपति के पास जाता है। जब राष्ट्रपति उस कानून पर बिना आपत्ति किए हुए हस्ताक्षर करता है तो वो देश का कानून बन जाता है। लेकिन आज देश के लिए कानून बनाने वाली भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था भारतीय संसद की हालत दयनीय है। जो लोग संसद के दोनों सदनों में प्रतिनिधि बनकर जाते हैं, वे लोग ही आज संसद को बंधक बनाए हुए हैं। 
 
जब भी संसद सत्र चालू होता है तो संसद सदस्यों द्वारा चर्चा करने की बजाय हंगामा किया जाता है और देश की जनता के पैसों पर हर तरह की सुविधा पाने वाले संसद सदस्य देश के भले के लिए काम करने की जगह संसद को कुश्ती का अखाड़ा बना देते हैं जिसमें पहलवानी के दांव-पेचों की जगह आरोप-प्रत्यारोप और अभद्र भाषा के दांव-पेंच खेले जाते हैं, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। आज जरूरत है कि देश के लिए कानून बनाने वाले संसद सदस्यों के लिए एक कठोर कानून बनना चाहिए जिसमें कड़े प्रावधान होने चाहिए जिससे कि संसद सदस्य संसद में हंगामा खड़ा करने की जगह देश की भलाई के लिए अपना योगदान दें। 
 
भगवान श्रीकृष्ण ने जब तक द्वारिका पर राज किया तब तक वे आम नागरिक के प्रतिनिधि और उनके सुख-दु:ख के भागीदार रहे। इसका उल्लेख हमारे प्रमुख धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में किया गया है। लेकिन आज हमारे जनप्रतिनिधि आम जनता के प्रतिनिधि न होकर सिर्फ और सिर्फ अपने और अपने लोगों के प्रतिनिधि बनकर खड़े होते हैं यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। 
 
एक स्वतंत्र गणतांत्रिक देश में जनप्रतिनिधियों से देश का कोई भी नागरिक ऐसी अपेक्षा नहीं करता है। हर जनप्रतिनिधि का फर्ज है कि वह अपने और अपने लोगों का प्रतिनिधि बनने की बजाय अपने क्षेत्र की संपूर्ण जनता का प्रतिनिधि बने और देश के सभी जनप्रतिनिधियों को भगवान कृष्ण से प्रेरणा लेकर उनकी तरह न्यायप्रिय शासन करना चाहिए जिसमें समाज के हर तबके के लिए स्थान हो तभी हमारी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रह पाएगी। 
 
बेशक हम अपना 71वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हों लेकिन आज भी देश में महिलाओं को पूर्णत: स्वतंत्रता नहीं है। आज भी देश में महिलाओं को बाहर अपनी मर्जी से काम करने से रोका जाता है। महिलाओं पर तमाम तरह की बंदिशें परिवार और समाज द्वारा थोपी जाती हैं, जो कि संविधान द्वारा प्रदत्त महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों का हनन करती है। आज भी देश में महिलाओं के मौलिक अधिकार चाहे समानता का अधिकार हो, चाहे स्वतंत्रता का अधिकार हो, चाहे धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हो, चाहे शिक्षा और संस्कृति संबंधी अधिकार हो, समाज द्वारा नारियों के हर अधिकार को छीना जाता है या उस पर बंदिशें लगाई जाती हैं, जो कि एक स्वतंत्र देश के नवनिर्माण के लिए शुभ संकेत नहीं है।
 
कोई भी देश तब अच्छे से निर्मित होता है, जब उसके नागरिक चाहे महिला हो या पुरुष हो उस देश के कानून और संविधान का पूर्ण रूप से सम्मान करे और उसका कड़ाई से पालन करे। आज बेशक भारत विश्व की उभरती हुई शक्ति है। लेकिन आज भी देश काफी पिछड़ा हुआ है। देश में आज भी कन्या जन्म को दुर्भाग्य माना जाता है और आज भी भारत के रूढ़िवादी समाज में हजारों कन्याओं की भ्रूण में हत्या की जाती है। सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। सरेआम महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार के किस्से भारत देश में आम बात हैं। 
 
कई युवा (जिनमें भारी तादाद में लड़कियां भी शामिल हैं) एक तरफ जहां हमारे देश का नाम ऊंचा कर रहे हैं वहीं कई ऐसे युवा भी हैं, जो देश को शर्मसार कर रहे हैं। दिनदहाड़े युवतियों का अपहरण, छेड़छाड़, यौन-उत्पीड़न कर देश का सिर नीचा कर रहे हैं। हमें पैदा होते ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है, पर आज भी विकृत मानसिकता के कई युवा घर से बाहर निकलते ही महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने से नहीं चूकते। इस सबके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार शिक्षा का अभाव है। शिक्षा का अधिकार हमें भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में अनुच्छेद 29-30 के अंतर्गत दिया गया है लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में नारी शिक्षा को सही नहीं माना जाता है। नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के साथ भारतीय समाज को भी आगे आना होगा तभी देश में अशिक्षा जैसे अंधेरे में शिक्षारूपी दीपक को जलाकर उजाला किया जा सकता है। जब नारी को असल में शिक्षा का अधिकार मिलेगा तभी नारी इस देश में स्वतंत्र होगी।
 
गीता में कहा गया है कि 'सा विद्या या विमुक्तये' यानी कि विद्या ही हमें समस्त बंधनों से मुक्ति दिलाती है इसलिए राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए बिना भेदभाव के सभी को शिक्षा का अधिकार दिया जाना चाहिए। भगवान कृष्ण के राज में भी नारियों का काफी सम्मान किया जाता था और उनको पूर्ण अधिकार दिए गए थे। भगवान कृष्ण भी खुद नारियों की काफी इज्जत करते थे। वे भगवान श्रीकृष्ण ही थे जिन्होंने द्रौपदी की लाज को बचाया था और भरी सभा में पांडवों की पत्नी की इज्जत को तार-तार होने से बचाया था। 
 
भगवान श्रीकृष्ण से देश के सभी पुरुषों को सीख लेकर विपरीत परिस्थितियों में जज्बे के साथ खड़ा रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर नारी के स्वाभिमान की रक्षा के लिए कृष्ण भी बनना चाहिए तभी किसी देश में स्वतंत्रता के मायने होते हैं। इन मायनों को देश के नागरिक ही खुद स्थापित करते हैं।
 
भारत देश बेशक एक स्वतंत्र गणराज्य सालों पहले बन गया हो लेकिन इतने सालों बाद आज भी देश में धर्म, जाति और अमीरी-गरीबी के आधार पर भेदभाव आम बात है। लोग आज भी जाति के आधार पर ऊंच-नीच की भावना रखते हैं। आज भी लोगों में सामंतवादी विचारधारा घर की हुई है और कुछ अमीर लोग आज भी समझते हैं कि अच्छे कपड़े पहनना, अच्छे घर में रहना, अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और आर्थिक विकास पर सिर्फ उनका ही जन्मसिद्ध अधिकार है। 
 
इसके लिए जरूरत है कि देश में संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा के अधिकार के जरिए लोगों में जागरूकता लाई जाए जिससे कि देश में धर्म, जाति, अमीरी-गरीबी और लिंग के आधार पर भेदभाव न हो सके। गीता से भी हमें धर्म-जाति, अमीरी-गरीबी और लिंग के आधार पर भेद न करने की सीख मिलती है। भगवान श्रीकृष्ण भी हर वर्ग के व्यक्तियों का सम्मान करते थे और बिना भेदभाव के अपनी कृपा सब पर वर्षाते थे।
 
स्वतंत्रता दिवस प्रसन्नता और गौरव का दिवस है। इस दिन सभी भारतीय नागरिकों को मिलकर अपने लोकतंत्र की उपलब्धियों का उत्सव मनाना चाहिए और एक शांतिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण एवं प्रगतिशील भारत के निर्माण में स्वयं को समर्पित करने का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि भारत देश सदियों से अपने त्याग, बलिदान, भक्ति, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी और श्रमशीलता के लिए जाना जाता है तभी सारी दुनिया ये जानती और मानती है कि भारत भूमि जैसी और कोई भूमि नहीं।
 
आज भारत एक विविध, बहुभाषी और बहुजातीय समाज है जिसका विश्व में एक अहम स्थान है। आज का दिन अपने वीर जवानों को भी नमन करने का दिन है, जो कि हर तरह के हालातों में सीमा पर रहकर सभी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित और स्वतंत्र महसूस कराते हैं। साथ-साथ उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करने का भी दिन है जिन्होंने हमारे देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई। 
 
आज 71वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान और गणतंत्र के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहरानी चाहिए और देश के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मिलकर सामूहिक रूप से सामना करने का प्रण लेना चाहिए। साथ-साथ देश में शिक्षा, समानता, सद्भाव, पारदर्शिता को बढ़ावा देने का संकल्प लेना चाहिए जिससे कि देश प्रगति के पथ पर और तेजी से आगे बढ़ सके।
 
इसके साथ ही भारत के प्रत्येक नागरिक को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से सीख लेकर अपने स्वतंत्र भारत की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। जिस प्रकार भगवान कृष्ण गोपियों के लिए बांसुरी बजाते थे, अर्जुन को समय आने पर भगवद् गीता का ज्ञान दिया था और बुरी शक्ति शिशुपाल के लिए सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया था और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था, उसी प्रकार भारत देश को हर विदेशी ताकत के साथ ऐसे ही निपटना चाहिए।
 
अगर कोई विदेशी ताकत गोपी बनकर आती है तो उसके लिए बांसुरी बजाई जानी चाहिए, अगर कोई विदेशी देश अर्जुन बनकर आता है तो उसको भगवद् गीता का ज्ञान देना चाहिए, अगर कोई देश शिशुपाल बनकर आता है तो हमारे सशक्त और स्वतंत्र भारत देश को सुदर्शन चक्र उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए और उसको माकूल जवाब देना चाहिए। 
 
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन समस्त राष्ट्र को राह दिखाता है। उनके जीवन से सभी देशवासियों को प्रेरणा लेकर अपने राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए जिससे कि भारत माता पुन: जगद्गुरु के सिंहासन पर काबिज हो सके। 

भारत विभाजन
 
 

 

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