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30 अगस्त : इस दिन दाराशिकोह की औरंगज़ेब ने कर दी थी हत्या

हमें फॉलो करें 30 अगस्त : इस दिन दाराशिकोह की औरंगज़ेब ने कर दी थी हत्या
दारा शिकोह शाहजहां का सबसे बड़ा पुत्र था। मुग़ल परंपरा के अनुसार, अपने पिता के बाद दारा शिकोह सिंहासन के उत्तराधिकारी थे। लेकिन शाहजहां की बीमारी के बाद उनके दूसरे पुत्र औरंगजेब ने अपने पिता को सिंहासन से हटाकर, उन्हें आगरा में कैद कर दिया था।
 
दारा शिकोह मुगल सम्राट शाहजहाँ का सबसे बड़ा पुत्र (जीवनकाल 1615 ई. से 1659 ई. तक) था। शाहजहाँ उसे अपना राजपद देना चाहता था लेकिन उत्तराधिकार के संघर्ष में दाराशिकोह के भाई औरंगज़ेब ने उसकी हत्या कर दी। उस समय दारा की उम्र 44 साल थी....
 
दारा शिकोह ने अपने समय के श्रेष्ठ संस्कृत पंडितों, ज्ञानियों और सूफी संतों की सत्संगति में वेदांत तथा इस्लाम के दर्शन का गहन अध्ययन किया साथ ही फारसी एवं संस्कृत में इन दोनों दर्शनों की समान विचारधारा को लेकर विपुल साहित्य लिखा।
 
 पुस्तक 'शाहजहां नामा' में लिखा मिलता है कि "जब शहजादे दारा शिकोह को गिरफ्तार करके दिल्ली लाया गया, तब उनके शरीर पर मैले कुचैले कपड़े थे। यहां से, उन्हें बहुत ही बुरी हालत में, बागी की तरह हाथी पर सवार करके खिजराबाद पहुंचाया गया। कुछ समय के लिए उन्हें एक संकीर्ण और अंधेरी जगह में रखा गया था। इसके कुछ ही दिनों के भीतर उनकी मौत का आदेश दे दिया गया।"वो लिखते हैं कि "कुछ जल्लाद उनका कत्ल करने के लिए जेल में दाखिल हुए और क्षण भर में उनके गले पर खंजर चलाकर उनकी हत्या कर दी। बाद में उन्हीं मैले और खून से सने कपड़ों में उनके शरीर को हुमायूं के मकबरे में दफन कर दिया गया।"
 
पुस्तक 'आलमगीर नामा' में भी दारा शिकोह की कब्र के बारे में लिखा है। इस में लिखा मिलता है कि दारा को हुमायूं के मकबरे में उस गुंबद के नीचे दफनाया गया था जहां बादशाह अकबर के बेटे दानियाल और मुराद दफ्न हैं और जहां बाद में अन्य तैमूरी वंश के शहजादों और शहजादियों को दफ्न किया गया था।
 
"पाकिस्तान के एक स्कॉलर, अहमद नबी खान ने 1969 में लाहौर में 'दीवान-ए-दारा दारा शिकोह' के नाम से एक शोध-पत्र में दारा की कब्र की एक तस्वीर प्रकाशित की थी। उनके अनुसार, उत्तर-पश्चिम कक्ष में स्थित तीन कब्रें पुरुषों की हैं और उनमें से जो कब्र दरवाजे की तरफ है वो दारा शिकोह की है।
 
दारा शिकोह के बारे में उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, वो अपने समय के प्रमुख हिन्दुओं, बौद्धों, जैनियों, ईसाईयों और मुस्लिम सूफियों के साथ उनके धार्मिक विचारों पर चर्चा करते थे। इस्लाम के साथ, उनकी हिंदू धर्म में भी गहरी रुचि थी और वो सभी धर्मों को समानता की नजर से देखते थे।
 
उन्होंने बनारस से पंडितों को बुलाया और उनकी मदद से हिंदू धर्म के 'उपनिषदों' का फारसी भाषा में अनुवाद कराया था। उपनिषदों का यह फारसी अनुवाद यूरोप तक पहुंचा और वहां उनका अनुवाद लैटिन भाषा में हुआ जिसने उपनिषदों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध बनाया।
 
भारत में दारा शिकोह को एक उदार चरित्र माना जाता है। भारत में हिंदू- झुकाव वाले इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर औरंगजेब की जगह दारा शिकोह मुगलिया सल्तनत के तख्त पर बैठते तो देश की स्थिति बिल्कुल अलग होती। दारा शिकोह हिंदू धर्म से प्रभावित थे और वो हिंदूओं की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते थे। नादिरा बानो से दारा शिकोह की शादी को मुग़ल इतिहास की सबसे मँहगी शादी कहा जाता है....30 अगस्त 1659 उनके जीवन का अंतिम दिन था...
 
युद्ध में पराजित शहज़ादे दारा ने अफग़ानिस्तान के दादर में शरण मांगी, लेकिन उनके मेज़बान ने उनके भाई औरंगज़ेब को उनके बारे में सूचना दे कर उन्हें धोखा दे दिया। 30 अगस्त 1659  औरंगजेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह को फांसी दी।
 
 
दाराशिकोह की रचनाएँ-
 
दाराशिकोह ने स्वयं अपनी देखरेख में संस्कृत ग्रंथ भगवत गीता और योगवशिष्ठ का फारसी में अनुवाद करवाया।
 
दारा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य - वेदों का संकलन है उसने वेदों को ईश्वरीय कृति माना है।
 
दाराशिकोह ने एक मौलिक पुस्तक मज्म-उल-बहरीन ( दो समुद्रों का संगम ) की रचना की। जिसमें हिन्दू और इस्लाम धर्म को एक ही ईश्वर की प्राप्ति के दो मार्ग बताया गया है।
 
दारा ने स्वयं तथा काशी के कुछ संस्कृत के पंडितों की सहायता से बावन उपनिषदों का सिर्र-ए-अकबर नाम से फारसी में अनुवाद कराया।
 
दाराशिकोह के सूफीमत  से संबंधित ग्रंथ-
 
सफीनत-उल-औलिया-(विभिन्न परंपराओं के सूफियों का जीवन-वृत्त)
सकानत-उल-औलिया-(भारत की कादिरी परंपरा के सूफियों का जीवन वृत्त)
हसनात-उल-औलिया-(विभिन्न संतों की वाणी का संकलन)
तरीकत-उल-हकीकत-(आध्यात्मिक मार्ग के विभिन्न चरण)
रिसाला-ए-हक-नुमा- ( सूफी प्रथाओं का वर्णन)

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