- अथर्व पंवार
मंदसौर एक प्राचीन नगर है जिसका प्राचीन नाम दशपुर था। दशपुर की भव्यता का वर्णन संस्कृत के विद्वान कालिदास ने भी उनके द्वारा रचित मेघदूत में किया था। मंदसौर में पुरातात्विक और ऐतिहासिक प्रमाण बिखरे हुए हैं। जिनमें से कुछ का संरक्षण किया गया। पर आज इसकी भव्यता जर्जर हालत में है।
महाराजा यशोधर्मन जिन्होंने हूणों पर विजय प्राप्त की थी, उन्हीं के नाम पर रखा गया मंदसौर का यशोधर्मन पुरातत्व संग्रहालय आज अपना संरक्षण मांग रहा है। संग्रहालय को 1997 में उस समय की पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ ने जनता को लोकार्पित किया था परन्तु इस 25 वर्ष पुराने संग्रहालय की हालत ऐसी है कि संग्रहालय का नाम ही क्षत-विक्षत अवस्था में दिखता है। संग्रहालय की स्थिति भी दयनीय दिखती है और मेंटनेंस नहीं दिखता है।
संग्रहालय में शिव, गणेश, महावीर और विष्णु की अति प्राचीन प्रतिमाओं के साथ साथ अनेक पुरातात्विक वस्तुओं को उचित संरक्षण तो दिया गया है पर संग्रहालय परिसर में बाहर महिषासुर मर्दिनी, गणेश के साथ साथ खंडित शिवलिंग और नंदी ऐसे पड़े हैं जैसे किसी घर का अनुपयुक्त मलबा हो।
संग्रहालय में बाहर भी कुछ पुरातात्विक वस्तुएं उचित स्थान देकर (एक प्लेटफॉर्म पर) रखी गई है। पर बिखरी हुई मूर्तियों को देखकर ही ऐसी धारणा बन जाती है की इन्हें तो मात्र कोने में लावारिस छोड़ दिया गया है और एक प्रश्न भी उठता है कि संग्रहालय में इनका संरक्षण क्यों नहीं हो रहा।
स्थानीय लोगों को भी इस सन्दर्भ में जानकारी नहीं है। लोगों से पूछने पर पाया कि उन्हें संग्रहालय की लोकेशन ही नहीं पता है और जिन्हें पता है वह वहां जाते ही नहीं है।
पुरातात्विक संग्रहालय का अर्थ होता है अपने इतिहास को एक धरोहर मानकर संरक्षण देना, पर यहां उसका अर्थ नहीं प्रकट हो रहा। यहां पुरातात्विक वस्तुओं का एकत्रीकरण ही दिखता है उनका उचित संरक्षण नहीं। मंदसौर-नीमच क्षेत्र में इतिहास बिखरा पड़ा है जो मौसम की मार से लड़कर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है जिनका संरक्षण होना चाहिए।
हमने इस विषय पर वहां के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से भी संपर्क की कोशिश की।
मंदसौर के विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया को जब परिसर में बिखरी हुई मूर्तियों और भवन की स्थिति से अवगत कराया गया, तो उन्होंने कहा कि 'संग्रहालय का एक दौरा कर के स्थिति का जायजा लेंगे और जो कुछ उचित हो सकता है वह करने का प्रयास करेंगे।'
हम विश्व धरोहर दिवस मना रहे हैं और हमारी ऐतिहासिक प्राचीन धरोहर संरक्षण के अभाव में बदहाली का शिकार हो रही हैं। कौन है जिम्मेदार, कहां हैं जिम्मेदार?
चित्र सौजन्य- अथर्व पंवार