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डॉ. गणेश मतकर
भारतीय जनमानस में इंदौर की देवी अहिल्याबाई होलकर के प्रति अटूट श्रद्धा है। विभिन्न भाषाओं के रचनाकारों ने देवी अहिल्याबाई के आदर्श चरित्र का दिग्दर्शन अपनी रचनाओं में किया है। देवी की जयंती एवं पुण्यतिथि के पावन पर्व पर विविध प्रकार के समारोहों द्वारा उन्हें आदरांजलि देकर नई पीढ़ी को उनका संस्मरण कराया जाता है। मेरी दृष्टि में सबसे पहले साहित्यिक विशेषांक जिसे अहिल्यांक कहा जाता है वह है मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति का वीणा का सन् 1928 के अहिल्या पुण्यतिथि का विशेषांक।
वर्ष 1915 से प्रारंभ हुए देवी अहिल्या पुण्यतिथि का सार्वजनिक रूप से धूमधाम से आयोजन होता रहा है ठीक इसी प्रकार सन् 1960 से भी अहिल्या जन्मोत्सव (जयंती) का आयोजन लगातार संपन्न हो रहा है। इंदौर के मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की लगभग 90 वर्ष से निरंतर प्रकाशित हो रही हिन्दी पत्रिका 'वीणा' द्वारा लगातार सन् 1928 से 1930 के 'अहिल्यांक' विशेषांकों के माध्यम से देश के विभिन्न स्थानों के रचनाकारों के हिन्दी के साथ मराठी, संस्कृत एवं चुनिंदा अँगरेजी लेखों द्वारा भी देवी अहिल्याबाई का चरित्र प्रकाशमय हो गया है। यह मेरा देवी अहिल्या की जीवनी के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए समीक्षात्मक लेख है।
संपूर्ण अहिल्यांक श्रावण संवत् 1985 अर्थात 1928 का है। सन् 1928 के प्रथम पृष्ठ पर ही पं. अंबिकाप्रसाद त्रिपाठी की देवी अहिल्याबाई पर आठ पंक्तियों का जोशीला 'अष्टक' है जिसकी प्रथम पंक्ति है 'शिष्टन की पालिकाऔ दुष्टन की घालिका, अनुपम शासिका तू, एक दिव्य स्फूर्ति थी तू।' कविता का शीर्ष पं. त्रिपाठीजी ने लिखा है- 'अलौकिक विभूति' 'वीणा' के पृष्ठ 325 पर वीररस पूर्ण आठ पंक्तियों की कविताओं में संक्षेप में देवी अहिल्याबाई का आदर्श चरित्र समझ में आ सकता है।
कमलाबाई किबे द्वारा देवी अहिल्याबाई होलकर के जीवन व कार्यों पर चार पन्नों का चरित्र चित्रण है। पं. हरिप्रसाद चौबे के लेख में देवी अहिल्याबाई द्वारा सन् 1785 में बनारस (काशी) में मणिकर्णिका घाट की निर्मिति का विवरण प्रस्तुत किया। जन्मस्थान चौंढी में सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग शिवालय, ओंकारेश्वर में गौरी सोमनाथ के मंदिर के निर्माण का प्रारंभ अहिल्याबाई की सास गौतमाबाई ने किया था उसे अहिल्याबाई ने पूर्ण किया, धर्मशालाओं का निर्माण, सदावर्त अन्न क्षेत्रों का निर्माण किया।
जय भारत माता-जय अहिल्या माता।