भारत मां का शीश हिमालय
चरण हैं हिन्द महासागर,
मातुश्री के हृदय देश में
बहती गंगा हर-हर-हर।
अगल-बगल माता के दोनों
लहराते हैं रत्नाकर,
पूरब में बंगाल की खाड़ी
पश्चिम रहे अरब सागर।
मध्यप्रदेश में ऊंचे-ऊंचे
विंध्य, सतपुड़ा खड़े हुए,
सोन, बेतवा, चंबल के हैं
यहीं कहीं चरणों के घर।
छल-छल छलके यहां नर्मदा
यमुना-केन चहकती हैं,
दक्षिण में गोदावरी, कृष्णा
पार उतारें भवसागर।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
रहते हैं सब मिल-जुलकर,
यहां चाहते देवता रहना
स्वर्ग लोक से आ-आकर।
कहीं भेद न भाव धर्म का
न ही जाति का बंधन,
करुणा, दया, प्रेम का भारत
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