यह एक कवि की आवाज थी जिसमें सुबह-सुबह अवसाद तैर रहा था। आज सुबह करीब पौने आठ बजे चंद्रकांत देवतालेजी का फोन आया कि वेणु गोपाल नहीं रहे। फिर थोड़ी देर चुप्पी रही। उस चुप्पी में बहुत कुछ ऐसा था जिसे सुना-महसूस किया जा सकता था। एक कवि के लिए एक कवि का जाना क्या मायने रखता है? इस सवाल का जवाब शायद खबर देने के बाद फैल गई चुप्पी में कहीं था। यह खबर देवतालेजी को विष्णु नागर के एसएमएस के जरिये मिली थी। देवतालेजी ने कहा-यह बहुत दुःखद है। वे मुझसे छह-सात साल छोटे थे। उन्होंने एक लंबी बीमारी की यातना झेली-सही। बीमारी में किसी कवि का इस तरह छोड़कर चले जाना मेरे लिए निजी तौर पर बहुत कष्टप्रद है। अभी डेढ़ माह पहले मेरी उनसे फोन पर बात हुई थी। वेणुगोपाल कह रहे थे-चंद्रकांतभाई (वे मुझे इसी तरह संबोधित करते थे) मैं आपसे वादा करता हूं, चंगा होकर आऊँगा। वह वादा अब कभी पूरा नहीं होगा। एक समय था जब हिंदी कविता में आलोक धन्वा और वेणुगोपाल की खूब चर्चा होती थी। वे नक्सली आंदोलन से आए कवि थे। उनकी कविताओं में नक्सली आंदोलन का तेवर था, टेम्परामेंट था। उनकी एक खास आवाज थी। उनकी कविता एक्टिव कविता थी। वेणुगोपाल ने कभी पूछा था जो कवि जिंदगी के सवाल भूलकर कविता के सवाल बूझने लगे तो वह कैसी जिंदगी काटेगा? देवतालेजी बताते हैं उनकी कविता नैतिकता, मानवीय गरिमा और वंचितों की पक्षधर कविता थी। |
अभी डेढ़ माह पहले मेरी उनसे फोन पर बात हुई थी। वेणुगोपाल कह रहे थे-चंद्रकांतभाई (वे मुझे इसी तरह संबोधित करते थे) मैं आपसे वादा करता हूं, चंगा होकर आऊँगा। वह वादा अब कभी पूरा नहीं होगा.... |
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ये सब चीजें उनकी कविता में सज-धजकर अभिव्यक्त नहीं होती थीं बल्कि वह उनके भीतर मथती-मथाती कविता में सहज रूप से अभिव्यक्त होती थीं। उनके गहरे सरोकार उनके भीतर से निकलकर कविता में प्रकट होते थे। कविता उनके लिए माध्यम ही नहीं थी। उनके जीवन और कविता में फांक नहीं देखी जा सकती।
देवतालेजी की आवाज में अब भर्राहट है। वे कहते हैं वह दोस्त था, दूर था लेकिन कविता के कारण बहुत पास था। हम सब एक ही दरख्त के कवि-परिंदे थे जो हर तरफ से आकर बैठते थे।
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदी में कवियों की लिस्ट जारी करने की आदत रही है। इसमें वेणुगोपाल और कई महत्वपूर्ण कवि अक्सर छूटते रहे हैं। बरसों तक उन्हें जारी लिस्ट में छोड़ते आए हैं जबकि वे अपनी कविता में हमेशा महत्वपूर्ण बने रहे।
अब हिंदी पट्टी में कोई बड़ा जनआंदोलन नहीं है। मानवीय गरिमा और वंचितों के लिए अब कोई उठ खड़ा नहीं होता। हिंदी पट्टी में अब कोई जनआंदोलन नहीं है और न कवि का समाज और जीवन में बड़ा कद और दूर तक सुनाई देने वाली आवाज।