1971 भारत-पाक युद्ध की कुछ यादें
चरम पर था भारतीय नौसेना का पराक्रम
भारत-पाक के बीच हुआ 1971 का युद्ध स्वतंत्र भारत के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। भारतीय सेना की कमान जनरल मानेक शॉ जैसे अनुभवी व कुशल सेनानायक के हाथ में थी। उन्होंने जीवन में कभी हारना सीखा ही नहीं। उनका नेतृत्व काबिले तारीफ था।
यह वह समय था जब पाकिस्तान भारत के साथ बराबरी के युद्ध का दम्भ भरता था व भारत को रौंदने की धमकियाँ देता रहता था। पाकिस्तान के दमन चक्र से परेशान हजारों बंगाली शरणार्थी भारत में आ चुके थे और भारत वर्ष एक अच्छे पड़ोसी की तरह उन्हें सभी सुविधाएँ दे रहा था। पर आखिर कब तक भारत की यह सहिष्णुता चलती?
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सारी कोशिशें की कि कोई हल निकल आए और शरणार्थी वापस घरों को लौट जाएँ, पर यह नहीं हो सका। बंगवासियों (मुजीब की सेना) ने अपनी मुक्ति वाहिनी बनाकर पश्चिमी पाकिस्तानी हुकूमत से संघर्ष शुरू कर दिया। पाकिस्तान सरकार ने इसे भारत समर्थित युद्ध माना व 3 दिसंबर 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया।
जलसेना के पास इस युद्ध में दो मोर्चे थे। एक था बंगाल की खाड़ी में समुद्र की ओर से पाकिस्तानी नौसेना से लोहा लेना व दूसरी ओर पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का मुकाबला करना व बंगाल जाने वाली सैनिक सामग्री और सहायता को रोकना। युद्ध के वे क्षण अभी विस्मृत नहीं हुए हैं जब खुले समुद्र में हम अपने युद्ध पोतों के साथ कराची पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे। पश्चिमी मोर्चे पर युद्ध का संचालन नौसेना पोत मैसूर से एडमिरल कुरुविल्ला की कमांड में हो रहा था। मैं इसी युद्ध पोत पर इस युद्ध का एक सैनिक था।
कराची बंदरगाह पर हमला- भारतीय नौसेना के दस्ते ने कराची बंदरगाह पर आक्रमण किया व पाकिस्तानी नौसेना के कई युद्ध पोत कराची बंदरगाह में डुबो दिए गए। अपनी जान की परवाह किए बगैर कराची बंदरगाह के बिलकुल पास जाकर इन्होंने अपने प्रक्षेपास्त्रों से कराची बंदरगाह पर हमला कर दिया। इस हमले के बाद भारतीय नौसेना का पश्चिमी मोर्चे पर वर्चस्व हो गया। अब पाकिस्तानी नौसेना की कमर टूट चुकी थी।
'गाजी' को डुबोया- अमेरिका और चीन की पूरी हमदर्दी पाकिस्तान के साथ थी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए अमेरिकी नौसेना का 7वाँ बेड़ा भारत की ओर रवाना कर दिया था। अमेरिकी बेड़े के आने पर युद्ध की दिशा बदल सकती थी, पर अमेरिकी बेड़े के पहुँचने के पहले ही भारतीय सेनाओं ने युद्ध को ही निर्णायक मोड़ दे दिया। पाकिस्तान की पनडुब्बी 'गाजी' को विशाखापट्टनम नौसैनिक अड्डे के पास डुबो दिया गया।
भारतीय नौसेना का पराक्रम चरम पर था। इतिहास में पहली बार किसी नौसेना ने दुश्मन की नौसेना को एक सप्ताह के अंदर पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था। 15 दिसंबर को पाकिस्तानी सेनापति जनरल एके नियाजी ने युद्धविराम की प्रार्थना की। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी फौजों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- कमांडर संतोषकुमार मिश्रा