Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सुबन्ना : रंगकर्म प्रयोगधर्मिता का युगांत

हमें फॉलो करें सुबन्ना : रंगकर्म प्रयोगधर्मिता का युगांत

सीमा पांडे

केवी सुबन्ना यानी कुंटागोडू विभूति सुबन्ना के निधन से भारत ने एक सांस्कृतिक नायक खो दिया। जाने-माने नाटककार और 'निनासम धर्म संस्था' के संस्थापक तथा मेगसायसाय सम्मान से विभूषित श्री केवी सुबन्ना कन्नड़ थिएटर के लिए मील का पत्थर थे। 16 जुलाई 2005 को 74 वर्ष की उम्र में हृदयगति रूकने से उनका निधन हुआ। उनके पत्नी तथा पुत्र और रंगकर्म संसार शोकसंतप्त रह गए।

1932 को जन्मे सुबन्ना मैसूर के महाराजा कॉलेज से स्नातक हुए। स्नातक करने के तुरंत बाद सुबन्ना शांतावेरी गोपाल गौड़ा से प्रभावित हुए। जो समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेता थे और समाजवादी विचारधारा का जीवन भर पालन करते रहे।

श्री सुबन्ना को बचपन से ही ड्रामे के प्रति आकर्षण रहा और उन्होंने हैग्गोडू शिमोगा में 1949 में ड्रामा को समर्पित 'निनासम' की स्थापना की। उनके अनुसार- ''निनासम' एक सभ्यता है, किसी समुदाय का संघर्ष, नया रास्ता पाने के लिए, एक सांस्कृतिक विकल्प.... तथा लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण...।'

श्री सुबन्ना के मार्गदर्शन में 'निनासम' ने कन्नड़ थिएटर और अन्य प्रदर्शनकारी कलाओं में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया।

1991 में उन्हें पत्रकारिता, साहित्य तथा कला के सृजनात्मक आयामों के लिए 'रेमन मेगसायसाय' सम्मान मिला।

ग्रामीण कर्नाटक को समृद्ध करती हुई उनकी फिल्में तथा जीवंत मंचीय प्रदर्शन विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ। उन्हें 2004-05 में पद्मश्री से भी नवाजा गया।

कन्नड़ ड्रामा को बढ़ावा देने के लिए सुबन्ना ने कर्नाटक के विभिन्न भागों में प्रशिक्षण केंद्र चलाए। कन्नड़ रंगमंच से जुड़ी सामग्री के प्रकाशन के लिए उन्होंने 'अक्षर प्रकाशन' की स्थापना भी की। इसके माध्यम से अन्य भाषाओं के नाटकों का अनुवाद कन्नड़ में किया जाता था। श्री सुबन्ना के भाषा के प्रति समर्पण को सिर्फ कन्नड़ भाषा के ही नहीं वरन्‌ संपूर्ण विश्व के भाषा प्रेमी सदा स्मरित करते रहेंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi