15 August Poems : शिवमंगल सिंह 'सुमन' हिंदी साहित्य में एक प्रसिद्ध प्रगतिशील लेखक, हिंदी कवि और शिक्षाविद रहे हैं। उनका जन्म 05 अगस्त 1915 को हुआ था। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात उन्होंने 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस की प्रथम वर्षगांठ पर रचीं यह विशेष पंक्तियां यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं।
आइए पढ़ें शिवमंगल सिंह 'सुमन' की एक खास कविता...
-शिवमंगल सिंह 'सुमन'
युग-युग की शांति अहिंसा की, लेकर प्रयोग गरिमा समस्त,
इतिहास नया लिखने आया, यह पुण्य पर्व पन्द्रह अगस्त।
पन्द्रह अगस्त त्योहार, राष्ट्र के चिरसंचित अरमानों का,
पन्द्रह अगस्त त्योहार, अनगिनत मूक-मुग्ध बलिदानों का।
जो पैगम्बर पददलित देश का, शीश उठाने आया था,
आजन्म फकीरी ले जिसने, घर-घर में अलख जगाया था।
भूमंडल में जिसकी सानी का, मनुज नहीं जन्मा दूजा,
मेरे कृतघ्न भारत तुमने, गोली से जिसकी की पूजा।
लज्जित हो तो उसके सपनों, संकल्पों को आबाद करो,
यह दिन जो लाया, अपने उस नंगे फकीर को याद करो।
हमने जो सपने देखे, यह उस आजादी का वेष नहीं,
देखो इस उजली खादी में, कोई कालिख तो शेष नहीं।
जो चले गए अनरोए, अनगाए स्वतंत्रता पर बलि हो,
आंसू से अपनी अंजुलि भर, आओ उनको श्रद्धांजलि दो।
रण है, दरिद्रता, दैन्य, निपीड़न, बेकारी, बेहाली से,
रण है, अकाल, भुखमरी, विवशता, तन-मन की कंगाली से।
रण, जाति धर्म के नाम, विषवमन करने वाले नारों से,
रण, शांति प्रेम के विद्वेषी, मानवता के हत्यारों से।
जब तक जन-गण-मन जीवन में, शोषण तंत्रों का लेष रहे,
जब तक भारत मां के आंचल में, एक दाग भी शेष रहे।
हम विरत न हों संकल्पों से, पलभर भी पथ पर नहीं थमें,
पन्द्रह अगस्त की शपथ यही, तब तक आराम हराम हमें।
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