हैदराबाद नगर निकाय चुनाव (Greater Hyderabad Municipal Elections 2020) में टीआरएस, सबसे बड़े दल के रूप में उभरता दिखाई दे रहा है। इस चुनाव में सबसे बड़ी टक्कर एआईएमआईएम और भाजपा के बीच थी। भाजपा के प्रचार में यह नारा लगाया जा रहा था कि भाजपा एक दिन हैदराबाद का नाम बदलकर उसका प्रचीन नाम भाग्यनगर कर देगी। अब सवाल यह उठता है कि हैदराबाद का प्राचीन नाम क्या सचमुच ही भाग्य नगर था या कुछ और?
हैदराबाद आंध्रप्रदेश का हिस्सा रहा है परंतु आंध्र के दो हिस्से हो चले हैं। पहला आंध्र और दूसरा तेलंगाना। हैदराबाद अब तेलंगाना का हिस्सा है। इसका इतिहास तो बहुत पुराना है परंतु सैंकड़ों वर्ष पूर्व ककातीय नरेश गणपति ने इस पर शासन किया। फिर 14वीं सदी में यह क्षेत्र मुस्लिम राजाओं के अधिकार में आ गया। यहां बहमनी राज्य स्थापित हुआ। 482 ई. में बहमनी राज्य के एक सूबेदार सुल्तान क़ुलीकुतुबुलमुल्क ने नरेश गणपति के शासन काल में बना गोलकुंडा पहाड़ी पर जो कच्चा किला बनाया था उसे पक्का करने गोलकुंडा में अपनी राजधानी बनवाई।
इसके बाद कुतुबशाही वंश के पांचवें सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने 1591 ईस्वी में गोलकुंडा से अपनी राजधानी हटाकर मूसी नदी के दक्षिणी तट पर बसाई जहां आज हैदराबाद स्थित है। अब इसमें तीन बातें इतिहास को पढ़ने के बाद निकलकर आती है।
1. पहली यह कि जहां यह नगर बसाया गया था वह हराभरा जंगल और उद्दयान था। वहां कोई नगर नहीं था। वहां पर कुतुबुशाह ने नया नगर बसाया। कुतुबशाह ने नगर बसाने के बाद अपनी प्रेमिका भागमति के नाम पर इस नगर का नाम भागनगर नाम दिया था। ऐसा कहा जाता है कि शादी के बाद भागमती ने इस्लाम कुबूल कर लिया था। इसके बाद भागमती का नया नाम रखा गया बेगम हैदरमहल। इन्हीं बेगम हैदरमहल के नाम पर शहर को नाम मिला हैदराबाद। मूसी नदी के पास एक गांव चिचेलम, जहां भागमती रहती थी और वह बंजारा समुदास से थी। शहजादे अक्सर नदी पर जाते रहती थे और एक दिन उन्होंने भागमती को देखा तो दिल दे बैठे।
2. दूसरा यह भी कहा जाता है कि यहां पहले एक उजाड़ नगर था जिसका नाम पाटशिला था। कभी यह एक समृद्ध जगह हुआ करती थी। इसी जगह को कुतुबशाह ने फिर से आबाद करके इसका नाम भागनगर कर दिया था। हालांकि इसमें संदेह भी हो सकता है। विजयेन्द्र कुमार माथुर की किताब ऐतिहासिक स्थानावली के अनुसार सिंध (पाकिस्तान) में भी एक हैदराबाद नामक शहर है जहां पर पाटशिला नगर था। चीनी यात्री युवानच्वांग ने अपने भारत भ्रमण (630-645 ई.) के दौरान इसका उल्लेख किया था। हालांकि वाटर्स तथा कनिंघम भी यही मानते हैं। शायद इसी नगर को यूनानी लेखकों ने भी यही माना होगा।
3. भाग्यलक्ष्मी मंदिर के नाम पर इस नगर का पहले नाम भाग्यनगर था। बाद में इसका नाम हैदराबाद हुआ। इस मंदिर को लेकर कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। कहते हैं चारमीनारा के स्थान पर देवी लक्ष्मी आई थीं। संतरियों ने उन्हें वहीं रोक दिया और कहा कि वे राजा की आज्ञा लेकर आते हैं। देवी लक्ष्मी वहीं पर खड़ी हो गई। माना जाता है कि देवी लक्ष्मी ने वहीं पर अपना घर बना लिया और वहां पर एक मंदिर बन गया। हालांकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है।
इतिहास में हैदराबाद में कई प्राचीन हिंदू मंदिरों के होने का जिक्र मिलता है। मंदिरों में शिलालेख लिखे मिलते हैं लेकिन भाग्यलक्ष्मी मंदिर के बारे में कोई अभी तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिली है। हालांकि इस जगह पर पीछले 500 वर्षों से पूजा जारी है। पहले यहां बहुत पुराने 2 पत्थर हुआ करते थे अब वे टूट गए हैं।