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प्रलय आने पर भी नहीं नष्ट होगा अक्षयवट

- आलोक त्रिपाठी

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प्रयाग में अक्षयवट की महिला बहुत प्राचीन होने के साथ-साथ सर्वविदित है। यह यमुना के किनारे किले की चारदीवारी के अन्दर स्थित है।

अग्निपुराण में कहा गया है कि वटवृक्ष के निकट मरने वाला सीधे विष्णु लोक जाता है। सम्पूर्ण संसार प्रलय आने पर नष्ट हो जाएगा, लेकिन यह अक्षयवट नष्ट नहीं होगा।

अक्षयवट से किले की चाहरदीवारी पन्द्रह फिट की दूरी पर है। इसकी शाखाएं चाहरदीवारी से भूमि पर बाहर भी यमुना नदी में लटकती है। सन 1992 में अक्षयवट के चारों ओर संगमरमर लगा दिया गया है। 1999 में अक्षयवट के पास ही एक छोटा सा मंदिर बनाया गया है। जिसमें राम, लक्ष्मण व सीता की प्रतिमाएं स्थापित की गई है।

अक्षयवट के मूल भाग पर चारों तरफ वस्त्र लपेटने पर लगभग 22 मीटर कपड़ा लगता है। इस अक्षयवट के पत्तों का अग्रभाग अन्य बरगद के पत्तों की तुलना में नुकीला न होकर गोलपन लिए होता है। पत्ते औसत रूप में छोटे होते हैं।

औरंगजेब ने इस वटवृक्ष को जलाने का प्रयास किया था किन्तु वह सफल नहीं हुआ।

चार जुग जिसमें सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग में माना जाता है। मान्यता है कि भगवान राम यहां दो बार आए थे। यहां वे पहली बार वनवास के दौरान तीन रात रुके थे और दूसरी बार भगवान दशरथ का पिंडदान करने आए थे।

मान्यता है कि यह वट वृक्ष कभी भी सूखता नहीं है और न ही कभी इसके पत्ते झड़ते हैं। द्वापर युग में भगवान कृष्ण यहां पर आए थे और यहीं नहीं मंदिर के पुजारी तो यहां तक कहते हैं कि जब सृष्टि पर कुछ भी नहीं था यह वृक्ष तभी से मौजूद है।

चूंकि यह वट वृक्ष आज इलाहाबाद में संगम के किनारे किले के अन्दर स्थित है और इसके दर्शन के लिए द्वार सुबह सूर्य उदय के साथ खुलता और सूर्य अस्त के साथ बंद होता है। चूंकि ये स्थान कुंभ क्षेत्र में आता है और सेना के अधीन है इस कारण कोई शुल्क भी नहीं लगता है।

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