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इतिहास का सबसे ‘बुद्धिमान मूर्ख बादशाह’ कौन कहलाता है, जानिए क्यों मिला ये नाम

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हमें फॉलो करें who is known as the wisest fool

WD Feature Desk

, सोमवार, 21 जुलाई 2025 (14:04 IST)
who is known as the wisest fool: भारतीय इतिहास में दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश का एक ऐसा शासक भी हुआ, जिसे उसकी दूरदर्शिता और विद्वत्ता के बावजूद 'बुद्धिमान मूर्ख' या 'विद्वान मूर्ख' कहा गया। यह कोई और नहीं, बल्कि मुहम्मद बिन तुगलक था, जिसने 1325 से 1351 ईस्वी तक शासन किया। वह अरबी, फारसी, गणित, ज्योतिष और चिकित्सा जैसे विषयों का गहरा ज्ञान रखता था, लेकिन उसके कुछ ऐसे निर्णय थे जिन्होंने उसके साम्राज्य को भारी नुकसान पहुँचाया और उसे इस विरोधाभासी उपाधि से नवाजा गया। आइए जानते हैं क्या थीं वे वजहें, जिन्होंने एक बुद्धिमान शासक को 'मूर्ख' की श्रेणी में ला खड़ा किया।

1. दिल्ली से दौलताबाद राजधानी स्थानांतरण: एक अव्यावहारिक कदम
मुहम्मद बिन तुगलक की सबसे विवादास्पद और विफल योजनाओं में से एक थी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद (देवगिरी) स्थानांतरित करना। 1327 ईस्वी में, उसने सोचा कि दौलताबाद साम्राज्य के केंद्र में स्थित है, जिससे वह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर बेहतर नियंत्रण रख पाएगा। उसने न केवल अपनी सरकार, बल्कि दिल्ली की पूरी आबादी को भी दौलताबाद जाने का आदेश दिया।

यह निर्णय बिना पर्याप्त योजना और तैयारी के लिया गया था। दिल्ली से दौलताबाद की लंबी और कठिन यात्रा में हजारों लोग मारे गए, और जो पहुँचे, उन्हें नई जगह पर भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कुछ ही वर्षों में, तुगलक को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने राजधानी को वापस दिल्ली स्थानांतरित करने का आदेश दिया, जिससे और भी अधिक कष्ट हुए। इस अव्यावहारिक कदम ने जनता में असंतोष पैदा किया और राजकोष पर भारी बोझ डाला।

2. सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन: नियंत्रण की कमी ने किया बर्बाद
मुहम्मद बिन तुगलक ने 1330 ईस्वी में सांकेतिक मुद्रा (टोकन करेंसी) का प्रचलन शुरू किया। उसने सोने और चांदी के सिक्कों की कमी को देखते हुए पीतल और तांबे के सिक्के जारी किए, जिनका मूल्य चांदी के टंके के बराबर घोषित किया गया। यह विचार चीन और ईरान के शासकों से प्रेरित था, जहाँ यह सफल रहा था।

हालांकि, तुगलक ने मुद्रा ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रखा, जिससे हर घर एक टकसाल बन गया। लोगों ने बड़े पैमाने पर जाली सिक्के बनाने शुरू कर दिए। जाली सिक्कों से लगान चुकाया जाने लगा, जिससे राज्य का खजाना खाली हो गया और अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप हो गई। अंततः उसे सांकेतिक मुद्रा को वापस लेना पड़ा और चांदी के सिक्के फिर से जारी करने पड़े, जिससे राज्य को और भी बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ।

3. विफल सैन्य अभियान: महत्वाकांक्षा ने खाली किए राजकोष
तुगलक की महत्वाकांक्षाएँ बहुत बड़ी थीं, लेकिन उसके सैन्य अभियान अक्सर विफल रहे। उसके दो प्रमुख अभियान थे:
  • खुरासान अभियान: उसने खुरासान (मध्य एशिया) को जीतने के लिए एक विशाल सेना तैयार की और उन्हें एक साल का अग्रिम वेतन भी दे दिया। लेकिन, राजनीतिक परिवर्तनों और अव्यावहारिकता के कारण यह अभियान कभी शुरू ही नहीं हो सका, जिससे भारी धन बर्बाद हुआ।
  • कराचिल अभियान: उसने कराचिल (हिमालयी क्षेत्र) को जीतने के लिए एक बड़ी सेना भेजी। यह अभियान भी बुरी तरह विफल रहा, क्योंकि सेना पहाड़ी रास्तों में भटक गई और प्रतिकूल मौसम व स्थानीय प्रतिरोध के कारण लगभग पूरी तरह नष्ट हो गई। इब्न बतूता के अनुसार, केवल दस अधिकारी ही बचकर वापस आ सके।
इन विफल अभियानों ने न केवल हजारों सैनिकों की जान ली, बल्कि राजकोष को भी पूरी तरह से खाली कर दिया।

4. दोआब में कर वृद्धि: अकाल में भी बढ़ा दिया टैक्स
मुहम्मद बिन तुगलक ने गंगा और यमुना के बीच के उपजाऊ क्षेत्र दोआब में राजस्व में वृद्धि की योजना बनाई। दुर्भाग्य से, जिस समय उसने यह निर्णय लिया, उस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। इसके बावजूद, सुल्तान के अधिकारियों ने सख्ती से कर वसूली की, जिससे किसानों में भारी असंतोष फैल गया। किसान अपने खेत और घर छोड़कर जंगलों में भागने लगे। जब सुल्तान को अकाल की गंभीरता का पता चला, तो उसने कर वृद्धि का फैसला रद्द कर दिया और किसानों को सहायता प्रदान करने का प्रयास किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस निर्णय ने जनता को राज्य के खिलाफ कर दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक निस्संदेह एक विद्वान और दूरदर्शी शासक था, जिसने कई नवीन योजनाएँ बनाईं। लेकिन, उसकी योजनाओं में व्यावहारिक दृष्टिकोण की कमी, खराब क्रियान्वयन और जनता की वास्तविक परिस्थितियों को समझने में विफलता ने उसे 'बुद्धिमान मूर्ख' की उपाधि दिलाई। राजधानी परिवर्तन, सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन, विफल सैन्य अभियान और अकाल के दौरान कर वृद्धि जैसे उसके निर्णयों ने दिल्ली सल्तनत को आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर कर दिया, जिससे उसके शासनकाल में कई विद्रोह हुए और अंततः साम्राज्य के पतन की नींव पड़ी।
 

 

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