Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ये कहां आ गए हम... आजादी अपनी-अपनी...

Advertiesment
हमें फॉलो करें 15 अगस्त
राष्ट्र इस 15 अगस्त को राष्ट्र की आजादी के 66वीं वर्षगांठ मना रहा है। हमें यह आजादी गांधी, नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद आदि तपे हुए देशभक्त राजनेताओं के साथ ही क्रांतिकारियों भगतसिंह, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आजाद आदि क्रांतिकारियों के दुर्धर्ष संघर्ष की बदौलत मिली है। आज हम आजाद भारत में खुली सांस ले रहे हैं।

 
FILE
हालांकि राष्ट्र ने कई क्षे‍त्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है, किंतु बढ़ती आबादी व भ्रष्टाचार ने इन सभी को लील लिया है। अधिकतरों को जैसे हर बात में मनमानी करने की आजादी मिल गई हो।

हमें आजादी जरूर मिली है, पर क्या हम आज भी सचमुच आजाद हैं? क्या हमें अपने स्वतंत्र भारत में वो सब कुछ मिला, जिनकी कल्पना हमारे महान राजनेता तथा क्रांतिकारी कर गए थे? क्या हम आज भी अपने आपको बेखौफ व सुरक्षित महसूस करते हैं? क्या आज भी सरकारी दफ्तरों में बिना-लिए दिए काम हो जाता है? क्या विभिन्न शासकीय सेवाओं को पाने के लिए हमें घंटों लगने वाली कतार से कभी मुक्ति मिलेगी? क्या आज भी गरीबों को दोनों वक्त की रोटी मिल जाया करती है? क्या लाखों नौजवानों को उचित रोजगार मिल रहा है? क्या अस्पतालों, स्कूलों व शासकीय कार्यालयों में सुगमतापूर्वक आम जनता का काम हो जाया करता है?

ऐसे अनेक सवाल हैं, जो आज भी हमको मथते रहते हैं। देखते हैं हम कि आजादी के इतने वर्षों बाद हम कहां तक चले आए हैं। आजादी क्या मिली, कुछ लोगों ने इसका मनमाना दुरुपयोग करना शुरू कर दिया है। हमारी पुरानी पीढ़ी ने क्या सपना देखा था और आजकल क्या हो रहा है।

 

अगले पेज पर पढ़िए... संसद में आजादी के मायने...


संसद में मनमानी की आजादी? : हमारे सांसद संसद में जाकर जनहित के मुद्दों को उठाने के बजाए शोर-शराबा व हो-हल्ला मचाना अपनी जीत मानते हैं। जनहित से जुड़े मुद्दों को वे दरकिनार ही रखते हैं। लेकिन बात जब अपने स्वार्थ की आती है तो ये सारे सांसद अपने सारे बैर भूलकर एक हो जाते हैं।

webdunia
FILE

ऐसा ही हुआ था कुछ समय पूर्व। बात यह थी कि सभी सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाने के मुद्दे पर संसद में बहस थी। सभी सांसदों ने एकराय होकर इस मुद्दे पर कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। खाली नानाजी देशमुख जैसे तपे हुए व गांधीवादी सांसद ने ही इसकी हामी नहीं भरी थी व पुराना वेतन लेना ही स्वीकार किया था। यह बात हमारे सांसदों के दोहरे आचरण को उजागर करती है।

...और भ्रष्टाचारियों की अपनी आजादी, कैसे... पढ़ें अगले पेज पर...


भ्रष्टाचार की आजादी? : आज देश में चहुंओर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। अधिकतर शासकीय विभागों में बिना लिए-दिए काम ही नहीं होता। अगर आप ईमानदारीपूर्वक 'गांधीगिरी' करके काम करवाना चाहो, तो भ्रष्ट लोग आपको इतने चक्कर लगवा देंगे कि आप सोचेंगे कि इतना समय खराब करने व पेट्रोल-डीजल तथा धन को बरबाद करने के बजाए रिश्वत दे देना ही बेहतर!

webdunia
FILE
देश के कुछेक राजनेता भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। जेल की हवा खाने के बावजूद इनके चेहरे पर शर्म का जरा भी भाव नहीं है। चोरी और सीनाजोरी कर रहे हैं ये राजनेता। इनके खिलाफ बोलने-लिखने वाले को 'सबक' सिखाने की धमकी दी जाती है। ईमानदारी का खामियाजा हाल ही में हम 'दुर्गाशक्ति' मामले में देख चुके हैं।

ऐसा भी नहीं है कि सभी नेता व कर्मचारी भ्रष्ट हैं। पर ईमानदार रह ही गए कितने हैं? जो ईमानदार बचे हैं भी, वे या तो स्वभावगत ईमानदार हैं या फिर कुछेक ऐसे भी ईमानदार हैं, जिन्हें 'खाने' का मौका ही नहीं मिला हो। इन्हें 'कृत्रिम ईमानदार' कहा जा सकता है।

मिलावट की आजादी? : आज हर खाने-पीने की चीजों में मिलावट जारी है। शायद ही कोई खाद्य या पेय सामग्री बची होगी जिसमें मिलावट नहीं की जाती हो। मिलावटखोरों पर धन का लालच इस कदर हावी है कि वे पैसे के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।

धनिया, हल्दी, जीरा, सौंफ आदि वस्तुओं में भारी मिलावट की जा रही है। इससे जन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। मिलावटी वस्तुएं खाने से कई लोग अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं। कइयों के शरीर के महत्वपूर्ण अंग बीमार होकर काम करना बंद कर रहे हैं तो कई मौत के मुंह में समा रहे हैं।

