सुभाषचंद्र बोस का पत्र जवाहरलाल नेहरू के नामवैस्ट लागेरंड, हाफ्गाइस्टन्4 अक्टूबर, 1935
प्रिय जवाहर,
तुम्हारे 2 और तीन तारीख के पत्र मिले।
फ्रीबर्ग सर्जन की रिपोर्ट पढ़कर मुझे बड़ी खुशी हुई। मैं आशा करता हूँ कि उनका चिकित्सा-विज्ञान रोगी की इतनी मदद कर सकेगा कि वह अपने फेफड़ों की शिकायत पर काबू प्राप्त कर सके। मैं नहीं जानता कि तुमने श्रीमती नेहरू को किसी दूसरी जगह हटाने की संभावना के बारे में उनकी राय पूछी है अथवा नहीं। अगर मैं तुम्हारी परेशानी में कुछ काम आ सकूँ तो मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे बुला भेजने में संकोच न करोगे।
तुमने मेरी पुस्तक में जो गलती बताई है, उसके लिए आभार प्रकट करता हूँ। जैसा कि तुम कहते हो, उसमें तथ्य की गलतियाँ हो सकती हैं, किन्तु मेरी उम्मीद यही है कि ये गलतियाँ ज्यादा गंभीर नहीं हैं। बदकिस्मती से मुझे ज्यादातर अपनी याददाश्त से काम चलाना पडा़ और खासकर तारीखों के बारे में मुझे खासी दिक्कत रही। उस समय का न तो कोई साहित्य मिल पाया और न कोई ऐसा व्यक्ति मेरी पहुँच के भीतर था जिसकी मदद मैं ले सकता। पंडित मोतीलाल जी की मृत्यु की ठीक तारीख याद करने के लिए मैंने अपने दिमाग पर काफी जोर डाला, किन्तु नाकामयाब ही रहा। पुस्तक में तुम छापे की अशुद्धियाँ (मुद्रण भूतकी) देखोगे, जो कि प्रूफ ठीक तरह से न देखे जाने के कारण हुईं हैं। सिर्फ एक ही बार मैं प्रूफ पढ़ पाया और वह भी बड़ी जल्दी में, कारण मुझे जल्दी ही भारत के लिए रवाना होना था। इसके अलावा, पुस्तक काम के भारी दबाव में लिखी गई और उस समय मेरी तबियत भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी। तुम्हारे द्वारा बतायी हुई गलतियों को मैं सावधानी के साथ नोट कर लूँगा, ताकि अगले संस्करण में उनको दुरूस्त किया जा सके।
मैं इसके साथ उस पत्र की नकल भेज रहा हूँ जो मैंने ‘मैंचेस्टर गार्जियन’ को भेजा था। यह पहली अक्टूबर को प्रकाशित हुआ है।
तुम्हे अब तक यह खबर मिल चुकी होगी कि अबीसीनिया में लड़ाई शुरू हो गई है। सवाल सिर्फ यही है कि क्या यह लड़ाई इटली और इंग्लैण्ड की लड़ाई का रूप ले लेगी?
सुभाषचंद्र बोस का पत्र जवाहरलाल नेहरू के नाम
जीलगोरा पो.आ.
