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चरम पर है कुंभ की रौनक

- महेश पाण्डे

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कुंभ में गंगाजल रूपी अमृत का पान करने के लिए हजारों की संख्या में पधार रहे लोग सर्वधर्म समभाव का भी उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। गंगाजल में धर्म और संप्रदाय की सीमाएँ घुल-मिलकर एक हो रही हैं। कुंभ नगरी में सर्वधर्म समभाव की इससे बेहतर मिसाल और क्या हो सकती है कि पेशवाई निकलने पर मस्जिदों से फूलों की वर्षा की गई। मुसलमानों ने हिंदुओं के आराध्य देवों के रूप माने जाने वाले साधुओं के आशीर्वाद से स्वयं को धन्य समझा। उनके अल्पाहार की व्यवस्था के अलावा पेशवाइयों के लिए घोड़े और बग्घियाँ उपलब्ध कराईं।

गुरुद्वारों ने साधु-संतों की अगुवाई के लिए पलक-पाँवड़े बिछाए। विभिन्न देशों से कुंभ मेले में आए ईसाई धर्मावलंबियों ने भी साधुओं की सेवा के प्रति उत्सुकता दिखलाई है। धार्मिक समरसता की यह उष्णता यहीं खत्म नहीं हुई। मुस्लिम कलाकार रामधुन का रियाज कर शाही पेशवाइयों को भव्यता प्रदान करने में भी लगे हैं। बैंड-बाजों के लिए भी मुस्लिम कलाकार ही आगे आए हैं। इन कलाकारों को इस बात का गर्व है कि वे अपने परंपरागत पेशे से मजहबी दूरियों को पाटकर देश सेवा भी कर रहे हैं।

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सातवीं कक्षा तक की तालीम पाकर बैंड-बाजे के पेशे से जुड़े मोहम्मद वकील बैंड-बाजे वालों को भजनों की तालीम दे रहे हैं। उनके साथी गायक जावेद खान, नेमचंद एवं सफदर के साथ हर-हर महादेव व रामनामी धुनों का घंटों रियाज कर रहे हैं ताकि कार्यक्रम में कोई कसर बाकी न रहे। महाराष्ट्र, पंजाब, सहारनपुर, इलाहाबाद, देहरादून, हापुड़ से आए बैंड-बाजे की विभिन्न टीमें यहाँ पूरे उत्साह के साथ कार्यक्रमों में भाग ले रही हैं।

इतना ही नहीं, अखाड़ों के आपसी बैर-विरोध भी इस महाकुंभ में मिटते दिख रहे हैं। सभी अखाड़े साथ स्नान कर अमृतपान का मजा लेना चाहते हैं। पेशवाइयों के दौर से कुंभ नगरी में श्रद्धा का माहौल-सा बन गया है। सुबह-शाम की गंगा आरती, दिन में पेशवाई और गंगा स्नान, हरिद्वार में आस-पास के मंदिरों में जाकर पुण्य अर्जन, यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की दिनचर्या में शामिल हो गया है। कोई पर्णकुटी बनाने में लगा है तो कोई पेशवाइयों के लिए रथों की साज-सज्जा कर रहा है। शाही स्नान को लेकर सबमें उत्साह है।

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