Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बौद्ध तीर्थ कुशीनगर

यहाँ बुद्ध चिरनिद्रा में हैं...

हमें फॉलो करें बौद्ध तीर्थ कुशीनगर
WDWD
अंकित श्रीवास्तव
तथागत, भगवान राम, अज्ञेय, राहुल सांस्‍कृतायन तथा कुशीनगर की भूमि। प्राचीनकाल के सोलह महाजनपदों में से एक ‘कुशीनार’ (आज का कुशीनगर) अपने प्राचीन, वैभवशाली, धर्म और शांति के लिए विश्‍व के धार्मिक मानचित्र पर विशिष्‍ट स्‍थान रखता है। रामायण काल में भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी कुशावती को 483 ईसा पूर्व बुद्ध ने अपने अंतिम विश्राम के लिए चुना। मल्‍लों की राजधानी होने के कारण प्राचीनकाल में इस स्‍थान का अत्‍यंत महत्‍व था। बौद्ध धर्मावलंबियों के अनुसार लुंबनी, बोधगया और सारनाथ के साथ ही इस स्‍थान का विशद् महत्‍व है।

  हिंदू राजाओं के काल में चीन से ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्‍सिंग ने अपनी यात्रा वृत्तांत में इस स्‍थान के गौरव का वर्णन किया है। कुशीनगर का सबसे ज्‍यादा महत्‍व बौद्ध तीर्थ के रूप में है।      
1876 में यह स्‍थान एक बार फिर प्रकाश में आया, जब तत्‍कालीन पुरातत्‍ववेत्‍ता लॉर्ड कर्निंघम ने महापरिनिर्वाण मूर्ति की खोज की।

आइए करें सैर -
कुशीनगर की सीमा में प्रवेश करते ही भव्‍य प्रवेशद्वार आपका स्वागत करता है। इसके बाद आम तौर पर पर्यटकों की निगाह महापरिनिर्वाण मंदिर की ओर पड़ती है। वैसे दूर से ही दिखता पैगोडा अपने सुनहरे आकर्षण के कारण सभी का मन मोह लेता है।

1. महापरिनिर्वाण मंदिर - कुशीनगर का महत्‍व महापरिनिर्वाण मंदिर से है। इस मंदिर का स्‍थापत्‍य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। मंदिर के डाट हूबहू अजंता की गुफाओं के डाट की तरह हैं। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्‍पर्श मुद्रा) 6 मीटर लंबी मूर्ति है, जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह मंदिर उसी स्‍थान पर बनाया गया है, जहाँ से यह मूर्ति निकाली गई थी। मंदिर के पूर्व हिस्‍से में एक स्‍तूप है। यहाँ पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्‍कार किया गया था। मूर्ति भी अजंता के भगवान बुद्ध की महापरिनिवार्ण मूर्ति की प्रतिकृति है। वैसे मूर्ति का काल अजंता से पूर्व का है। करीब 2500 वर्ष पुरानी मूर्ति।

webdunia
WDWD
इस मंदिर के आसपास कई विहार (जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे) और चैत्‍य (जहाँ भिक्षु पूजा करते थे या ध्‍यान लगाते थे) भग्‍नावशेष और खंडहर मौजूद हैं जो अशोककालीन बताए जाते हैं। मंदिर परिसर से लगा काफी बड़ा सा पार्क है, जहाँ पर्यटकों को जमावड़ा लगा रहता है। वैसे इस पूरे परिसर में अलौकिक शांति का वातावरण है। सुबह और शाम सुगंधित अगरबत्‍तियों और बुद्धम् शरणम् गच्‍छामि के घोष से वातावरण और भी पवित्र और शांतिदायक लगता है।

2. माथा कुँवर मंदिर- महापरिनिर्वाण मंदिर से कुछ दूर आगे माथा कुँवर का मंदिर है। इसके स्‍थानीय लोगों में भगवान विष्‍णु के अवतार होने की मान्‍यता भी प्रचलित है। इस मूर्ति के भी करीब पाँच सौ वर्ष पुराना होने का प्रमाण मिलता है। माथा कुँवर की मूर्ति काले पत्‍थर से बनी है। इसकी ऊँचाई करीब तीन मीटर है। मूर्ति भगवान बुद्ध के बोधि प्राप्‍त करने से पूर्व की ध्‍यान मुद्रा में है।

webdunia
WDWD
3. रामाभार स्‍तूप- भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद 16 महाजनपदों में उनकी अस्‍थियों और भस्‍म को बाँट दिया गया। इन सभी स्‍थानों पर इन भस्‍मों और अस्‍थियों के ऊपर स्‍तूप बनाए गए। कुशीनगर में मौजूद रामाभार का स्‍तूप इन्‍हीं में से एक है। करीब 50 फुट ऊँचे इस स्‍तूप को मुकुट बंधन विहार कहा जाता है। हालाँकि स्‍थानीय वाशिंदों में यह रामाभार स्‍तूप के नाम से ही आज भी जाना जाता है।

