शौर्य, भक्ति और सौंदर्य का प्रतीक
महाराणा प्रताप का शौर्य, रानी पद्मिनी का सौंदर्य और कृष्ण की दीवानी मीरा की भक्ति तीनों में कौन-सी समानता है? आप सोच रहे होंगे कि मीरा, पद्मिनी और महाराणा प्रताप में क्या समानता हो सकती है। इन तीनों का संबंध राजस्थान के चित्तौड़ से हैं और ये तीनों चित्तौड़ के किले में निवास करते थे।
महाराणा प्रताप आज वीरगाथाओं में, पद्मिनी कविताओं में और मीरा अपने भजनों में जीवित है। कभी इन तीनों का निवासस्थल रहा चित्तौडगढ़ का किला आज भी इन सभी की स्मृतियों को संजोएँ पूरी शान से खड़ा है।
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वक्त की धूल ने इसकी चमक को कुछ फीका भले ही कर दिया हो, पर इसकी शान आज भी बरकरार है। इस किले को देखने लाखों की संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक हर साल चित्तौडगढ़ पहुँचते है। इन पर्यटकों में कुछ सिर्फ घूमने आते हैं। कुछ इतिहास को कुरेदने आते हैं, तो कुछ को यहाँ आकर सृजनात्मक ऊर्जा मिलती है। चित्तौड़ का किला एक पहाड़ी पर स्थित है। पूरी पहाड़ी पर पत्थरों को तराशकर एक खूबसूरत बाउंड्रीवाल बनाई गई है। इसी बाउंड्रीवाल पर वहीदा रहमान का मशहूर गीत' आज फिर जीने की तमन्ना है' फिल्माया गया है।
किले के परिसर में प्रवेश करते ही सबसे पहले नजर आता है, खूबसूरत झरना। इस झरने का संबंध पहाड़ के ऊपर स्थित एक जलकुंड से है। बरसात के मौसम में इस झरने का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। राजस्थान की तपती भूमि पर खूबसूरत झरनों के नजारे कम ही देखने को मिलते है।
पहाड़ी पर जैसे-जैसे ऊपर की ओर आगे बढ़ते जाते है, खंडहर हो चुकी हवेलियों के अवशेष नजर आते हैं। यहाँ एक छोटा-सा रहवासी मोहल्ला भी है। यानी कुछ लोगों को अपने घर का पता 'चित्तौड़ का किला' लिखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा हैं। हमने इस किले को देखने की शुरुआत की, विजय स्तंभ के साथ।
शौर्य का प्रतीक इस स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा ने चौदहवीं शताब्दी में करवाया था। मोहम्मद खिलजी की सेनाओं को युद्ध में हराने के बाद, अपनी विजय के स्मारक के रूप में उन्होंने इस स्तंभ का निर्माण करवाया था। इस नौ मंजिला स्तंभ में लगभग 157 सीढि़याँ है। पूरे स्तंभ में हिंदू देवी- देवताओं की मूर्तियों और पौराणिक कथाओं को उकेरा गया। नौवीं मंजिल पर खूबसूरत झरोखें हैं। इस झरोखें में से पूरा चित्तौड़ शहर और अनेक खूबसूरत नजारे दिखाई देते हैं। रात के समय सुनहरी रोशनी में नहाया हुआ विजय स्तंभ और भी खूबसूरत दिखाई देता है। यहाँ आप चाहें तो ऊँट की सवारी का आनंद ले सकते हैं। राणा कुंभा महल
चित्तौड के राणा कुंभा का महल इस किले की शानो- शौकत का गवाह है। स्थापत्य कला के जानकारों को इस महल में घूमना बहुत लुभाता है। इस किले के नजदीक ही एक स्थान को 'जौहर स्थल' की संज्ञा दी गई है। कीर्ति स्तंभ विजय स्तंभ की तरह ही एक किर्ती स्तंभ भी इस किले के परिसर में है। यह स्तंभ प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथजी को समर्पित है। सात मंजिल व 22 मीटर ऊँचे इस स्तंभ का निर्माण बारहवीं शताब्दी में किसी धनवान जैन व्यापारी ने करवाया था। पद्मिनी महल चित्तौड़ के किले का सबसे अधिक आकर्षक और खूबसूरत महल है- पद्मिनी महल। कमल ताल नामक तालाब के नजदीक बने इस महल के साथ राजस्थान के इतिहास के सबसे रोमांचक कथा जुड़ी है।
अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण करने के बाद एक शर्त रखी। शर्त के अनुसार यदि अलाउद्दीन को रानी पद्मिनी की एक झलक दिखा दी जाए, तो वह अपनी सेनाओं के साथ वापस लौट जाएगा।
इस शर्त को पूरी करने के लिए महाराणा रतन सिंह ने पद्मिनी की छवि कुछ इस तरह अलाउद्दीन को दिखाई कि राजपूताना मर्यादा का हनन भी नहीं हुआ और अलाउद्दीन की शर्त भी पूरी हो गई। रानी पद्मिनी ने तालाब के सामने अपना घूँघट खोला, वह छवि तालाब के सामने स्थित दुमंजिला बरामदे में लगाए गए आईने में अलाउद्दीन ने देखी और वह अपनी सेनाओं समेत वापस लौट गया।
मीरा का मंदिर
चित्तौड़ के किले का एक और अविस्मरणीय पड़ाव है, मीरा का मंदिर।
वास्तव में यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण का हैं। मीरा यहाँ अपने कृष्ण की पूजा करती थी और यहीं पर उन्होंने अमृत मानकर विष का प्याला पी लिया था। मंदिर प्रांगण के मध्य में एक तुलसी क्यारा है, जिसमें लगी तुलसी की महक बहुत दूर से महसूस की जा सकती है।
गौमुख तालाब
किले में गौमुख नामक एक ताल है। इस तालाब के किनारे एक छोटा-सा शिव मंदिर है। यहाँ शिवलिंग का अभिषेक एक गौमुख से निकल रही जल की छोटी सी धारा से निरंतर होता रहता है। इस धारा से निकलने वाला जल ही बाहर गहरे तालाब के रूप में इकट्ठा हुआ है। इसलिए तालाब को गौमुख नाम दिया गया है। जब पूरा राजस्थान गर्मी में तपता है और सारे जलस्रोत सूख जाते हैं, तब भी इस गौमुख से निकलने वाली धारा लगातार शिवजी का अभिषेक करती रहती है।
ऊपर की पहाड़ी से तालाब का नजारा बहुत सुंदर लगता है, आस-पास की हरियाली देखकर थोड़ी देर के लिए लगाता है कि हम राजस्थान में नही बल्कि किसी हिल स्टेशन पर आ गए है।
कैसे पहुँचे
चित्तौड़ देश के सभी हिस्सों से सड़क व रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है। उदयपुर से केवल दो घंटे की सड़क यात्रा करके आप चित्तौड़ पहुँच सकते हैं। फिलहाल यहाँ हवाई अड्डा नहीं है।
कब जाएँ
सितंबर से फरवरी माह के बीच चित्तौडगढ़ की सैर करना श्रेयस्कर होगा। इस दौरान यहाँ का मौसम बहुत अच्छा होता है।
कहाँ ठहरे
चित्तौड़ एक छोटा, शांत और सस्ता शहर है। यहाँ बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए कई तीन सितारा होटलें है। सरकारी डाक बंगला भी पर्यटको को ठहरने के लिए अच्छी सुविधाएँ मुहैया करवाता है।