जिला मानभूम, बिहार
15 अप्रैल, 1939
प्रिय जवाहर,पता नहीं, महात्माजी तुमको हमारे बीच चल रहे चिट्ठी-पत्री की नकलें भेज रहे हैं या नहीं, जैसे कि वह दूसरों को भेजते हैं। अगर तुमको ये नकलें न मिली हों तो मैं तुमको सबसे ताजा स्थिति बताना चाहूँगा। उसके बाद मैं तुम्हारी प्रतिक्रिया जानना चाहूँगा और तुम्हारी सलाह भी कि आगे मुझे क्या करना चाहिए।महात्माजी का आग्रह है कि कार्यसमिति समानशील होनी चाहिए। वह चाहते हैं कि मैं ऐसी समिति का गठन कर लूँ और अपने कार्यक्रम की घोषणा कर दूँ। उसके बाद मैं काँग्रेस महासमिति की स्वीकृति प्रदान करूँ।मैंने महात्माजी से बार-बार कहा है कि मैं ऐसी कार्यसमिति एक से अधिक कारणों से नहीं बना सकता। इसके अलावा काँग्रेस ने मुझे अपना कार्यक्रम बनाने और उसकी घोषणा करने का निर्देश नहीं दिया है। मुझे तो सिर्फ एक खास तरीके से अर्थात् पन्त-प्रस्ताव के अनुसार कार्यसमिति का गठन करना है।कुछ वैकल्पिक सुझाव देने के बाद मैंने आखिर में यह कहा है कि सब-कुछ निष्फल रहने पर उनको कार्यसमिति गठित करने की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेनी चाहिए- कारण मैं समानशील समिति बनाने की उनकी सलाह का पालन नहीं कर सकता। अपने दो आखिरी पन्नों में मैंने उनसे यह अनुरोध किया है कि वह यह जिम्मेदारी उठा लें।मैं नहीं कह सकता कि महात्माजी कार्यसमिति की घोषणा करेंगे। अगर वह कर देते हैं तो गतिरोध समाप्त हो जाएगा। किन्तु अगर वह नहीं करते तो? उस दशा में मामला अनिर्णीत अवस्था में काँग्रेस महासमिति के सामने जाएगा। उस अवस्था में महासमिति क्या करेगी, यह मैं नहीं जानता।मैं महसूस करता हूँ कि अगर चिट्ठी-पत्री के जरिए कोई समझौता नहीं होता है तो मुझे गाँधीजी से प्रत्यक्ष मिलकर समस्या को सुलझाने की आखिरी कोशिश करनी चाहिए। किन्तु राजकोट की वजह से गाँधीजी की गतिविधि अनिश्चित है। यह भी पक्का नहीं है कि काँग्रेस महासमिति की बैठक के समय वह कलकत्ता आ सकेंगे, हालाँकि उन्होंने मुझे तार दिया है कि वह आने की 'जी-तोड़' कोशिश करेंगे।अब अगर गाँधीजी कार्यसमिति का निर्माण नहीं करते और मैं गाँधीजी से मिलने का समय निकालने के लिए काँग्रेस महासमिति की बैठक स्थगित कर देता हूँ तो कैसा? क्या महासमिति के सदस्य इसका समर्थन करेंगे या मुझ पर टालमटोल करने का दोष मढ़ेंगे? बहुत-से लोगों की राय है कि जब तक हम मिलते नहीं और समझौते की आखिरी कोशिश नहीं करते, महासमिति की बैठक नहीं होनी चाहिए। बैठक उसी दशा में स्थगित करनी पड़ेगी जबकि महात्माजी 27 से पहले कलकत्ता नहीं आ पाते, जिस दिन कि कार्यसमिति की बैठक होनी है। बैठक स्थगित करने के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?अगर महात्माजी तुमको न भेज चुके हों तो अब तक पूरा पत्र-व्यवहार मैं तुम्हें भेज सकता हूँ।एक बात और। क्या कुछ घंटों के लिए तुम यहाँ आ सकोगे? उस दशा में हम बात कर सकेंगे कि आगे मुझे क्या करना चाहिए। इस बारे में तुम्हारी सलाह भी मिल जाएगी। यह पत्र संक्षिप्त है और जल्दी में लिखा गया है और एक मित्र के हाथ भेज रहा हूँ। पता नहीं, मैं ताजा स्थिति स्पष्ट कर पाया हूँ या नहीं- आशा तो यही है कि मैंने कर दी है।अगर तुम यहाँ आने का समय निकाल सको तो तुम एक्सप्रेस (8 डाउन) से आकर कुछ समय बचा सकते हो। वह साढ़े चार बजे शाम पहुँचती है और तुम बंबई मेल से लौट सकते हो, जो धनबाद आधी रात को पहुँचती है। जमदोबा धनबाद से नौ मील है। स्टेशन पर तुम्हें कार मिल जाएगी।
सुभाषचंद्र बोस का पत्र जवाहरलाल नेहरू के नाम
जीलगोरा पो.आ.
