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(दशमी तिथि)
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नागा साधु बाबाओं में सबसे बड़ा कौन?

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आचार्य शंकर द्वारा संन्यासियों की पहले से चली आ रही परंपरा को जब संगठित किया तो उसे नाम दिया- दशनामी साधु संघ। दीक्षा के समय प्रत्येक दशनामी जैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट है, निम्न नामों, गिरि, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम या सरस्वती में से किसी एक नाम से अभिभूषित किया जाता है। किसी एक नाम और परंपरा का साधु बनकर वह सात में से किसी एक अखाड़े का सदस्य बनता है।

दशनामी साधुओं में मंडलेश्वर और नागा पद होते हैं। उनमें भी शास्त्रधारी और अस्त्रधारी महंत होते हैं। शास्त्रधारी शास्त्रों आदि का अध्ययन कर अपना आध्यात्मिक विकास करते हैं तथा अस्त्रधारी अस्त्रादि में कुशलता प्राप्त करते हैं।

चार आध्यात्मिक पद- 1.कुटीचक, 2.बहूदक, 3.हंस और सबसे बड़ा 4.परमहंस। नागाओं में परमहंस सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। नागाओं में शस्त्रधारी नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं। इसके अलावा नागाओं में औघड़ी, अवधूत, महंत, कापालिक, शमशानी आदि भी होते हैं।

नागा उपाधियां : चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।

नागाओं के अखाड़ा पद : नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।
-shatayu

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