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राणा सांगा द्वारा मुगल आक्रांता बाबर को भारत बुलाने का सच?

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WD Feature Desk

, सोमवार, 24 मार्च 2025 (14:18 IST)
Rana sanga : मेवाड़ के एक शूरवीर योद्धा और कुशल शासक राणा संग्राम सिंह को राणा सांगा भी कहा जाता है। उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ में हुआ था। वे महाराणा रायमल के पुत्र थे। उनके बचपन का नाम संग्राम सिंह था। उन्होंने मेवाड़ पर साल 1509 से 1528 तक शासन किया। वे मेवाड़ के पूर्व शासक एवं महाराणा प्रताप के पूर्वज थे। राज्यसभा में सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा को लेकर विवादित बयान दिया। उन्होंने सदन में दावा किया कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा के न्योते पर बाबर हिन्दुस्तान आया था लेकिन क्या वाकई में बाबर को भारत आने का न्योता मेवाड़ के राणा सांगा ने दिया था? ALSO READ: Rana Sanga row : राणा सांगा के बयान पर घमासान, अपनी पार्टी के सांसद के बचाव में क्या बोले अखिलेश यादव
 
राणा सांगा एक महान योद्धा थे। उन्होंने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े और अपनी वीरता का लोहा मनवाया। उन्होंने मेवाड़ की सीमाओं का विस्तार किया और अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाया। उन्होंने राजपूतों को एकजुट करके एक शक्तिशाली सेना का निर्माण किया। उन्होंने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बनाया। उन्होंने राजपूतों को एकजुट करके मुगल आक्रमणकारियों का सामना किया।ALSO READ: Rana Sanga Controversy: औरंगजेब विवाद के बीच राणा सांगा पर छिड़ा युद्ध, SP सांसद ने बताया गद्दार
 
शौर्य और नेतृत्व के धनी रा‍णा सांगा के प्रमुख युद्ध :
• खातोली का युद्ध (बूंदी 1517): में उन्होंने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया।
•  बाड़ी या बारी का युद्ध : 1518 (धौलपुर)
• गागरोन का युद्ध : 1519 (झालावाड़): 1519 में हुए गागरोन युद्ध में उन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को हराया।
• बयाना का युद्ध : 16 फरवरी 1527 (भरतपुर): सन् 1527 में उन्होंने बयाना के युद्ध में मुगल सम्राट बाबर की सेना को हराया।
• खानवा का युद्ध : 17 मार्च 1527 (भरतपुर): 1527 में खानवा का युद्ध राणा सांगा और बाबर के बीच हुआ था। इस युद्ध में राणा सांगा घायल हो गए थे और उन्हें युद्ध के मैदान से पीछे हटना पड़ा था।
 
इब्राहिम लोदी को हराया : महाराणा सांगा ने सिकंदर लोदी के समय ही दिल्ली के कई इलाकों पर अपना अधिकार करना शुरू कर दिया था। सिकंदर लोदी के उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी ने 1517 में मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। खातोली (कोटा) नामक स्थान पर दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा की विजय हुई। कहते हैं कि इस युद्ध में सांगा का बायां हाथ कट गया था और घुटने पर तीर लगने से वह हमेशा के लिए लंगड़े हो गए थे। खातोली की पराजय का बदला लेने के लिए 1518 में इब्राहिम लोदी ने मियां माखन की अध्यक्षता में महाराणा सांगा के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजी जिसे भी पराजय का सामना करना पड़ा था।
 
बाबर से नहीं किया समझौता : इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि राणा सांगा ने बाबर के साथ क्या समझौता किया था। ऐसा कहा जाता है कि बाबर चाहता था कि राणा सांगा इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध में मेरा साथ दे, लेकिन राणा सांगा ने दिल्ली और आगरा के अभियान के दौरान बाबर का साथ नहीं दिया था और न ही उन्होंने बाबर को कोई न्योता दिया था। राणा को लगता था कि बाबर भी तैमूर की भांति दिल्ली में लूटपाट करके लौट जाएगा। किंतु 1526 ईस्वी में राणा सांगा ने देखा कि इब्राहीम लोदी को 'पानीपत के युद्ध' में परास्त करने के बाद बाबर दिल्ली में शासन करने लगा है तब राणा ने बाबर से युद्ध करने का निर्णय कर लिया।
 
कहते हैं कि खानवा युद्ध शुरू होने से पहले राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती, महमूद लोदी और अनेक राजपूत अपनी-अपनी सेना लेकर राणा के साथ हो लिए थे और आगरा को घेरने के लिए सभी आगे बढ़े। बाबर से बयाना के शासक ने सहायता मांगी और ख्वाजा मेंहदी को युद्ध के लिए बयाना भेजा परंतु राणा सांगा ने उसे पराजित करके बयाना पर अधिकार कर लिया। लगातार मिल रही हार से मुगल सैनिक में डर बैठ गया था। ऐसे में बाबर ने मुसलमानों को एकजुट करने के लिए उन पर से टैक्स हटाकर जिहाद का नारा दिया और बड़े स्तर पर युद्ध की तैयारी की।
 
खानवा का युद्ध :1527 में राणा सांगा और मुगल बादशाह बाबर के भयानक युद्ध हुआ। खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबरदस्त खूनी मुठभेड़ हुई। बाबर 2 लाख मुगल सैनिक थे और ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा के पास भी बाबर जितनी सेना थी। बस फर्क यह था कि बाबार के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था और राणा के पास साहस एवं वीरता। युद्ध में बाबर ने राणा के साथ लड़ रहे लोदी सेनापति को लालच दिया जिसके चलते सांगा को धोखा देकर लोदी और उसकी सेना बाबर से जा मिली। लड़ते हुए राणा सांगा की एक आंख में तीर भी लगा, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और युद्ध में डटे रहे। इस युद्ध में उन्हें कुल 80 घाव आए थे। उनकी लड़ाई में दिखी वीरता से बाबर के होश उड़ गए थे। लोदी के गद्दारी करने की वजह से राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई हार गई थी।
 
यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने मुगल सम्राट बाबर के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य का रास्ता खोल दिया।
 
राणा सांगा का निधन : कहते हैं कि खानवा के युद्ध में सांगा बेहोश हो गए थे जहां से उनकी सेना उन्हें किसी सुरक्षित जगह ले गई थी। वहां होश में आने के बाद उन्होंने फिर से लड़ने की ठानी और चित्तौड़ नहीं लौटने की कसम खाई। कहते हैं कि यह सुनकर जो सामंत लड़ाई नहीं चाहते थे उन्होंने राणा को जहर दे दिया था जिसके चलते 30 जनवरी 1528 में कालपी में उनकी मृत्यु हो गई। उनके देहांत के बाद अगला उत्तराधिकारी उनका पुत्र रतन सिंह द्वितीय हुआ था। 
 
राणा सांगा का विधि विधान से अन्तिम संस्कार माण्डलगढ (भीलवाड़ा) में हुआ। इतिहासकारों के अनुसार उनके दाह संस्कार स्थल पर एक छतरी बनाई गई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि वे मांडलगढ़ क्षेत्र में मुगल सेना पर तलवार से गरजे थे। युद्ध में महाराणा का सिर अलग होने के बाद भी उनका धड़ लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। कहते हैं कि युद्ध में महाराणा का सिर माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) की धरती पर गिरा, लेकिन घुड़सवार धड़ लड़ता हुआ चावण्डिया तालाब के पास वीरगति को प्राप्त हुआ।
 
उल्लेखनीय है कि इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान के इतिहास पर विस्सतार से लिखा है। उन्होंने कहीं ऐसा जिक्र नहीं किया है कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी के खिलाफ बाबर से हाथ मिला लिया था। बाबर के संस्मरण बाबरनामा में राणा सांगा के निमंत्रण का उल्लेख है, लेकिन इसका जिक्र पानीपत के युद्ध के बाद ही मिलता है, जब बाबर राजपूत राजा के विरुद्ध युद्ध की तैयारी कर रहा था। जीएन शर्मा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा जैसे कई इतिहासकारों का तर्क है कि बाबर ने अपने साझा प्रतिद्वंद्वी इब्राहिम लोदी के खिलाफ गठबंधन की उम्मीद में खुद राणा सांगा से संपर्क किया था लेकिन राणा सांगा ने इससे इनकार कर दिया था, क्योंकि राणा सांगा ने खुद इब्राहिम लोदी को कई बार हराया था और उन्हें लोदी से कोई खतरा महसून नहीं होता था।  
 
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