20 अप्रैल, 1939
प्रिय जवाहर,
मैंने आज महात्माजी को दो तार भेजे हैं। उनमें से एक तार उनके नाम के मेरे आज के पत्र में भी दोहराया गया है। मैं अपने पत्र और तार की नकलें इस चिट्ठी के साथ भेज रहा हूँ।
पत्र-व्यवहार को प्रकाशित न करने के तार के बारे में मैंने तुम्हारे नाम का उपयोग किया है। आशा है, तुमको ऐतराज नहीं होगा।
मुझे गाँधीजी के बुखार की चिंता है। आशा है, वह ठीक हो जाएगा। परमात्मा न करे, अगर वह बना रहता है तो हम क्या करेंगे? कृपा कर इस संभावना के बारे में कुछ सोचना। मैं कल 21 ता. को कलकत्ता के लिए रवाना हो रहा हूँ।
सुभाषचंद्र बोस का पत्र जवाहरलाल नेहरू के नाम
मार्फत- सुपरिटेंडेंड पुलिस दार्जिलिंग
30 जून, 1936
प्रिय जवाहर,
मुझे तुम्हारा 22 तारीख का पत्र पाकर खुशी हुई। वह मुझे 27 तारीख को मिला। समाचार पत्रों से मुझे मालूम हुआ कि तुम बहुत ज्यादा परिश्रम कर रहे और मुझे तुम्हारे स्वास्थ्य के बारे में चिंता हो रही थी। मुझे खुशी है कि तुम थोड़े समय के लिए ही सही, मसूरी विश्राम करने के लिए जा सके। मैं यह समझ सकता हूँ कि अति परिश्रम को टालना तुम्हारे लिए कठिन है, फिर भी आशा करता हूँ कि तुम बहुत ज्यादा परिश्रम नहीं करोगे। अगर तुम्हारी तबियत बिगड़ी तो उससे किसी कि मदद नहीं मिलेगी।
तुमने अपने बहनोई रणजीत के बारे में जो कुछ कहा है, वह बहुत ही दु:ख की चीज है। किंतु यह जानकर थोड़ी राहत मिली कि डॉक्टर किसी गंभीर परिणाम की आशंका नहीं करते। हम आशा करें कि स्थान-परिवर्तन और विश्राम से उनकी तबियत सुधर जाएगी।
मैं करीब-करीब ठीक हूँ। कुछ पेट की शिकायत है और थोड़ा फ्लू का असर हो गया था (यह गले की खराबी भी हो सकती है)-- किंतु ये सब शिकायतें यथा समय दूर हो जाएगी।
अगर तुम्हारे पुस्तकालय में नीचे लिखी पुस्तकों में से कोई हों और तुम उनको सुविधापूर्वक सुलभ करा सको तो कृपा करके एक या दो एकसाथ भिजवा देना।
1. हिस्टोरिकल ज्योग्राफी ऑफ यूरोप- गोईन ईस्ट लिखित
2. क्लैश ऑफ कल्चर्स एण्ड कॉन्टेक्ट ऑफ रेसेस- पिट रिवर्स लिखित
3. शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ ऑवर टाइम्स- ले.ए. स्पेंडर लिखित
4. वर्ल्ड पॉलिटिक्स 1918-35- आर.पी. दत्त लिखित
5. साइंस एण्ड दी फ्यूचर- जे.बी.एस.हालडेन लिखित
6. अफ्रीका व्यू- हक्सले लिखित
7. चंगेजखाँ- राल्फ फोक्स लिखित
8. दि ड्यूडी ऑफ एम्पायर- बारनेस लिखित
उपरोक्त पुस्तकों के स्थान में तुम हाल में प्रकाशित कोई दूसरी दिलचस्प पुस्तकें चुन सकते हो। चिट्ठी-पत्री या पुस्तकों सुपरिटेंडेंट पुलिस दार्जिलिंग की मार्फत भेजी जानी चाहिए।
आशा है, तुम स्वस्थ होगे।
सुभाषचंद्र बोस का पत्र जवाहरलाल नेहरू के नाम
मार्फत- रेल से
19 अक्टूबर, 1938
प्रिय जवाहर,
तुम आश्चर्य कर रहे होंगे कि मैं भी कैसा अजीब आदमी हूँ कि तुमने इतने पत्र लिखे और मैंने उनका कोई जवाब नहीं दिया। मुझे तुम्हारे सब पत्र मिल गए थे। काँग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों के नाम लिखे गए तुम्हारे पत्रों को सभी ने पढ़ा है। युद्ध संकट के समय तुम्हारे वक्तव्य सामायिक और हमारे लिए सहायक थे।
