Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

‘आजादी का पहला क्रांतिकारी’, जल्‍लादों ने जिसके सामने गर्दन झुकाकर कर दिया था फांसी देने से इनकार

Advertiesment
हमें फॉलो करें ‘आजादी का पहला क्रांतिकारी’, जल्‍लादों ने जिसके सामने गर्दन झुकाकर कर दिया था फांसी देने से इनकार
webdunia

नवीन रांगियाल

मंगल पांडे का नाम सुनकर आज भी खून में हरकत होने लगती है। जिसका नाम सुनकर फ‍िरंग‍ियों के पूरे शरीर में सिरहन दौड़ जाती थी।

देश के इस वीर सपूत की शहादत ने देश में क्रांत‍ि के पहले बीज बोए थे। लेकिन इस वीर सपूत को जब अंग्रेजों ने फांसी की सजा सुनाई तो भारत के जल्‍लादों ने इस महान क्रांति‍कारी को फांसी लगाने से मना कर दिया था।

जल्‍लादों का कहना था कि भले ही हमारा काम फांसी का फंदा लगाना है, लेकिन हम इस देशभक्‍त की मौत देने का पाप अपने हाथों से कतई नहीं करेंगे।

देश के स्‍वाधि‍नता संग्राम में मंगल पांडे की भड़काई क्रांत‍ि की आग में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह तिलम‍िला गया था। मंगल पांडे से प्रेरणा लेकर कई क्रांत‍िकारी आजादी की लड़ाई में कूद गए। उनकी शहादत के बाद तो पूरे देश में क्रांत‍ि की ज्‍वाला सी भड़क गई थी। उनकी शहादत ने देश में एक चिंगारी का काम किया जो शोला बनकर चारों तरफ जली।

क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और मां का नाम अभय रानी था। वे कलकत्ता (कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे। भारत की आजादी की पहली लड़ाई यानी 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी।

जब उन्‍होंने अंग्रेजों के खिलाफ ‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया तो कुछ ही दिनों में हर आदमी की जुबान पर यह नारा गूंज रहा था। मंगल पांडे को आजादी का सबसे पहला क्रांतिकारी माना जाता है।

18 अप्रैल, 1857 का दिन मंगल पांडे की फांसी के लिए निश्चित किया गया था। लेकिन आपको जानकार हैरानी और गर्व होगा कि जब उन्‍हें फांसी देना तय हुआ तो बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से साफ मना कर दिया। उन्‍होंने कहा कि हम देश के सपूत की मौत का इंतजाम नहीं कर सकते। मंगल पांडे देश के महान क्रांति‍कारी हैं और उन्‍हें मौत देकर हम इत‍िहास में अपना नाम काले अक्षरों में दर्ज नहीं करवा सकते।

जल्‍लादों के इनकार के बाद तब कलकत्ता से चार दूसरे जल्लाद बुलाए गए। 8 अप्रैल, 1857 के दिन पूरे भारत में मंगल पांडे के इस महान बलिदान की खबर सुना दी गई।  भारत के एक वीर पुत्र ने आजादी के यज्ञ में अपनी जान झोंक दी। मंगल पांडे का नाम आज भी भारत में बहुत गर्व और आदर के साथ लिया जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

संभल में 2 बसों के बीच हुई भीषण भिड़ंत, 7 लोगों की मौत, 8 घायल