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कुर्रतुल ऐन हैदर : बहुआयामी लेखन की रचनाकार

उपन्यासकार कुर्रतुल ऐन हैदर : पुण्यतिथि 21 अगस्त

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ऐनी आपा के नाम से मशहूर कुर्रतुल ऐन हैदर का जन्म 20 जनवरी 1927 को उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था, उनके पिता सज्जाद हैदर यलदरम उर्दू के जाने-माने लेखक होने के साथ-साथ ब्रिटिश शासन के राजदूत की हैसियत से अफगानिस्तान, तुर्की इत्यादि देशों में तैनात रहे थे। उनकी मां नजर बिन्ते बाकिर भी उर्दू लेखिका थीं।

कुर्रतुल ऐन हैदर की प्रारंभिक शिक्षा लालबाग, लखनऊ के गांधी स्कूल में हुई। उन्होंने अलीगढ़ और लखनऊ के आईटी कॉलेज से बीए एवं लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने लंदन के हीदरलेस आर्ट्स स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। विभाजन के समय 1947 में उनके भाई-बहन व रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए।

लखनऊ में अपने पिता की मौत के बाद कुर्रतुल ऐन हैदर भी बड़े भाई मुस्तफा हैदर के साथ पाकिस्तान चली गईं। वहां स्वतंत्र लेखक व पत्रकार के रूप में वह बीबीसी लंदन से जुड़ी तथा दि टेलीग्राफ की रिपोर्टर व इम्प्रिंट पत्रिका की प्रबंध संपादक भी रहीं। कुर्रतुल ऐन हैदर इलेस्ट्रेट वीकली की संपादकीय टीम में भी रहीं। 1956 में जब वह भारत भ्रमण के लिए आईं, तो फिर वापस नहीं गईं और जीवन भर मुंबई में रहीं। उन्होंने विवाह नहीं किया था।

आगे पढ़े उनके लेखन का संसार...




कुर्रतुका रचनात्मक संसार बहुत विस्तृत रहा। उनके लेखन में समाज और संस्कृति की विस्तृत झलक दिखाई देती है। हालांकि ऐनी का बहुआयामी लेखन कई विधाओं में फैला है, लेकिन उनकी मूल पहचान उपन्यासकार की रही।

हिन्दी-उर्दू के वरिष्ठ उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा, ‘हालांकि कुर्रतुल ऐन हैदर ने कहानी, रिपोर्ताज, अनुवाद, जीवनी उपन्यास जैसे तमाम रचनात्मक एवं उल्लेखनीय रचनाएं कीं, लेकिन उनकी मूल पहचान उपन्यासकार की रही। उनके उपन्यासों में सामान्यत: हमारे लंबे इतिहास की पृष्ठभूमि में आधुनिक जीवन की जटिल परिस्थितियों को पिरोया गया है।’

बिस्मिल्लाह ने कहा, ‘उनका रचनात्मक संसार इतना विस्तृत था, कि उन्हें बांग्ला के रवीन्द्रनाथ टैगौर अथवा हिन्दी के प्रेमचन्द के समान रखा जा सकता है। ऐनी के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आग का दरिया’ की तुलना टॉलस्टॉय के ‘वार एंड पीस’ से करते हुए उन्होंने कहा कि उनका लेखन में युगों-युगों की गाथा है और उसमें समाज और संस्कृति की वास्तविक तस्वीर दिखाई देती है।’

एनी ने बहुत कम उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहली कहानी ‘बी चुहिया’ मात्र छह वर्ष की अल्पायु में प्रकाशित हुई। जब वह 17-18 वर्ष की थीं, तब 1945 में उनका कहानी संकलन ‘शीशे का घर’ प्रकाशित हुआ। इसके अगले ही साल 19 वर्ष की आयु में उनका प्रथम उपन्यास ‘मेरे भी सनमखाने’ प्रकाशित हुआ।

आगे पढ़ें उर्दू में लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्या




वर्ष 1959 में कुर्रतुल ऐन हैदर का उपन्यास ‘आग का दरिया’ प्रकाशित हुआ। इसे आजादी के बाद विभाजन की पृष्ठभूमि पर उर्दू में लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था, जिसमें उन्होंने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर 1947 तक की भारतीय समाज की संस्कृति और दार्शनिक बुनियादों को समकालीन परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया है।

इस उपन्यास के बारे में निदा फाजली ने यहां तक कहा है, कि मोहम्मद अली जिन्ना ने हिन्दुस्तान के साढ़े चार हजार सालों के इतिहास में से मुसलमानों के 1200 सालों की तारीख को अलग करके पाकिस्तान बनाया था।

कुर्रतुल ऐन हैदर ने ‘आग का दरिया’ लिखकर उन अलग किए गए 1200 सालों को हिन्दुस्तान में जोड़कर हिन्दुस्तान को फिर से एक कर दिया। कुर्रतुल ऐन हैदर के उपन्यास ‘आखिरी शब के हमसफर’ का उर्दू से हिन्दी में 'निशांत के सहयात्री' अनुवाद करने वाले असगर वजाहत ने कहा ‘यह देश के वामपंथी आंदोलन के उभार और उसमें शामिल लोगों के सत्ता के करीब जाकर पतन हो जाने की कहानी है। इसका फलक बहुत विस्तृत है और कुर्रतुल ऐन हैदर के लेखन की विशेषता भी यही है। इसके अलावा उनके जीवनी आधारित उपन्यास भी बहुत प्रामाणिक और जीवंत हैं।'

आगे पढ़े कुर्रतुल हैदर का करियर एवं पुरस्कार



कुर्रतुल ऐन हैदर ने अपना करियर एक पत्रकार की हैसियत से शुरू किया, लेकिन इस दौरान वह लिखती भी रहीं। उनकी कहानियां, उपन्यास, अनुवाद, रिपोर्ताज वगैरह सामने आते रहे। वह उर्दू में लिखती और अंग्रेजी में पत्रकारिता करती थीं।

ऐनी साहित्य अकादमी में उर्दू सलाहकार बोर्ड की दो बार सदस्य रहीं। विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में उन्होंने जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अतिथि प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं।

कई पुरस्कार रहे उनके नाम....
उन्हें 1967 में ‘आखिरी शब के हमसफर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।
1984 में पद्मश्री, गालिब मोदी अवार्ड,
1985 में उनकी कहानी पतझड़ की आवाज के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार,
1987 में इकबाल सम्मान,
1989 में अनुवाद के लिए सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार,
1989 में ज्ञानपीठ पुरस्कार,
1989 में ही पद्मभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया।

उनकी मृत्यु 21 अगस्त 2007 को हुई थी। (भाषा)

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