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राजस्थान का दिल 'जोधपुर'

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आज हम आपको राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर लेकर चलते हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर के बाद सर्वाधिक चहल-पहल वाला शहर है जोधपुर। 1459 में राठौड़ वंश के प्रमुख राव जोधा ने जोधपुर की स्थापना की। राजस्थान के बीचोंबीच होने से इस शहर को राजस्थान का दिल भी कहते हैं।

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राठौड़ वंश के मुगलों के साथ अच्छे संबंध थे। महाराजा जसवंतसिंह (1678) ने शाहजहाँ को सम्राट के सत्तायुद्ध में मदद की थी। औरंगजेब के काल में मुगलों के साथ इनके संबंध बिगड़ गए। औरंगजेब की मृत्यु के बाद महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को अजमेर से खदेड़ दिया। महाराजा उमेदसिंह के काल में जोधपुर एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित हुआ। मध्ययुगीन काल से जोधपुर के शाही परिवारों का पारंपरिक खेल पोलो रहा है। जोधपुर में थलसेना और वायुसेना की बड़ी छावनी है।

प्रमुख पर्यटन स्थल

उमेद भवन पैलेस : महराजा उमेदसिंह (1929-1942) ने उमेद भवन पैलेस बनवाया था। यह महल छित्तर महल के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह महल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। हाथ से तराशे गए पत्थरों के टुक़डे अनोखे ढंग से एक-दूसरे पर टिकाए गए हैं। इनमें दूसरा कोई पदार्थ नहीं भरा गया है। महल के एक हिस्से में होटल और दूसरे में संग्रहालय है, जिसमें आधुनिक हवाई जहाज, शस्त्र, पुरानी घड़ियाँ, कीमती क्रॉकरी तथा शिकार किए जानवर रखे गए हैं।

मेहरानगढ़ किला : 150 मीटर ऊँचे टीले पर स्थित मेहरानगढ़ किला राजस्थान का बेहतरीन और अजेय किला है। राव जोधा ने 1459 में इसका निर्माण किया, लेकिन समय-समय पर शासकों ने उसमें बढ़ोतरी की। शहर से 5 किमी दूर घुमावदार रास्ते से किले में प्रवेश किया जा सकता है।

जयपुर की सेना के दागे तोपगोलों के निशान आज भी दिखाई देते हैं। बाईं ओर किरतसिंह सोड़ा नामक सिपाही की छतरी है, जिसने आमेर की सेना के खिलाफ लड़ते हुए प्राण त्याग दिए थे। विजय द्वार महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को मात देने की स्मृति में बनवाया था।

यहाँ फूल महल, झाँकी महल भी दर्शनीय है। किले से नीचे जाते हुए महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की संगमरमर की छतरी है। यहाँ तक जाने का रास्ता पथरीले टीलों से होकर गुजरता है।

मंडोर गार्डन : मारवाड़ के महाराजाओं की पहली राजधानी मंडोर थी। जोधपुर से 5 मील दूरी पर स्थित इस गार्डन में बनी छतरियाँ हिन्दू मंदिर के अनुसार बनवाई गई थीं, जो चार मंजिला ऊँची हैं। सबसे बेहतरीन छतरी महाराजा अजीतसिंह (1678-1724) की है। शूरवीरों की मूर्तियाँ पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।

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जोधपुर के आसपास

थार रेगिस्तान का प्राचीन शहर ओसियन में ब्राह्मणी और जैन शैली के मंदिर हैं। इनकी वास्तुकला अत्यंत सुंदर है। सन-सेट के वक्त यहाँ ऊँट की सवारी बहुत आकर्षक लगती है। गुड़ा में वन्य जीव तथा प्रकृति की सुंदर छटा निहारने का उत्तम स्थान है। हजारों पंछी यहाँ प्रतिवर्ष आते हैं। कायलाना तालाब का सौन्दर्य देखने लायक है।

तालाब से 1 किमी दूर माचिया सफारी पार्क है। यहाँ हिरण, मरूस्थल की लोमड़ी, नीलगाय, खरगोश, जंगली बिल्ली, मुंगूस, बंदर आदि काफी संख्या में पाए जाते हैं। पालीवाल ब्राह्मणों के नाम से प्रसिद्ध पाली में सोमनाथ तथा नौलखा मंदिर काफी पुराने हैं, जो अपनी शिल्पकला के लिए मशहूर हैं।

सोजत शहर पाली के पास सुकरी नदी के किनारे बसा है। इसका पुराना नाम तमरावती है। किले में बड़ा जलाशय और सेजला माता सहित अन्य मंदिर हैं। उर्स के दौरान मीर मस्तान की दरगाह मुख्य आकर्षण है। मेहंदी के पेड़ यहाँ प्रसिद्ध है, जो बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक अपने हाथ-पैरों में मेहंदी लगवाना नहीं भूलते।

मीराबाई की जन्मस्थली कुरकी भी यहीं है। निमज में स्थित देवी दुर्गा का मंदिर 9वीं शताब्दी में निर्मित है। नाड़ोल एक छोटा सा गाँव है, जो किसी जमाने में शाकंभरी के चौहानों की राजधानी थी। धानेराव तथा औवा के मंदिर भी दर्शनीय हैं। नागौर में अहिच्छत्रगढ़ किले को मुगल सम्राट अकबर तथा शाहजहाँ ने बनवाया था। यह मुगल बगीचा आज भी उतना ही तरोताजा लगता है। शहर तथा इमारतों पर मुस्लिम प्रभाव झलकता है। रामदेवजी और तेजाजी का मेला प्रसिद्ध है


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