तुम कल्पना न हीं कर सकते कि इस अवधि में तुम्हारा अभाव मुझे कितना खटक रहा है। अवश्य ही, मैं अनुभव करता हूँ कि तुम्हें परिवर्तन की सख्त जरूरत थी। मुझे अफसोस इसी बात का है कि तुमने काफी शारीरिक विश्राम नहीं लिया। कुल मिलाकर, समाचार पत्रों में तुम्हें अच्छा स्थान मिला, रायटर की कृपा के कारण। जनता तुम्हारी यूरोप की गतिविधि और प्रवृत्तियों से परिचित रह सकी और लोग तुम्हारे उद्गारों में गहरी दिलचस्पी लेते रहे। मुझे बड़ी खुशी है कि तुम अपने यूरोप-प्रवास के दौरान इतना कीमती काम कर सके, हालाँकि यहाँ हमने तुम्हारा अभाव बहुत अधिक महसूस किया।
वापस लौटने पर तुम्हें अनेक समस्याओं का सामना करना होगा। हिंदू-मुस्लिम सवाल है। मि. जिन्ना असंगत हैं और अकड़े हुए हैं। अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के दक्षिणपंथियों और वामपंथियों में फूट है। वामपंथी उठकर चले गए थे, इस पर महात्माजी ने बुरा माना। फिर अंतरराष्ट्रीय प्रश्न हैं।
मुझे आशा है, तुम योजना-समिति की अध्यक्षता स्वीकार कर लोगे। अगर उसे सफल बनाना है तो तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
तुम्हारा स्नेही,
सुभाष
फिर से--- मैं कल बंबई से कलकत्ता पहुँच रहा हूँ।
सुभाषचंद्र बोस का पत्र जवाहरलाल नेहरू के नाम
चौरम जिला गया
10 फरवरी, 1939
प्रिय जवाहर,
मुझे तुम्हारा लंबा पत्र कलकत्ता में मिला। तुमने मेरी कमजोरियों का जिक्र किया है। जबकि मुझे उनका पूरी तरह भान है। मुझे कहनी चाहिए कि कहानी का दूसरा पहलू भी है। इसके अलावा किसी को उन बाधाओं को नहीं भुलाना चाहिए, जिनका मुझे सामना करना पड़ा। उनका मैं इस पत्र में जिक्र नहीं करना चाहता, कुछ तो इसलिए कि उससे एक विवाद छिड़ जाएगा और कुछ मुझे दूसरों की आलोचना करनी पड़ेगी। अब मुख्य प्रश्न त्रिपुरी काँग्रेस के कार्यक्रम का है। जयप्रकाश तुमसे 12 को मिलेंगे और कार्यक्रम के बारे में मेरे विचार तुम्हें बताएँगे। मैं उसी समय तुमसे मिलना चाहता, किंतु मैं नहीं समझता कि यह संभव हो सकेगा। जो हो, मैं तो 20 ता. को इलाहाबाद में तुमसे मिलने की कोशिश करूँगा।
राजकोट आदि के बारे में मैंने तुम्हारा वक्तव्य देखा। वक्तव्य बहुत अच्छा है, किंतु मेरे विचार से उसमें एक दोष है। ब्रिटिश सरकार राजाओं के जरिए काँग्रेस से लड़ना चाहती है, किंतु हमें उसके जाल में नहीं फँसना चाहिए। रियासती समस्याओं के बारे में राजाओं के साथ मोर्चा लेते हुए भी, हमको स्वराज्य के प्रश्न पर ब्रिटिश सरकार को सीधी चुनौती देनी चाहिए। तुम्हारे वक्तव्य में मुझे यह विचार नहीं मिला और मैं अनुभव करता हूँ कि अगर हम स्वराज्य का प्रश्न छोड़ देते हैं और केवल रियासती प्रश्नों पर ब्रिटिश सरकार और राजाओं से लड़ना शुरू कर देते हैं तो हम अपनी असली लड़ाई से भटक जाने का खतरा मोल ले रहे हैं। शेष मिलने पर ।
सप्रेम तुम्हारा,
सुभाष
सभी पत्र राजशेखर व्यास की पुस्तक 'सुभाषचंद्र बोस- कुछ अधखुले पन्ने' से साभार