कुंभ मेला, दान के पदार्थ और वस्तुएं
तीर्थराज प्रयाग में स्नान, दान और यज्ञ का बड़ा महत्व है। पुराणों में कहा गया है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर किया गया दान परलोक में या जन्म-जन्मांतर तक कई गुना होकर दानकर्ता को प्राप्त होता है। प्रयाग के तीर्थ पुरोहित, श्रद्धालु यात्रियों को चौरासी लाख योनियों में जन्म लेने से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें चौरासी वस्तुओं का दान करने को कहते हैं।दान के पदार्थ : इसके बारे में अनेक नियम बनाए गए हैं। महाभारत के अनुसार दानी वहीं है जो अपने सबसे अधिक मूल्यवान पदार्थ को देता है। यह पदार्थ सुपात्र को दिया जाना चाहिए। दान उसी चीज का हासिल किया जा सकता है, जो बिना किसी को सताए हासिल किया गया हो। दान छोटा है या बड़ा-इस पर उसका पुण्य नहीं आंका जाता। श्रद्धा और साधु भावना से सुपात्र को जो कुछ दिया जाता है, वहीं अच्छा दान है।दान की वस्तुएं : दान की वस्तुओं को तीन वर्गों में बांटा गया है-उत्तम, मध्यम और निकृष्ट। उत्तम पदार्थों में भोजन, दही, शहद, गाय, भूमि, सोना, घोड़ा और हाथी को गिना जाता है। मध्यम पदार्थों में आश्रय (घर), घरेलू उपकरण और औषधि वगैरह शामिल हैं। निकृष्ट वस्तुओं में जूता, हिंडोली, गाड़ी, इत्र, बर्तन, आसन, दीपक, लकड़ी और फल वगैरह आते हैं।तीन प्रकार के दान सबसे अच्छे कहे गए हैं- गाय, भूमि और सरस्वती। इन्हें अतिदान कहा गया है। दान की शास्त्रीय परिभाषा में विद्यादान को महत्व नहीं दिया गया है, लेकिन याज्ञवल्भ्य ऋषि ने कहा है कि विद्या सर्वश्रेष्ठ दान है यह जल, भोजन, गाय, भूमि, वस्त्र, तिल, सोना और घी के दान से भी श्रेष्ठ है।विष्णु धर्मोत्तर पुराण में भूमिदान सबसे अच्छा माना गया है। विष्णु धर्मसूत्र के अनुसार अभय दान सबसे श्रेष्ठ है। -
वेबदुनिया संदर्भ