4. जापानी मंदिर- महापरिनिर्वाण मंदिर के उत्‍तर में मौजूद जापानी मंदिर अपनी विशिष्‍ट वास्‍तु के लिए प्रसिद्ध है। अर्द्धगोलाकर इस मंदिर में भगवान बुद्ध की अष्‍टधातु की मूर्ति है। मंदिर सुबह 10 से शाम 4 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है। मंदिर के चार बड़े-बड़े द्वार हैं, जो सभी दिशाओं की ओर बनाए गए हैं। इस मंदिर की देखरेख जापान की एक संस्‍था की ओर से की जाती है।

5. संग्रहालय- जापानी मंदिर के ठीक सामने संग्रहालय है। इसमें बुद्धकालीन वस्‍तुओं, धातुओं, कुशीनगर में खुदाई के दौरान पाई गई मूर्ति, सिक्‍के, बर्तन आदि रखे गए हैं। इसके साथ ही मथुरा और गांधार शैली की दुर्लभ मूर्तियाँ भी यहाँ देखने को मिलेंगी।

  मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्‍टधातु की मूर्ति है। मंदिर का वास्‍तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है। इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं। मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है।      
6. वाट थाई मंदिर- वर्तमान में सबसे आकर्षण का केंद्र यहाँ पर हाल ही में निर्मित वाट थाई मंदिर है। मंदिर का निर्माण थाईलैंड सरकार के सौजन्‍य से किया गया है। सफेद पत्‍थरों से बने इस मंदिर के दो तल हैं। निचला तल बौद्ध भिक्षुओं के ध्‍यान और साधना के लिए है, वहीं दूसरा, ऊपरी तल सभी पर्यटकों के लिए खुला है। इस मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्‍टधातु की मूर्ति है। मंदिर का वास्‍तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है। इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं। मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है। साथ परिसर के चारों ओर भव्‍य बागवानी की गई है। पौधों का विशेष आकार भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। मंदिर परिसर में मौजूद चैत्‍य सभी के आकर्षण का केंद्र बन जाता है। लोग बरबस इस सोने की परत चढ़े चैत्‍य के साथ फोटो खींचना चाहते हैं।

7. चीनी मंदिर- कुशीनगर के विस्‍तार के साथ ही यहाँ पर सबसे बनाए गए मंदिरों में से एक चीनी मंदिर है। मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति अपने पूरे स्‍वरूप में चीनी लगती है। इसकी दीवारों पर जातक कथाओं से संबंधित पेंटिंग अत्‍यंत ही आकर्षक है। मंदिर के बाहर सुंदर फव्वारा है। साथ ही लगा एक विहार है।

8. जल मंदिर और पैगोडा- महापरिनिर्वाण मंदिर से पहले बीच तालाब में बना भगवान बुद्ध का मंदिर और इसके सामने बना विशाल पैगोडा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। जल मंदिर तक जाने के लिए तालाब के ऊपर पुल का निर्माण किया गया है। इसमें कछुओं और बतख के साथ ही मछलियों को अठखेलियाँ करते देखना बहुत अच्‍छा लगता है। ठीक सामने मौजूद पैगोडा के ऊपर बँधी घंटियाँ सुरम्‍य और शांत वातावरण में जब बजती हैं तो लगता है कि ये सभी दिशाओं में अहिंसा और प्रेम का संदेश दे रही हों।

9. बिरला मंदिर- जलमंदिर के सामने भगवान शिव को समर्पित बिरला मंदिर मौजूद है। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में शिव की ध्‍यान मुद्रा में सफेद संगमरमर की मूर्ति है। इसके बगल में ही बिरला धर्मशाला है।

webdunia
WDWD
कैसे पहुँचें-
कुशीनगर गोरखपुर से 52 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे नं 28 पर स्‍थित है। यहाँ पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्‍टेशन गोरखपुर रेलवे जंक्‍शन है। गोरखपुर से हर घंटे कुशीनगर (कसया) के लिए बसें मिलती रहती हैं। गोरखपुर से देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों के लिए ट्रेन की सुविधा उपलब्‍ध है। इसके साथ ही गोरखपुर से दिल्‍ली, मुंबई और कोलकाता के लिए हवाई सुविधा भी उपलब्‍ध है। दिल्‍ली और लखनऊ से पर्यटन विभाग की ओर से भी विदेशी और घरेलू पर्यटकों के लिए वाहन और रहने की व्‍यवस्‍था की जाती है

कहाँ ठहरें...
कुशीनगर में सैलानियों के ठहरने के लिए हर श्रेणी के आरामदायक होटल मौजूद हैं। यहाँ लोटस निक्‍को होटल, होटल रेसीडेंसी और पथिक निवास में ठहरने के लिए बेहतर होगा कि पहले से बुकिंग करवा ली जाए। इनमें से पथिक निवास उत्‍तरप्रदेश पर्यटन विकास निगम की ओर से संचालित होता है। वहीं धर्मशालाओं में भी सालभर भीड़ रहती है। इसमें बिरला धर्मशाला और बुद्ध धर्मशाला प्रमुख हैं। इसके अलावा अलग-अलग देशों के मंदिरों की धर्मशाला भी हैं। बौद्ध भिक्षुओं के लिए लिए कुछ मंदिरों में विहार की व्‍यवस्‍था है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi