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आजादी का वो पल जिंदगी रहा होगा...

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प्रीति सोनी 
भारत को गुलामी से आजाद हुए 69 साल बीत गए। इन 69 सालों से हर साल हम उस आजादी का जश्न स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं, क्योंकि अब हम आजाद हैं। किन मायनों में आजाद हैं, वर्तमान में यह शोध का विषय है। शोध का विषय तो यह भी है, कि हम असली आजादी के मायने और महत्व जानते भी हैं या नहीं। यदि जानते हैं, तो उसे महसूस क्यों नहीं कर पाते हम। 
 

 
आजादी की लड़ाई में शामिल लोगों के लिए तो निश्चित तौर पर वह क्षण जिंदगी का रहा होगा .. बल्कि 200 सालों के बाद केवल वही क्षण जिंदगी की तरह लगा होगा। उसी क्षण उन्होंने जिंदगी में आजादी का स्वाद चखा होगा, जो कड़े संघर्षों की आंच पर कई देशभक्तों के खून को उबालकर पाई होगी। वह स्वाद केवल वे ही चख पाए होंगे, जो घुप्प अंधेरे की दुनिया से रौशनी की एक किरण को पकड़कर, उजले आसमां तले पहुंचे होंगे.... और उस आजादी की असली कीमत वही समझ पाए होंगे, जिन्होंने अपनों को हमेशा के लिए खोकर उसे पाया होगा और पाने का उत्सव भी वे अपनों के साथ नहीं मना सके होंगे। 
 
कितने सैलाब उमड़े होंगे असंख्य भावनाओं के, जब भावों को समझना भी असंभव सा होगा और व्यक्त करना भी। जब लड़खड़ाती जुबान से मुस्कुराता एक शब्द निकला होगा... कि अब हम आजाद हैं। हां वही एक पल आजादी की असली कीमत.. अमूल्य कीमत को बयां कर पाया होगा, जिसमें छटपटाहट भरे संघर्ष के बाद एक स्वतंत्र सांस मिली थी। अधमरी भूख को एक निवाला मिला था और गहरी प्यास में पानी की पहली बूंद मिली थी। वही थी असली आजादी जो उस वक्त जिंदगी से बढ़कर एक जिंदगी सी महसूस हुई होगी। 
 
अगले पेज पर वर्तमान आजादी का कितना भाग है हमें ....
 

लेकिन वर्तमान में हर साल हम जिस आजादी का गुणगान करते हैं, वह एक ऐसी दवा की तरह लगती है, जिसकी बगैर बीमारी के कोई कीमत नहीं जानता। लेकिन जब बीमारी होती है, तो वही दवा जीवन बचाने वाले अमृत की तरह महसूस होती है।

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हमने कभी उस गुलामी नाम की बीमारी का स्वाद चखा ही नहीं, तो हम इस निशुल्क मिली आजादी की कीमत कैसे समझ सकते हैं। हम तो केवल आजादी का उतना ही महत्व समझते हैं, जितना कि मंदिर में जाकर हाथ जोड़ने का। क्योंकि हमें बचपन से सिखाया गया है कि भगवान के आगे हाथ जोड़ना है, वही सबकुछ हैं, वैसे ही बचपन से ये भी सुना है, कि अंग्रेजों से आजाद होने के लिए हमारे महापुरूषों ने जानें दी है, यह महत्वपूर्ण है। लेकिन क्या दिल पर हाथ रखकर कहा जा सकता है, कि हम आजादी की असली कीमत जानते हैं ? बिल्कुल नहीं । 
 
आखि‍र कौन सा है वह धर्म, जि‍सने ईश्वर के आधार पर बंटवारा कर मानवता का अपमान न किया होगा......कौन सी है वह राजनीति जिसने ईमानदारी को ठगकर सच को अपमानित नहीं किया होगा... और कौन-सा है वह समाज, जहां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नारी का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की, उसकी गरिमा का बलात्कार कर,.. भारत मां के सम्मान को अपमानित नहीं किया होगा। 
 
आखिर यह सारे अपमानों की वजह भी तो आजादी ही है, जो हमने खुद ही स्वयं को दे रखी है। फर्क बस इतना ही है, कि एक वो आजादी थी, जिसमें हम सत्य, अहिंसा नैतिकता और अपने आदर्शों के लिए लड़कर पाई थी। और एक यह आजादी है, जिसमें हम झूठ, फरेब, हिंसा और अनैतिकता का प्रयोग कर अपने ही आदर्शों का दमन कर रहे हैं।

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