बेबस महिलाएं और आजाद लफंगे... पढ़ें अगले पेज पर...


webdunia
FILE
छेड़छाड़ की आजादी? : सड़क पर जाती हुई लड़की व महिला से छेड़छाड़ व अपहरण के बाद बलात्कार की खबरें इतनी आम हो गई हैं कि लोगों ने इस प्रकार की खबरों को पढ़ना व गंभीरता से लेना ही छोड़ दिया है।

आज देश में हर दिन कोई न कोई वामा इस वहशीपन की शिकार हो रही है। बीते दिसंबर माह में ही देश व संसार को हिला देना वाला कुख्यात 'दिल्ली गैंगरेप' कांड हुआ था। यह भी आजादी के दुरुपयोग का एक नमूना है।

झूठ बोलने की आजादी? : कुछेक राजनेता और सरकारी कर्मचारी झूठ बोलने में बड़े माहिर माने जाते हैं। पहले तो वे ऊलजलूल बयान जारी करते हैं, जब मामला तूल पकड़ जाता है तो वे सारा दोष प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर मढ़ देते हैं यह कहते हुए कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।

मेरा तो उद्देश्य कतई भी ऐसा कोई बयान देने का नहीं था। यह तो झूठ बोलना ही हुआ न! आजकल अधिकतर बयानों की वीडियो रिकॉर्डिंग होती है, तो इससे भी ये लोग मुकर जाते हैं। ये तो महाझूठ बोलना हुआ न!

इन लोगों का चाल, चेहरा व चरित्र रसातल में जा चुका है। इनसे अधिक उम्मीद करना बेमानी है। जब सारे कुएं में ही भांग घुली हो तो अधिक की अपेक्षा आम जनता को करनी ही नहीं चाहिए। दलालों की भी एक समानांतर सरकार चलती है, जो जनता और इन भ्रष्टों के बीच सेतु का काम करती है।

अगले पेज पर पढ़ें... क्यों आजाद हैं कामजोर...


webdunia
FILE
कामचोरी की आजादी? : कुछेक सरकारी विभागों में तो कुछ कर्मचारी काम ही नहीं करते या बहुत कम करते हैं। समय पर आने वाले कर्मचारियों की संख्या नगण्य है।

काम करने वालों को सरकारी विभागों में बेवकूफ समझा जाता है। कामचोर, भ्रष्ट व तिकड़मी को 'समझदार' कहा जाता है। यह स्थिति काफी चिंताजनक है।

महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि एक भी व्यक्ति अगर फालतू बैठा रहेगा या कम काम करेगा तो दूसरे व्यक्ति को दोगुना काम करना होगा। अत: हर व्यक्ति को अपने कार्यस्थल पर ईमानदारीपूर्वक काम को अंजाम देना चाहिए। यह भी एक राष्ट्रसेवा कहलाएगी।

शैक्षणिक मनमानी की आजादी? : शासकीय स्कूलों में‍ शिक्षा का हाल बेहाल है। कहीं स्कूल है तो मास्टर नहीं। कहीं मास्टर है तो स्कूल नहीं और क्लासें पेड़ के नीचे लग रही हैं। कहीं दोनों ही नहीं हैं। स्कूल होने पर भी कुछ मास्टर अपनी क्लास में जाना अपनी तौहीन समझते हैं। वे 'सरकारी दामाद' की भांति अपना कार्य करते हैं। उन्हें विद्यार्थियों की पढ़ाई व उनके भविष्य की कोई चिंता नहीं होती है।

ये मास्टर लोग दोहरा आचरण भी अपनाते हैं। ये खुद तो शासकीय नौकरी करते हैं तथा अपने बच्चों को निजी व कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाते हैं। यानी इन्हें नौकरी तो शासकीय चाहिए, किंतु सेवाएं निजी। चूंकि इन्हें पता रहता है कि सरकारी स्कूलों के क्या हाल हैं, अत: ये अपने बच्चों को इन स्कूलों में भर्ती नहीं करवाते हैं।

इसी प्रकार की मन:स्थि‍ति अन्य कुछ शासकीय कर्मचारियों की भी है। इन्हें भी नौकरी सरकारी व सेवाएं निजी चाहिए होती है। इसे दोहरा आचरण ही कहा जाएगा।

खनिज संपदा लूटने की आजादी क्यों... पढ़ें अगले पेज पर...


webdunia
FILE
अस्वच्‍छता की आजादी? : कई सार्वजनिक जगहों पर हम दृष्टिपात करें तो पाते हैं कि अधिकतर जगहों पर गंदगी का ढेर लगा हुआ है।

लोग अपना घर, ऑफिस व दुकान तो साफ-स्वच्छ रखते हैं‍ किंतु सार्वजनिक जगहों को गंदा करने से बाज नहीं आते। विदेशों की साफ-स्वच्छता की तो बहुत दुहाई दी जाती है, किंतु वही आचरण वे अपने भारत मुल्क में अमल में नहीं लाते हैं।

चूंकि विदेशों में सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फेंकना व गंदगी करना दंडनीय अपराध है, अत: लोग इस भय से सार्वजनिक स्थानों पर कचरा नहीं फेंकते हैं।

अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों में काफी भारी जुर्माना लगाया जाता है व बार-बार गंदगी करने पर जेल भी हो सकती है, अत: वहां के लोग स्वस्फूर्त प्रेरणा से ही साफ-स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग देते हैं। भारत में भी इस दिशा में पहल की जानी चाहिए।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi